लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) होने में तीन से चार महीने बाकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में बीजेपी जोरशोर से तैयारी कर रही है. लेकिन बीजेपी को हराने के मकसद से बने 28 विपक्षी दलों के गठबंधन (INDIA Alliance) में बिखराव जारी है. विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए मुहीम चलाने वाले और INDIA अलायंस को आकार देने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar)के बिहार में महागठबंधन से अलग होने की अटकलें हैं. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की जोड़ी दोबारा टूटने वाली है. नीतीश फिर से बीजेपी खेमे में जा सकते हैं. दूसरी तरफ बिहार के पूर्व सीएम और जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के लिए भारत रत्न (मरणोपरांत) सम्मान का ऐलान करके बीजेपी ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है.
नीतीश लंबे समय से अपने राजनीतिक गुरु कर्पूरी ठाकुर के लिए 'भारत रत्न' की मांग करते रहे हैं. बीजेपी ने इस फैसले से एक तरफ ओबीसी वोट बैंक को टारगेट किया. दूसरी ओर लोकसभा चुनाव से पहले ही INDIA अलायंस से बढ़त बना ली है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' देने से बने दबाव की वजह से ही नीतीश कुमार दोबारा से बीजेपी के होने जा रहे हैं?
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माना जा रहा है कि कर्पूरी ठाकुर के लिए 'भारत रत्न' के ऐलान ने नीतीश कुमार पर एक विकल्प चुनने का अतिरिक्त दबाव डाला होगा. बीजेपी ने इस फैसले से नीतीश के सामने अप्रत्यक्ष रूप से दो विकल्प रखे थे. पहला-INDIA अलायंस के साथ बने रहे (जिसके भीतर JDU नेता असहज महसूस कर रहे थे) या घर वापसी करे.
बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भारत की राजनीति में 'सरप्राइजिंग लीडर' के तौर पर जाना जाता है. वह कब क्या फैसला लेंगे, इसकी भनक किसी को नहीं लगती. फैसला सामने आने पर बस हैरानी होती है. वैसे JDU के बॉस नीतीश कुमार 2013 से बीजेपी, कांग्रेस या लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के बीच झूलते रहे हैं. कभी वो लालू की पार्टी के साथ गठबंधन करते हैं, तो कभी बीजेपी के साथ हो जाते हैं. लेकिन इस बार नीतीश कुमार के 'यू-टर्न' को कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' दिए जाने से जोड़कर भी देखा जा रहा है.
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कर्पूरी ठाकुर एक प्रतिष्ठित समाजवादी नेता थे. वो 1970 के दशक में बिहार में दो बार मुख्यमंत्री रहे. एक बार डिप्टी सीएम भी बने. उन्हें राज्य की विवादास्पद शराब निषेध नीति को लागू करने का क्रेडिट दिया जाता है. आज भी 'जन नायक' या 'जनता के नेता' के रूप में याद किए जाने वाले कर्पूरी ठाकुर की विरासत बिहार के राजनीतिक दलों के लिए एक मूल्यवान संपत्ति बनी हुई है. नीतीश कुमार और लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर से ही राजनीतिक गुर सीखे थे. दोनों ने कर्पूरी ठाकुर के लिए देश के सबसे बड़े सम्मान की वकालत की थी.
मोदी सरकार ने 23 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत 'भारत रत्न' सम्मान दिए जाने का ऐलान किया. इसकी घोषणा होते ही पीएम मोदी ने ट्वीट किया. फिर नीतीश कुमार ने भी पीएम मोदी को धन्यवाद दिया.
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नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्होंने 2007 (जब कांग्रेस सत्ता में थी) के बाद से हर केंद्र सरकार को याचिका दी है. लेकिन सिर्फ मोदी सरकार ने ही जवाब दिया है. ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च सम्मान देने के बीजेपी के फैसले को नीतीश के लिए एक रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है.
बिहार की 13.1 करोड़ आबादी में 60 प्रतिशत से अधिक पिछड़े या अति पिछड़े समुदायों से हैं. इनके बीच कर्पूरी ठाकुर आज भी पूजनीय हैं. कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' सम्मान देने से बीजेपी को 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में विशाल वोट बैंक पर पकड़ हासिल करने में मदद मिलेगी.
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