राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections Result 2023) में प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नजर अब चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों (Loksabha Elections 2024) पर लगी है. बीजेपी ने हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में जीत की हैट्रिक लगाई. अब तीनों राज्यों में बीजेपी ने सीएम के नाम से सरप्राइज की भी हैट्रिक लगाई है. बीजेपी नेतृत्व ने पहले छत्तीसगढ़ में सभी अटकलों को दरकिनार करते हुए विष्णुदेव साय को सीएम चुना. फिर मध्य प्रदेश में शिवराज का राज पर फुल स्टॉप लगाते हुए डॉ. मोहन यादव को सत्ता की कमान सौंपी. अब मंगलवार को राजस्थान में वसुंधरा राजे को ड्रॉप करते हुए पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को सीएम बना दिया. बीजेपी इन तीन राज्यों के मुख्यमंत्री के जरिए 2024 के सियासी समीकरण को मजबूत करने का दांव चल रही है. आइए समझते हैं कि नए मुख्यमंत्रियों के सिलेक्शन को लेकर बीजेपी का गेम प्लान क्या है?
एक हफ्ते की सीक्रेट डील-मेकिंग और विपक्ष की तीखी आलोचनाओं के बाद बीजेपी ने तीन बड़े कदम उठाए. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सीएम के तौर पर बीजेपी की पसंद राज्य-केंद्रित जाति/वर्ग समीकरण के लिए नहीं, बल्कि अलग-अलग समुदायों और जातियों के क्षेत्रीय प्रसार के लिए भी एक संकेत है. इसे आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मास्टर प्लान माना जा रहा है. छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहां आदिवासी समुदायों की आबादी 32 प्रतिशत है. बीजेपी ने एक आदिवासी नेता को सत्ता का मुखिया चुना है. पार्टी किसी ओबीसी या अन्य पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री पर भी समझौता कर सकती थी, लेकिन आदिवासी बहुल सीटों पर प्रभावशाली प्रदर्शन ने बाकी विकल्पों की अहमियत कम कर दी.
अब बात राजस्थान की. यहां ब्राह्मण समुदाय की आबादी लगभग 7 प्रतिशत है. बीजेपी ने मुख्यमंत्री के रूप में एक ब्राह्मण को चुना है. जबकि दीया कुमारी सिंह (राजपूत) और प्रेम चंद बैरवा (दलित) को डिप्टी सीएम बनाया गया है.
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यह कोई नई बात नहीं है कि बीजेपी या कोई भी पार्टी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण समुदायों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को चुनती है. हिंदी हार्टलैंड के 3 सीएम चुनने के पीछे सवाल ये है कि क्या ये बीजेपी का कोई नया प्लान है. तीनों राज्यों के मुखिया के तौर पर बीजेपी की पसंद समुदायों और जातियों के क्षेत्रीय प्रसार का भी संकेत है.
छत्तीसगढ
3 दिसंबर को विधानसभा चुनावों में वोटों की काउंटिंग के समय एक बार जब यह सामने आया कि बीजेपी ने राज्य के सरगुजा और बस्तर के आदिवासी इलाके में 26 में से 22 सीटें जीत ली हैं, तो पार्टी के पास उस समुदाय के एक सदस्य को मुख्यमंत्री के रूप में चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. ये विकल्प विष्णुदेव साय ही थे.
हालांकि, बीजेपी के लिए विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री के रूप में चुनना सिर्फ आदिवासी मतदाताओं को स्वीकार करने से कहीं ज्यादा था. साय का चुनाव लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य में पार्टी के लिए एक मजबूत प्लेटफॉर्म तैयार करना था.
छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे 6 राज्यों में से 2 राज्यों- मध्य प्रदेश और झारखंड में आदिवासियों की संख्या अच्छी-खासी है.मध्य प्रदेश में आदिवासी आबादी करीब 22 फीसदी और झारखंड में 26 प्रतिशत आदिवासी आबादी है. एक अन्य सीमावर्ती राज्य और राष्ट्रपति मुर्मू के गृह राज्य ओडिशा में आदिवासी समुदायों की आबादी 23 प्रतिशत से ज्यादा है.
छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री के रूप में चुनकर बीजेपी ने 2024 के चुनावों से पहले इन राज्यों में खुद को आदिवासी-हितैषी चेहरे के रूप में पेश किया है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में संयुक्त रूप से 75 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से 20 सीटें आदिवासी समुदायों के लिए रिर्जव हैं, जो एक प्रमुख वोट बेस हैं.
मध्य प्रदेश
छत्तीसगढ़ के सीमा पार भी बीजेपी आदिवासी वोटों पर कड़ी नजर रख रही है. पार्टी ने एसटी उम्मीदवारों के लिए रिजर्व 47 विधानसभा सीटों में से 24 पर जीत हासिल की. राज्य की डेमोग्राफिक मेकअप में कम महत्वपूर्ण इस समुदाय को खुश करने के लिए बीजेपी ने जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम चुना है. जबकि ब्राह्मण चेहरे राजेंद्र शुक्ला को दूसरा डिप्टी सीएम बनाया गया है. ऐसा करके बीजेपी ने राज्य में उच्च जाति के मतदाताओं को खुश रखने की संतुलित कोशिश की है.
मध्य प्रदेश में यादव कुल आबादी का सिर्फ 6 फीसदी हैं. वे बिहार में सबसे बड़ा ओबीसी समूह (14 प्रतिशत से अधिक) हैं. साथ ही यूपी में आबादी का लगभग 10 प्रतिशत यानी कुल 30 प्रतिशत हैं. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में एक यादव चेहरा तीन राज्यों में फैले समुदाय के सशक्तिकरण का संदेश है, जो कुल मिलाकर 149 सांसदों को संसद भेजता है. इसे विपक्ष में यादवों- यूपी में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव पर कटाक्ष के रूप में भी देखा गया है.
राजस्थान
राजस्थान में बीजेपी ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को राज्य का मुखिया बना दिया है. उनके पास अब तक मंत्री पद का कोई अनुभव नहीं है, लेकिन वे अब सीएम की जिम्मेदारी निभाएंगे. भजनलाल शर्मा अपने वैचारिक गुरु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं. वो आरएसएस की फेवरेट लिस्ट में शुमार हैं. संघ के साथ-साथ संगठन के भी करीबी माने जाते हैं. विधायकों के ग्रुप फोटो में भजनलाल तीसरी लाइन में लगभग छिपे हुए बैठे थे. अचानक विधायक दल का नेता चुने जाने पर खुद उन्हें भी भरोसा नहीं हुआ.
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राजस्थान में अब तक सीएम की कुर्सी के लिए वसुंधरा राजे की मजबूत दावेदारी थी. राजे सिंधिया राजघराने की वंशज हैं और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. स्थानीय बीजेपी नेताओं पर उनका जबरदस्त प्रभाव है. जनता उन्हें काफी पसंद करती है.
राजस्थान में ब्राह्मण राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नहीं हैं. हालांकि, पड़ोसी राज्यों का संयुक्त आंकड़ा इसे बीजेपी को पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में मदद करने के लिए संभावित रूप से महत्वपूर्ण वोट बैंक बनाता है.
यूपी राजस्थान की पूर्वोत्तर सीमा से लगी हुई है. यहां ब्राह्मण आबादी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा है, जो 'जनरल कैटेगरी' के मतदाताओं में सबसे बड़ा है. हरियाणा में उनकी संख्या और भी बड़ी है (लगभग 12 प्रतिशत). वहीं, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ये करीब 5 फीसदी हैं. ये राज्य लोकसभा में 145 सांसद भेजते हैं, जिनमें से 114 'जनरल कैटेगरी' सीटों से हैं.
यह सीटों का एक बड़ा हिस्सा है, जिसे बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकती. भले ही वह उसके मूल वोट बैंक का हिस्सा न हो. संभवतः, इसीलिए इसने राजस्थान में ब्राह्मण समुदाय की पसंद को दोगुना कर दिया है. जयपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य दीया कुमारी को राजस्थान का डिप्टी सीएम बनाया गया है. वह दो भूमिकाओं में फिट बैठती हैं - एक राजपूत चेहरा और एक महिला नेता. दूसरे डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा हैं, जो दलित समुदाय से हैं. बीजेपी ने राजस्थान में भी संतुलित जातीय समीकरण साधे हैं.
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