ये कहानी है 'आपदा में अवसर' की. मध्यप्रदेश नर्सिंग होम एक्ट के तहत रजिस्टर्ड अस्पतालों के जो रिकॉर्ड NDTV को मिले हैं उससे साफ है कि कैसे कोरोना की पहली और दूसरी लहर में धड़ाधड़ अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. हालत यह है कि एक ही डॉक्टर 8-10 अस्पतालों में रेसिडेंट डॉक्टरों के नाम से रजिस्टर्ड हैं. मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल का लाइसेंस मिला है लेकिन अस्पताल में एक डॉक्टर तक नहीं है.भोपाल के ऐशबाग इलाके में भारती मल्टीकेयर अस्पताल है, अप्रैल 2021 में रजिस्ट्रेशन हुआ है. यहां जनरल सर्जरी, इंटरनेल मेडिसिन, गायनोकोलॉजी जैसी कई सेवाएं हैं. ऑपरेशन थियेटर, आईसीयू, वॉर्ड का बोर्ड है, 9 बिस्तर लगे हैं लेकिन और कोई सुविधा नहीं है. दस्तावेजों में जिन डॉक्टरों के नाम से अस्पताल का रजिस्ट्रेशन हुआ है उनमें से कोई यहां काम नहीं करता है. यहां काम करने वाले मयंक कहते हैं, 'जो भी सवालों के जवाब हैं वो अस्पताल के निदेशक देंगे.'
यहां से 2 किलोमीटर दूर आशा मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल है, इसका रजिस्ट्रेशन भी अप्रैल 2021 में हुआ है, दस्तावेजों के मुताबिक यहां गैस्ट्रो, जनरल सर्जरी, गायनोकोलॉजी, ऑर्थोपैडिक, एंडोक्रिनोलॉजी जैसी कई सेवाएं हैं. कम से कम कागजों पर हैं. यहां भी ICU में दो बिस्तर लगे हैं, बस वैसे जो रेट कार्ड है वहां ICU का चार्ज प्रतिदिन 3000 रु लिखा है. स्टाफ से बात करने पर पता लगा कि दिन में एक आयुर्वेद के डॉक्टर रहते हैं, शाम को कोई एमबीबीएस आते हैं लेकिन जिन डॉक्टरों के नाम से अस्पताल रजिस्टर्ड है, उनमें से कोई नहीं. इन दोनों अस्पतालों में एक बात साफ है कि जिन डॉक्टरों के नाम से रजिस्ट्रेशन हुआ है वो यहां काम नहीं करते हैं.
भोपाल के भारती मल्टीकेयर में रेंसिडेंट डॉक्टर, डॉ हरिओम वर्मा, 104 किमी दूर शुजालपुर के शुगनदेवी अस्पताल में भी रेसिडेंट डॉक्टर हैं. दस्तावेजों को खंगालने पर पता लगा कि अलग-अलग अस्पतालों के 9 अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर हैं. डॉ गौतम चंद्र गोस्वामी जैसे डॉक्टर 22 अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर हैं जबकि डॉ गौतम बनर्जी 19 अस्पतालों में. इसे आप 'आपदा में अवसर' कहिये या कुछ और. राजधानी भोपाल में कुल 503 अस्पताल, पैथोलॉजी लैब, डेंटल क्लीनिक हैं लेकिन 212 कोरोना काल यानी जनवरी 2020 से मई 2021 खुले हैं. इस अवधि में सिर्फ अस्पतालों की बात करें तो भोपाल में 104 अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन हुए हैं. इनमें भी 29 अस्पताल मार्च-अप्रैल-मई में खुले. राज्य के 3 और बड़े शहरों को लें तो इंदौर में 274 अस्पताल हैं, 48 पिछले सालभर में खुले, जबलपुर में 138 में 34 सालभर में खुले जबकि ग्वालियर में 360 में 116 पिछले एक साल में खुले. NDTV को दो दस्तावेज मिले हैं, वो बताते हैं कि इनमें 1-1 डॉक्टरों के नाम 8-10 अस्पतालों में भी बतौर रेजिडेंट डॉक्टर दर्ज हैं वो भी अलग-अलग शहरों में. इन अस्पतालों के उदाहरण से आप समझ गये होंगे कि इनके रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेशन जारी करते वक्त न तो सुविधा जांची गई और न ही डॉक्टरों के नाम.
जब इन सवालों के जवाब हमने चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से मांगे तो उन्होंने कहा, 'नेशनल मेडिकल काउंसिंल के नियम का पालन करना जरूरी है, सही मायने में एक व्यक्ति को एक जगह काम करना है मुझे नहीं लगता है ऐसी स्थिति होगी लेकिन शिकायत आएगी तो जांच होगी कार्रवाई भी.' मंत्रीजी को नहीं लगता इसलिए हमने दोनों अस्पताल उसी इलाके के ढूंढे जो उनका विधानसभा क्षेत्र भी है. जानकार कहते हैं कोई एमबीबीएस डॉक्टर अधिकतम 2 अस्पतालों में बतौर रेसीडेंट ड्यूटी कर सकता है. नर्सिंग होम में रेसीडेंट डॉक्टर 8 घंटे की वार्ड ड्यूटी करता है.ये हैरत की बात है कि सालभर में अकेले भोपाल में 104 अस्पतालों को मान्यता मिल गई. जाहिर सी बात है कि सरकारी किताब में उन्होंने सारे नियम पूरे किए होंगे लेकिन सरकारी अस्पतालों में कोरोना ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों को 18-18 घंटे ड्यूटी करनी पड़ रही है. वजह है डॉक्टरों की कमी.
अभी प्रदेश में 5000 डॉक्टरों की जरूरत है. 13 मेडिकल कॉलेजों में 1000 तो सरकारी अस्पतालों में 4000 डॉक्टरों के पद खाली हैं. 16 हजार नर्सिंग स्टाफ की कमी है. वैकेंसी भी निकली लेकिन कोई नहीं आया, देश में अभी 11082 लोगों पर औसतन एक सरकारी डॉक्टर है. मध्य प्रदेश में अभी 16996 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1000 पर एक डॉक्टर होना चाहिये, ऐसा कैसे हुआ कि इन अस्पतालों ने सारी शर्तें पूरी कर दी जब राज्य के तमाम जिला अस्पतालों में 794 आईसीयू बेड थे और मेडिकल कॉलेजों में 3660 और उन्हें डॉक्टर तक नहीं मिल रहे थे.
ऐसे में हैरत नहीं कि सारे अजब-गजब मामले मध्यप्रदेश में ही हो रहे हैं.कुछ दिनों पहले सीरम इंस्टीट्यूट को जबलपुर के किसी मैक्स हेल्थ केयर इंस्टीट्यूट से 10 हजार कोविशील्ड डोज का ऑर्डर मिला. वैक्सीन मिलने के पहले जांच शुरू हुई तो चौंकाने वाली बात पता चली. वो ये कि मैक्स हेल्थ केयर इंस्टीट्यूट नाम का कोई भी अस्पताल जबलपुर में नहीं है. ज़िला टीकाकरण अधिकारी शत्रुघ्न दाहिया ने बताया, 'मैंने अस्पताल को खोजने की कोशिश की ऐसा कोई अस्पताल जबलपुर में नहीं है, ये जानकारी मैंने शासन को दे दी. सीरम कंपनी ने बोला है ये ऑर्डर प्लेस किया गया है ये जानकारी मैंने शासन स्तर पर भेज दी है.' इस खबर के बाद सरकार क्या कर सकती है, वह गलत जानकारी के लिये नर्सिंग होम का रजिस्ट्रेशन निरस्त कर सकती है, डॉक्टर का मेडिकल काउंसिल रजिस्ट्रेशन निरस्त हो सकता है, लेकिन क्या ये सिर्फ दो लोगों की मिलीभगत है. उन अधिकारियों का क्या, जिन्होंने जानबूझकर या लालच में आंखें मूंदी, और उस सरकार का क्या जिसके राज में ये सब होता रहा.
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