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सियासत के किस्से: जब बलरामपुर में एक हीरो के चुनाव प्रचार से हार गए थे अटल बिहारी वाजपेयी

उत्तर प्रदेश की श्रावस्ती सीट को 2009 में परिसीमन से पहले बलरामपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता था.अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना पहला चुनाव यहीं से जनसंघ के टिकट पर 1957 में जीता था. 1962 के चुनाव में उन्होंने अपनी किस्मत दुबारा बलरामपुर में आजमाई थी.

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सियासत के किस्से: जब बलरामपुर में एक हीरो के चुनाव प्रचार से हार गए थे अटल बिहारी वाजपेयी
नई दिल्ली:

अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) तीन बार प्रधानमंत्री रहे. अपने करीब चार दशक के संसदीय जीवन में वाजपेयी नौ बार लोकसभा (LokSabha)और दो बार राज्य सभा (Rajya Sabha) के लिए चुने गए.देश में इस समय लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं.आइए जानते हैं एक ऐसे चुनाव की कहानी जब एक अभिनेता की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. हम आपको बताएं कि उस चुनाव में वाजपेयी किस सीट से चुनाव लड़े थे और किस अभिनेता ने उनके खिलाफ प्रचार किया था.

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक का नाम श्रावस्ती है. इस सीट को 2009 में हुए परिसीमन से पहले बलरामपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता था.अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना पहला चुनाव इसी सीट से जनसंघ के टिकट पर 1957 में जीता था. इसके बाद 1962 के चुनाव में उन्होंने अपनी किस्मत एक बार फिर बलरामपुर में आजमाई. 

वाजपेयी के खिलाफ प्रचार करने नेहरू नहीं आए

साल 1962 के चुनाव में कांग्रेस ने बलरामपुर से सुभद्रा जोशी को उम्मीदवार बनाया.  जोशी पहली और दूसरी लोकसभा के चुनाव में क्रमश:करनाल और अंबाला से चुनी गई थीं. इसके बाद वो दिल्ली में रहने लगी थीं.प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर वह बलरामपुर में अटल बिहारी वायपेयी के सामने खड़ी होने के लिए तैयार हो गईं.

सुभद्रा जोशी चाहती थीं कि नेहरू उनका चुनाव प्रचार करने के लिए बलरामपुर आएं. लेकिन जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वायपेयी को देखते हुए नेहरू ने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा.इसके बाद अभिनेता बलराज साहनी से बलरामपुर में चुनाव प्रचार करने की बात की गई. फिल्म'दो बीघा जमीन' में गरीबी से लड़ने वाले शंभू का किरदार निभाकर साहनी काफी मशहूर हो चुके थे. शंभू के रोल की वजह से लोगों में उनकी अच्छी छवि बनी हुई थी.

वहीं अटल बिहारी वायपेयी बलरामपुर से अपनी जीत को लेकर काफी आश्वस्त लग रहे थे. उन्हें उम्मीद थी कि जनता उन्हें जिता देगी. उनको लगता था कि दिल्ली से आई सुभद्रा को बलरामपुर की जनता क्यों चुनेगी. स्थानीय लोग तो उन्हें जानते भी नहीं हैं और वो पिछला चुनाव इस सीट से जीत चुके हैं.इसी सोच के साथ वाजपेयी चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे.वो साइकिल और बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार करने के लिए जाते थे.

जब बलराज साहनी उतरे चुनाव प्रचार में 

वहीं कांग्रेस ने प्रचार किया कि सुभद्रा जोशी का चुनाव प्रचार करने बलराज साहनी आ रहे हैं.बलराज साहनी को देखने के लिए जोशी की सभाओं में भीड़ बढ़ने लगी. यह देखकर कांग्रेस ने एक दिन बलराज साहनी को चुनाव प्रचार के लिए बुला लिया. अगले दिन वो जीप पर सवार होकर प्रचार के लिए निकले. वो जहां से निकले वहां उन्हें देखने वालों का तांता लग गया. उनकी सभा शहर के बड़ा परेड मैदान में हुई. वहां पैर रखने की भी जगह नहीं थी. 

फिल्मी हीरों प्रचार कराने की कांग्रेस की यह तरकीब काम कर गई.जब चुनाव परिणाम आए तो सुभद्रा जोशी विजेता घोषित की गईं. उन्हें कुल एक लाख दो हजार 260 वोट मिले. वहीं अटल बिहारी वाजपेयी को एक लाख 208 वोटों से ही संतोष करना पड़ा.बाद में पार्टी ने अटल जी को राज्य सभा में भेजा. 

वाजपेयी ने कब लिया हार का बदला
हार के बाद भी वाजपेयी ने बलरामपुर नहीं छोड़ा.वो बलरामपुर से जुड़े रहे.साल 1967 के चुनाव में एक बार फिर वाजपेयी और जोशी आमने-सामने थे. इस चुनाव में वाजपेयी ने जोशी को 31 हजार 704 मतों के अंतर से मात दे दी. वाजपेयी को एक लाख 42 हजार 446 वोट मिले. वहीं सुभद्रा जोशी को एक लाख 10 हजार 704 वोट मिले थे.वाजपेयी 1967 के बाद फिर चुनाव लड़ने के लिए कभी बलरामपुर नहीं गए. संसद में जाने के लिए 1971 के चुनाव में उन्होंने ग्वालियर का रुख कर लिया.

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