हरियाणा के नूंह में जिस पैमाने पर हिंसा हुई, उसे लेकर पुलिस और प्रशासन पर कई सवाल खड़े होते हैं. खासकर तब जब इस क्षेत्र में संघर्ष का इतिहास रहा है. इस क्षेत्र के विशिष्ट सामाजिक नैतिक मानकों, सामाजिक संकेतकों (सोशल इंडिकेटर्स) और अपराधिक रिकॉर्ड के लोगों की मौजदूगी, विशाल लाल झंडों के साथ तैयारियों, संसाधनों को लेकर माहौल भांपने में बुद्धिमत्ता की कमी के लिए अधिकारियों की आलोचना की जा रही है.
सोशल इंडिकेटर्स में नीचे, क्राइम में ऊपर
नूंह भारत के सिंगापुर कहे जाने वाले गुरुग्राम से सिर्फ 57 किमी दूर है. दिल्ली से बमुश्किल तीन घंटे की ड्राइव कर यहां पहुंचा जा सकता है. नूंह देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है. हालिया हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि नूंह में केवल 51 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं. यह जिला राजस्थान के भरतपुर के बाद उत्तरी भारत में सबसे गरीब जिला है.
मुस्लिम आबादी के मामले में नूंह भारत के 640 जिलों में 14वें स्थान पर है. यह हरियाणा का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल जिला है. सत्तारूढ़ बीजेपी ने नूंह को आकांक्षी (पिछड़े) जिलों की लिस्ट में रखा है, लेकिन यह जिला कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के भी रडार पर था.
नूंह 2008 में बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के लिए चुने गए देश के 90 जिलों में से एक था. सच्चर समिति के निष्कर्षों के मुताबिक यहां भारतीय मुसलमानों और अन्य समूहों के बीच शिक्षा, रोजगार और कमाई में असमानताएं थीं.
क्राइम में हाई रेट
नूंह अपराध के मामले में टॉप पर है, लेकिन पिछले पांच साल में यहां हुई किसी भी झड़प को सांप्रदायिक दंगे के रूप में नहीं देखा गया. हालांकि, गौरक्षकों से संबंधित कई घटनाएं हुई हैं. गौरक्षकों का एक लंबा चौड़ा नेटवर्क यहां काम करने के लिए जाना जाता है. यह क्षेत्र कई देहाती समुदायों का घर है, जो गाय का सम्मान करते हैं. हरियाणा में गाय तस्करी के लगभग तीन-चौथाई मामले नूंह में होते हैं.
हाल में हुई वारिस खान हत्याकांड और पशु व्यापारियों जुनैद-नासिर की हत्याओं ने इस क्षेत्र में गौरक्षक नेटवर्क की मौजूदगी की ओर ध्यान आकर्षित किया है. विशेष रूप से मोनू मानेसर की चर्चा ज्यादा है, जो काफी प्रभाव वाला एक प्रमुख गौरक्षक बताया जाता है.
साइबर क्राइम का हब
नूंह पिछले तीन साल में साइबर क्राइम के लिए एक ब्रीडिंग ग्राउंड बनकर उभरा है. खासतौर पर यह क्षेत्र साइबर ठगों के लिए जाना जाता है. ऐसे ठग सेक्सटॉर्शन, फर्जी वर्क-फ्रॉम-होम जॉब ऑफर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी प्रोफाइल के साथ हनी ट्रैप जैसे क्राइम करते हैं. इसके अलावा अलग-अलग प्रोडक्ट के लिए रिव्यू पोस्ट करने से कमाई का लालच देकर भी ठगी की जाती है. गृह मंत्रालय की ओर से जारी हाल के आंकड़ों में कहा गया है कि मेवात क्षेत्र (जिसमें राजस्थान के भरतपुर और अलवर, उत्तर प्रदेश में मथुरा और हरियाणा में नूंह शामिल है) ने साइबर अपराधियों के लिए भारत के सबसे नए केंद्र के रूप में झारखंड में जामताड़ा की जगह ले ली है.
नूंह के साइबर अपराधियों ने 35 राज्यों के लोगों को ठगा है. पुलिस ने दो महीने पहले कहा था कि 140 स्थानों पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किए गए 66 लोगों में से ज्यादातर की उम्र 18 से 35 साल के बीच थी.
समन्वयवाद और संघर्ष का इतिहास
नूंह मेवात का सबसे बड़ा जिला है. ये एक शहर से अधिक भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है. मेवात क्षेत्र हरियाणा से आगे तक फैला हुआ है. इसमें पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्से शामिल हैं. क्षेत्र में प्रमुख समुदाय, मेवात के मेव मुसलमानों की एक अलग पहचान है. उनकी कई सांस्कृतिक प्रथाएं गुज्जर, जाट, मीना और अहीर जैसे हिंदू समुदायों के समान हैं. बड़े पैमाने पर राजपूत हिंदुओं से इस्लाम में परिवर्तित हुए. मेव मुसलमानों की एक जाति संरचना है, जो उनकी हिंदू जड़ों से प्रभावित है. मेव मुसलमानों के पास हिंदू समुदायों की तरह ही गोत्र और खाप पंचायतें होती हैं. कई लोग गाय के प्रति अपने प्रेम या भगवान कृष्ण से जुड़ी उनकी उत्पत्ति की मान्यता रखते हैं.
10वीं और 18वीं शताब्दी के बीच मेव समुदाय तब्लीगी जमात जैसे संगठनों के प्रभाव में परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरा था. तब्लीगी जमात ने कुरान की शिक्षाओं और बिना किसी सांस्कृतिक कमजोरियों के इस्लाम की प्रथाओं का पालन करने पर जोर दिया. इस क्षेत्र में मुस्लिम और हिंदू दोनों समूह सक्रिय हैं. इससे मतभेद और बढ़ गए हैं. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने कहा है कि पांडवों (महाकाव्य महाभारत युद्ध से) और भगवान कृष्ण के समय से चले आ रहे नूंह और मेवात का हिंदुओं के लिए बहुत महत्व है.
पुलिस की निष्क्रियता पर उठते सवाल
नूंह में हुई हिंसा के लिए खुफिया विभाग, पुलिस और प्रशासन के बीच तालमेल की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. स्थिति को काबू में करने के लिए उपद्रवियों को समय पर हिरासत में लेने में नाकामी को लेकर पुलिस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. वहीं, धार्मिक यात्रा से पहले विभिन्न जिलों से भीड़ जुटाने के बारे में प्रशासन की स्पष्ट जागरूकता की कमी पर भी चिंताएं जाहिर की गई हैं.
हाल के वर्षों में विहिप की ओर से आयोजित की गई यात्राओं को क्षेत्र में हिंदू पवित्र स्थानों को पुनर्जीवित करने की तरह प्रचारित किया गया था. मेवात के एक व्यापारी भीम सिंह सिंगारिया ने कहा, "अब समय आ गया है कि पुलिस अवैध हथियार रखने वालों पर कार्रवाई करे. हथियारों को जब्त करे और उनके मालिकों पर कानून के अनुसार मुकदमा चलाए."
पुलिस सुधारों के लिए संघर्ष करने वाले रिटायर्ड आईपीएस प्रकाश सिंह ने भी ऐसी ही मांग की है. उन्हें 2016 में जाट समुदाय के विरोध प्रदर्शन के दौरान राज्यव्यापी हिंसा की जांच करने वाली एक समिति का नेतृत्व करने के लिए कहा गया था. उन्होंने कहा, "...पुलिस यह भूल गई थी कि वह राज्य का मजबूत हाथ है. जब राज्य की सत्ता को चुनौती दी जाती है, तो उससे उचित एक्शन लेने की उम्मीद की जाती है. अधिकारियों ने कानून होने पर भी निर्देशों के लिए अपने राजनीतिक आकाओं की ओर देखना शुरू कर दिया है.'' तब रिपोर्ट में हरियाणा पुलिस के बारे में कहा गया था, "राज्य पुलिस की ताकत बढ़ाने और प्रति लाख लोगों पर कम से कम 200 पुलिसकर्मियों की ताकत हासिल करने की जरूरत है."
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