महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड मामले से खुद को हटाए जाने पर अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने नाराजगी जताई है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड के खिलाफ अवमानना की मांग की. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने AG की शिकायत पर महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा, "AG के साथ आपका व्यवहार सही नहीं है." वहीं AG ने कहा है कि ये न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अनुचित प्रयास है. सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं हो सकता. वकील का अंतिम समय में इस तरह का बदलना न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अनुचित प्रयास और अदालत की अवमानना (Contempt of Court) के बराबर है. दरअसल, AG ने एक मामले में वकील के रूप में उनकी जगह महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड के वकील पर आपत्ति जताई. कोर्ट का सख्त रुख देखते हुए बोर्ड के वकील ने फौरन माफी मांग ली. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो वक्फ बोर्ड की इस चिट्ठी को कोर्ट के रिकॉर्ड पर रख रहे हैं ताकि 19 अगस्त को अगली सुनवाई पर माय लॉर्ड्स इस पर विचार कर सकें. कोर्ट अब इस मामले पर 19 अगस्त को सुनवाई करेगा.
दरअसल SC महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ वक्फ द्वारा दायर अपीलों के एक बैच की सुनवाई कर रहा है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मुद्दे पर विचार करने का फैसला किया है कि क्या एक चेरिटेबल ट्रस्ट सिर्फ इसलिए वक्फ संपत्ति बन जाएगा क्योंकि ये किसी मुस्लिम द्वारा शुरू किया गया है. इस मामले को AG ने दो सप्ताह टालने की मांग की थी क्योंकि वह अस्वस्थ थे लेकिन उसके एक वकील ने खुद को बोर्ड के वकील के रूप में पेश करते हुए एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया था कि चूंकि मामला अत्यावश्यक प्रकृति का है, इसलिए वक्फ बोर्ड ने मामले को आगे बढ़ाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की है. इसके बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखकर महाराष्ट्र सरकार के निर्णय के प्रति नाराज़गी जताई. रजिस्ट्रार ( ज्यूडिशियल) को लिखी चिट्ठी में वेणुगोपाल ने कहा है कि महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड में वकील के तौर पर उनको हटाकर मनमानी की गई है. ये कोर्ट की अवमानना है. सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करे क्योंकि अंतिम समय में ऐसे अप्रत्याशित बदलाव करना कोर्ट के आदेश और संवैधानिक पद का अपमान है. वेणुगोपाल ने कहा है कि उस मामले में उन सहित कई वकील महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की पैरवी करते हैं लेकिन बिना किसी सूचना के उनको ही हटाया जाना न्यायिक प्रक्रिया और प्रबंधन में हस्तक्षेप है.
अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को भेजी चिट्ठी में लिखा, "बिना जानकारी के उनके एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को बदल दिया गया. 11 साल से यानी 2011 से जावेद शेख मुझे वक्फ बोर्ड के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के तौर पर ब्रीफ देते रहे हैं.मेरी निगाह में शेख वक्फ लॉ के मामले में माहिर वकील हैं. इतनी ऑथोरिटी वाले वकील को पद से क्यों हटाया गया इसका कारण भी सरकार ने नहीं बताया. पिछली सुनवाई में सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकर नारायण ने कोर्ट को बताया था कि इस मामले में अटॉर्नी जनरल लीड करेंगे लेकिन गोपाल शंकर नारायण ने अब खुद को मामले से पीछे खींच लिया है. आखिरी समय में इस तरह अटॉर्नी जनरल को टारगेट करना और ऐसे उसमें बदलाव करना अप्रत्याशित और मनमाना है, यह न्याय के हित में भी नहीं है. इसमें तो साफ साफ कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए. AOR के नाम में ऐसा बदलाव उनके प्री ऑडियंस के अधिकार में कोई कटौती नहीं कर सकता. क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 76(3) के तहत जब अटॉर्नी जनरल अपने अधिकारों का इस्तेमाल करता है तो वो सिर्फ एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के निर्देशन और सलाह पर नहीं चलता."
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