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IIM लखनऊ में गौतम अदाणी ने छात्रों को सुनाई अपनी कामयाबी की कहानी, कहा- आपमें दिखता है न्यू इंडिया

अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने आईआईएम लखनऊ के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि 16 साल की उम्र में मैंने अपना घर छोड़ा और हीरा व्यापार में हाथ आजमाने मुंबई चला गया. यह जोखिम, संबंधों और वैश्विक नेटवर्क की शक्ति से मेरा पहला वास्तविक परिचय था.

  • गौतम अदाणी ने IIM लखनऊ के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्हें विकसित भारत का भविष्य बताया.
  • उन्होंने कहा कि सफलता पढ़ाई से नहीं बल्कि साहस, नेतृत्व और अपनी कहानी को केस स्टडी बनाने से मिलती है.
  • अदाणी ने अपने व्यवसाय की शुरुआत मुंबई में हीरा व्यापार से की और बाद में पॉलिमर फैक्ट्री का कामकाज संभाला.
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लखनऊ:

अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने गुरुवार को भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) लखनऊ के छात्रों को संबोधित किया. इस अवसर पर उन्होंने अपनी अब तक की यात्रा को विस्तार से बताया. उन्होंने आईआईएम जैसे संस्थान को इंटेलेक्चुअल कैपिटल बताया. कहा कि यहां के छात्रों में उन्हें न्यू इंडिया के आर्किटेक्ट नजर आ रहे हैं. आईआईएम में आयोजित एक विशेष समारोह में अदाणी ग्रुप के प्रमुख ने कहा कि जब मैं आपको देखता हूं तो मुझे आपमें संभावना दिखाई देती है, एक विकसित भारत की संभावना. मुझे आपमें सर्वश्रेष्ठ भारत का सपना दिखाई देता है. उनका कहना था कि यह उस भारत पर विश्वास है, जिसे कोई रोक नहीं सकता है. यह सपना, संभावना और विश्वास... आज का मुद्दा नहीं है बल्कि भविष्य का भरोसा है.

गौतम अदाणी ने बताई सफलता की कहानी

गौतम अदाणी ने कहा कि मेरी यात्रा ने मुझे सिखाया है कि भविष्य कभी-कभी अनिश्चित और क्रूर भी होता है. इसका सामना करने के लिए आपको तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैंने सीखा है और लगातार सीख रहा हूं. रीयल वर्ल्ड में इसका कोई उदाहरण नहीं होता है. उन्होंने कहा कि कभी-कभी आकंड़े अस्पष्ट होते हैं और बिजनेस मॉडल टूटा हुआ लगता है, आगे के रास्ते भी तय नहीं होते. लेकिन इससे हार नहीं माननी चाहिए. उन्होंने कहा कि सफलता इस बात से तय नहीं होती कि आपने बिजनेस में कैसे पढ़ाई की और कितने अच्छे से की है, बल्कि इससे तय होती है कि आप अपनी स्टोरी को ही केस स्टडी बना दें. इतिहास इस बात से नहीं बनता कि पहले से मौजूद मॉडल को कितने अच्छे से लागू किया गया है, बल्कि यह हमारे साहस और नेतृत्व से लिखा जाता है और नया रास्ता बनाया जाता है.

उन्होंने कहा कि पीछे मुड़कर देखने पर मैं आपको बता सकता हूं कि मेरी अब तक की यात्रा में अक्सर ऐसे क्षण आए, जब मेरे सभी संसाधन खत्म हो गए और मेरा सपोर्ट सिस्टम भी फेल हो गया, लेकिन एक चीज हमेशा मेरे साथ रही, वह था मेरा दृढ़ विश्वास कि मेरे साहसिक सपने संघर्ष के लायक हैं. मैंने हमेशा माना कि कुछ भी सार्थक हासिल करने के लिए आपकी परीक्षा ली जाएगी. जब जुनून आपका मार्गदर्शक बन जाता है और उद्देश्य आपकी ताकत, तब आप निश्चितता के साथ नहीं बल्कि विश्वास के साथ चलना शुरू करते हैं. इसलिए नहीं कि रास्ता दिखाई देता है, बल्कि इसलिए कि सपना दिखाई देता है. उन्होंने कहा कि हर महान रचना उस सपने की नींव पर टिकी होती है, जिसे पहले किसी ने नहीं देखा और उस विश्वास पर,  जिसे पहले कोई समझ नहीं सका था.

गौतम अदाणी ने कहा कि राजीव गांधी और पीवी नरसिम्महा राव की सरकार में ऐसा अवसर मिला जो किसी को जीवन में एक बार ही मिलते हैं.

गौतम अदाणी ने कहा कि राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में ऐसा अवसर मिला, जो किसी को जीवन में एक बार ही मिलता है.

कारोबार की दुनिया में ऐसे रखा कदम

गौतम अदाणी ने कहा कि मेरी उद्यमशीलता की यात्रा 16 साल की उम्र में शुरू हुई. उस उम्र में मैंने अहमदाबाद में अपना घर छोड़ दिया और हीरा व्यापार के क्षेत्र में काम करने मुंबई चला गया. यह मेरा जोखिम, रिश्तों और वैश्विक नेटवर्क की शक्ति से पहला वास्तविक परिचय था. करीब तीन साल बाद मुझे मेरे भाई की पॉलिमर फैक्ट्री का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए अहमदाबाद वापस बुलाया गया. वहां मैंने पहली बार स्केल, लॉजिस्टिक्स और पूरी सप्लाई चेन के महत्व को समझा. इस समझ ने मेरे पूरे व्यवसायिक दृष्टिकोण को आकार दिया.

अदाणी ने बताया कि राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में हुए उदारीकरण में मैंने एक ऐसा अवसर देखा, जो किसी को जीवन में एक बार ही मिलता है. इस अवसर पर अदाणी ने ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में अपनी कोयला परियोजना का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं था कि भारत में कोयले की कमी थी, बल्कि भारत में अच्छी गुणवत्ता वाले कोयले की कमी थी. हमने कार्बन उत्सर्जन कम करने और भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए वहां पर काम शुरू किया. हम ऐसे देश में काम कर रहे थे, जहां हमारे पास कोई राजनीतिक पूंजी नहीं थी, ऐतिहासिक उपस्थिति नहीं थी और कोई संस्थागत समर्थन भी नहीं था. वहां लगातार प्रतिरोध हो रहा था. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण लॉबी समूहों ने हमारे खिलाफ बहुत बड़ा अभियान चलाया. 

गौतम अदाणी ने आगे बताया कि हमें वहां पर अदालतों में आरोपों का सामना करना पड़ा. संसद में बहस हुई. हमें आलोचना झेलनी पड़ी. हमारे लोगों का उत्पीड़न किया गया. परमिट देने में भी देरी की गई. हमारी रेलवे लाइन पर सवाल उठाए गए. यहां तक कि उस जमीन पर हमारे अधिकार को चुनौती दी गई. लेकिन हमने हार नहीं मानी. इसका परिणाम यह है कि आज कारमाइकल परियोजना उद्योगों को ताकत देती है. उससे ऑस्ट्रेलिया में कई हजार लोगों की रोजी-रोटी चलती है. एक भारत-ऑस्ट्रेलियाई गलियारा बनाया गया है, जो व्यावसायिक और रणनीतिक दोनों लिहाज से अहम है.

गौतम अदाणी ने आईआईएम के छात्रों से कहा कि क्लास में बिजनेस केस स्टडी पढ़ने की जगह वो खुद ही केस स्टडी बन जाएं.

गौतम अदाणी ने आईआईएम के छात्रों से कहा कि क्लास में बिजनेस केस स्टडी पढ़ने के साथ ही वो खुद केस स्टडी बन जाएं.

कैसे देखा धारावी के पुनर्निर्माण का सपना

गौतम अदाणी ने मुंबई के धारावी में अदाणी समूह द्वारा किए जा रहे विकास की भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी है. हर बार जब मैं मुंबई के लिए उड़ान भरता हूं, नीचे की झुग्गियां मेरे विवेक को झकझोर देती हैं, क्योंकि कोई भी राष्ट्र तब तक वास्तव में प्रगति नहीं कर सकता, जब तक उसके इतने सारे लोग बिना गरिमा के जी रहे हों. कई लोगों ने मुझसे कहा कि धारावी बहुत राजनीतिक, जोखिम भरा और ऐसी जगह है, जिसे संभाला नहीं जा सकता है. यही कारण है कि मैंने कहा कि हमें इसे करना ही होगा. धारावी का पुनर्विकास केवल एक और झुग्गी पुनर्विकास कार्यक्रम की ईंटें बिछाने का प्रोजेक्ट नहीं है. यह उन 10 लाख लोगों के लिए गरिमा का पुनर्निर्माण करने के लिए है, जिन्होंने मुंबई को बनाने में मदद की, लेकिन कभी इसका लाभ नहीं उठाया.

इस अवसर पर गौतम अदाणी ने पोर्ट बनाने के अपने फैसले की भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि जब मैंने पहली बार एक पोर्ट बनाने की अपनी मंशा जताई तो ज्यादातर लोगों ने सोचा कि मैं पागल हो गया हूं... जब मैंने यह प्रस्ताव कुछ बैंकरों के सामने रखा तो उनमें से कुछ ने हंसते हुए कहा कि आप हमसे यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम उस जमीन के लिए फाइनेंस करें, जो पानी के नीचे है? उन्होंने कहा कि मुंद्रा का कोई रास्ता नहीं था, कोई उद्योग नहीं था, कोई नजीर नहीं थी... नक्शे आपको केवल वहां ले जाते हैं, जहां कोई पहले से जा चुका है, लेकिन कुछ नया बनाने के लिए, आपको एक ऐसे कंपास की जरूरत होती है, जो संभावनाओं की तरफ इशारा करे. 

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