न्‍यायिक नियुक्ति विवाद : केंद्र ने हाईकोर्ट के लिए कॉलेजियम की ओर से सुझाए गए 10 नाम लौटाए -सूत्र

25 नवंबर को लौटाई गई फाइलों में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन किरपाल के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल का नाम भी शामिल है. 

न्‍यायिक नियुक्ति विवाद : केंद्र ने हाईकोर्ट के लिए कॉलेजियम की ओर से सुझाए गए 10 नाम लौटाए -सूत्र

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा पदोन्नति के लिए अनुशंसित 10 न्यायाधीशों के नामों की मंजूरी रोक दी है. 25 नवंबर को लौटाई गई फाइलों में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन किरपाल के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल का नाम भी शामिल है. 

इस महीने की शुरुआत में एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में, किरपाल ने कहा कि उनका मानना ​​है कि वो गे हैं, इस कारण उनकी पदोन्नति को तिरस्कार के साथ देखा गया था. 50 वर्षीय किरपाल ने NDTV को बताया, "इसका कारण मेरी कामुकता है, मुझे नहीं लगता कि सरकार खुले तौर पर समलैंगिक व्यक्ति को बेंच में नियुक्त करना चाहती है." उनकी पदोन्नति कम से कम 2017 से रुकी हुई थी. 

बता दें कि पिछले दिनों ही देश के काननू मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर एक टिप्पणी की थी. कानून मंत्री की कॉलेजियम को लेकर टीवी पर की गई टिप्पणी को अब सुप्रीम कोर्ट ने खुद खारिज कर दिया है. 

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की हालिया टिप्पणी पर आज आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. इसने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों में केंद्र की देरी के मुद्दे को भी हरी झंडी दिखाई.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा, "जब कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि...ऐसा नहीं होना चाहिए था." केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 'कभी-कभी मीडिया की खबरें गलत होती हैं.' देश के कानून मंत्री किरेन रिजिजू, ने मौजूदा नियुक्ति तंत्र पर एक नया हमला करते हुए कहा कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए "एलियन" है.

उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से, एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया, यह देखते हुए कि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी. टाइम्स नाउ समिट में बोलते हुए, मंत्री ने कहा कि भारत का संविधान सभी के लिए, विशेष रूप से सरकार के लिए एक "धार्मिक दस्तावेज" है. उन्होंने सवाल किया था, "कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसला देश द्वारा समर्थित होगा."

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