असम (Assam) के नगांव में एक पुलिस स्टेशन में एक शख्स की कथित मौत के बाद गुस्साई भीड़ ने शनिवार को थाने में आग लगा दी थी. इस घटना में तीन लोग घायल हुए थे. असम पुलिस ने मामले की जांच के लिए एक SIT का गठन किया है. साथ ही मामले की गंभीरता को बटादेव थाना प्रभारी को निलम्बित कर दिया गया है. इसके अलावा सफीकुल इस्लाम की कथित हिरासत में मौत की अलग से जांच के आदेश भी दिए गए हैं. असम पुलिस सूत्रों ने बताया कि मामले में फोरेंसिक टीम जांच करेगी कि क्या भीड़ ने केरोसिन, पेट्रोल लाया था और थाने में आगजनी की थी.
सूत्रों ने बताया कि हिरासत में हुई मौत की जांच में भी फोरेंसिक टीम मदद करेगी. पुलिस अधिकारियों ने बताया है कि पुलिस थाने में तोड़फोड़ और आग लगाने के आरोप में अब तक 21 लोगों को हिरासत में लिया गया है. अधिकारियों ने बटाद्रवा के सलोनाबरी में पुलिस थाने में आगजनी के तीन मुख्य आरोपियों की झोपड़ियों और घरों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया है. सरकारी सूत्रों का दावा है कि ये झोपड़ियां 'अतिक्रमण' कर बनाई गई थीं.
असम में कथित हिरासत में मौत को लेकर गुस्साई भीड़ ने पुलिस थाने में आग लगाई
इधर घटना के एक दिन बाद रविवार को असम के डीजीपी भास्कर ज्योति महंता (Assam DGP Bhaskar Jyoti Mahanta) ने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखकर बताया है कि थाने में क्या हुआ था. डीजीपी ने लिखा है, "सफीकुल इस्लाम (39 वर्ष) को शराब के नशे में होने की शिकायत मिलने के बाद 20 मई, 2022 की रात 9:30 बजे बटाद्रवा थाने लाया गया था. असल में थाने लाए जाने से पहले वह एक सार्वजनिक सड़क पर गिरा पड़ा था. मेडिकल जांच के बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. अगले दिन उसे छोड़ दिया गया और उसकी पत्नी को सौंप दिया गया. उसकी पत्नी ने उसे कुछ पानी/भोजन भी दिया. बाद में उन्होंने बीमारी की शिकायत की और उन्हें एक के बाद एक दो अस्पतालों में ले जाया गया. दुर्भाग्य से उन्हें मृत घोषित कर दिया गया."
डीजीपी ने आगे लिखा है, "हम इस दुर्भाग्यपूर्ण मौत को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं और बटाद्रवा थाना के ऑफिस इन चार्ज को निलंबित कर दिया है. थाने के बाकी कर्मचारियों को भी बंद कर दिया गया है. यदि हमारी ओर से कोई गड़बड़ी हुई है, तो हम उसकी जांच करेंगे और दोषियों को कानून के अनुसार दंडित करेंगे. इसमें कोई संदेह नहीं है."
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डीजीपी ने थाने फूंकने की घटना का भी जिक्र किया और लिखा है, "उस दिन बाद में क्या हुआ, हम सभी जानते हैं. कुछ स्थानीय असामाजिक तत्वों ने कानून अपने हाथ में ले लिया और थाने को जला दिया. ये बुरे तत्व स्त्री, पुरुष, युवा और वृद्ध सभी रूपों में आए लेकिन जिस तैयारी के साथ वे आए, पुलिस बल पर उन्होंने जिस क्रूर और संगठित हमले को अंजाम दिया, उसने हमें गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया है. हमें नहीं लगता कि ये मृतकों के शोक संतप्त रिश्तेदार हैं, लेकिन जैसा कि हमने पहचाना है, वे बुरे चरित्र वाले और आपराधिक रिकॉर्ड वाले और उनके रिश्तेदार थे- जो थाने के अंदर रखे रिकॉर्ड और सारे सबूत जला गए. तो यह मत सोचिए कि यह एक साधारण एक्शन-रिएक्शन की घटना है. इसमें और भी बहुत कुछ है."
गौरतलब है कि बटाद्रवा पुलिस थाने की पुलिस ने सफीकुल इस्लाम को सालनाबारी इलाके से हिरासत में लिया था और कथित तौर पर 10 हजार रुपये की रिश्वत उससे मांगी थी. भीड़ में शामिल लोगों ने आरोप लगाया है कि रिश्वत की राशि देने में असमर्थ होने के कारण पुलिस ने मछली बेचने वाले सफीकुल इस्लाम की हत्या कर दी.
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मृतक के परिवार ने दावा किया है कि पुलिस ने हिरासत में सफीकुल इस्लाम के साथ मारपीट की. उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि जब वे थाने में उनसे मिलने गए थे, तो उन्हें बताया गया कि वह अस्वस्थ हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. अस्पताल पहुंचने पर परिवार को पता चला कि इस्लाम मर चुका है और उसके शव को मुर्दाघर में रख दिया गया है.
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