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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अब केंद्र की राजनीति में दिखाई देंगे. कन्नौज से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा से इस्तीफा देंगे. अगर ऐसा हुआ तो पत्नी डिंपल यादव के साथ अखिलेश संसद में नरेंद्र मोदी सरकार पर डबल अटैक करते दिखाई देंगे. डिंपल यादव इस बार मैनपुरी से चुनाव जीती हैं. 18वीं लोकसभा में पति-पत्नी की देशभर में ये एकमात्र जोड़ी है.
इससे पहले 17वीं लोकसभा में भी अखिलेश यादव और डिंपल यादव चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे, लेकिन अलग-अलग समय में. पिछली बार अखिलेश आजमगढ़ से चुनाव जीते लेकिन डिंपल कन्नौज से नहीं जीत सकीं. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उपचुनाव में डिंपल मैनपुरी से जीतकर संसद पहुंची, लेकिन तब तक अखिलेश करहल विधानसभा सीट से निर्वाचित होकर यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए थे. इसकी वजह से संसद सदस्यता से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.
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पप्पू यादव और रंजीत रंजन भी साथ पहुंच चुके हैं संसद
इससे पहले बिहार से पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन भी साथ में लोकसभा पहुंच चुके हैं. दोनों 2004 और 2014 में दो बार एक साथ चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे थे. हालांकि तब दोनों अलग-अलग पार्टियों में थे. इस बार भी पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं. वहीं उनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस से राज्यसभा की सांसद हैं. पप्पू-रंजीत की जोड़ी इस बार भी संसद में होंगे, लेकिन वो अलग-अलग सदन का हिस्सा होंगे.
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धर्मेंद्र और हेमा मालिनी भी एक वक्त में एक साथ संसद में रहे
वहीं अभिनेता धर्मेंद्र और अभिनेत्री हेमा मालिनी भी एक वक्त में एक साथ संसद में रहे हैं. हालांकि दोनों अलग-अलग सदन में थे. धर्मेंद्र जहां बीकानेर से चुनाव जीतकर 2004 से 2009 तक लोकसभा में थे, तो वहीं 2003 से 2009 तक हेमा मालिनी राज्यसभा की सदस्य थीं.
अखिलेश के नेतृत्व में यूपी में सपा की चमत्कारिक वापसी ने राजनीतिक पंडितों को भी हैरान कर दिया. पीएम मोदी की लोकप्रियता और बीजेपी द्वारा राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने के बावजूद सपा का शानदार चुनावी प्रदर्शन जमीनी स्तर पर अखिलेश की लोकप्रियता और उनकी राजनीतिक सूझबूझ को दर्शाता है.
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समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद लोकसभा चुनावों में ये अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश ने न केवल अपनी पारिवारिक एकता कायम की, बल्कि 2019 में बसपा से गठबंधन के बावजूद सिर्फ पांच सीटें जीतने वाली सपा ने अकेले (यादव) परिवार में ही पांच सीटें हासिल कर ली हैं।
चुनाव से पहले अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ तालमेल बिठाया और उन्होंने पार्टी को अपने पारंपरिक मतदाताओं तक पहुंचने में मदद की, जिनमें से अधिकांश यादव जाति से हैं और राज्य के पूर्वी और मध्य भागों में फैले हुए हैं.
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लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी समाजवादी पार्टी के प्रमुख ने कहा, "जब सपा देश में तीसरे नंबर पर पहुंची है, तो हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ी है. सदन चलेगा तो वहां जनता और संविधान के सवालों को रखा जाएगा."
बड़ी जीत और बढ़े मनोबल के साथ अखिलेश अभी से हुंकार भरने लगे हैं. उन्होंने कहा, "ये बीजेपी की मनमर्जी के खिलाफ जनता की मर्जी की जीत हुई है. समाजवादी पार्टी का पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) वास्तविक एजेंडा है, जिसमें सामाजिक न्याय की अवधारणा है. ये एक पड़ाव है, पार्टी की लड़ाई लंबी है. अब हमें 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी है."
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