अमरावती के कथित भूमि घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि पुनर्विचार की अदालत की शक्ति की तुलना पिछली सरकार के कार्यों की समीक्षा के अधिकार से नहीं हो सकती. कोई मौजूदा सरकार पिछली सरकार के कामों की समीक्षा इस तर्क के साथ नहीं कर सकती कि अदालतें भी तो पिछली पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करती हैं. अदालतों वाला अधिकार किसी सरकार को नहीं मिल सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पिछली सरकार के आचरण पर गौर करने की कार्यपालिका की शक्ति की तुलना किसी फैसले पर 'पुनर्विचार' करने की अदालतों की शक्ति से की ही नहीं जा सकती. ऐसे में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला उचित नहीं है. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 15 सितंबर, 2020 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर विचार कर रही थी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अमरावती भूमि घोटाले सहित भ्रष्टाचार के आरोपों पर पिछली सरकार के आचरण की जांच के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि, हम योग्यता पर नहीं बल्कि हाईकोर्ट के तर्क पर ध्यान दे रहे हैं. पुनर्विचार करने के लिए न्यायालयों की शक्ति की तुलना सरकार की शक्ति से नहीं की जा सकती.
अपने 2020 के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि कार्यपालिका का निर्णय 'पुनर्विचार' के बराबर है. किसी विशिष्ट कानून के अभाव में समीक्षा की किसी शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता. इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने न्यायालय के न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति और कार्यपालिका की जांच की शक्ति के बीच समानता बनाकर खुद को पूरी तरह से गुमराह किया है.
सिंघवी ने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने जिस आधार पर फैसला दिया वह पूरी तरह से अनुपयुक्त है. उन्होंने हाईकोर्ट के इस तर्क पर भी आपत्ति जताई कि क्रमिक सरकारें मात्र राजनीतिक कारणों से पूर्ववर्ती सरकार की परियोजनाओं या नीतियों पर फिर से विचार नहीं कर सकतीं. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यपालिका के विवेकाधिकार की जांच करने के लिए उसके पास नीतिगत निर्णयों पर पुनर्विचार करने की शक्ति है.
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