प्रतीकत्मक फोटो
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बनाए जाने वाले नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमीशन (NAJC) की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला शुक्रवार को आएगा।सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट बनाया है।
इस आयोग में कुल छह सदस्य होंगे। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) इसके अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होंगे। केंद्रीय कानून मंत्री को इसका पदेन सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव है। दो प्रबुद्ध नागरिक इसके सदस्य होंगे। जिनका चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सहित तीन सदस्यों वाली समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में होगा।
नेता जजों की नियुक्ति में शामिल न हों : याचिका
आयोग सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीश पद हेतु उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा, जिसके नाम पर दो सदस्यों ने सहमति नहीं जताई हो। आयोग को लेकर विवाद के कारण सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। मामले में याचिकाकर्ता ने आयोग में कानून मंत्री की मौजूदगी पर भी सवाल उठाए हैं। कहा गया है कि भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट न्यायपालिका चाहेगी और भ्रष्ट जजों की नियुक्ति करेगी। नेताओं को जजों की नियुक्ति में शामिल नहीं होना चाहिए। नेताओं के हितों का टकराव हमेशा रहता है और यह सिस्टम पूरी न्यायपालिका को दूषित करेगा।
क्या था कोलेजियम सिस्टम
न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण का निर्धारण एक कोलेजियम व्यवस्था के तहत होता रहा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 1993 से लागू थी। इसके तहत कोलेजियम सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की अनुशंसा करता था। यह सिफारिश विचार और स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती थी। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद संबंधित नियुक्ति की जाती थी।
इसी प्रकार उच्च न्यायालय के लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कोलेजियम से सलाह मशविरे के बाद प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजते थे। फिर देश के प्रधान न्यायाधीश के पास यह प्रस्ताव जाता था। बाद में इसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास विचार और स्वीकृति के लिए भेजा जाता था। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद सम्बंधित नियुक्ति की जाती थी।
इस आयोग में कुल छह सदस्य होंगे। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) इसके अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होंगे। केंद्रीय कानून मंत्री को इसका पदेन सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव है। दो प्रबुद्ध नागरिक इसके सदस्य होंगे। जिनका चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सहित तीन सदस्यों वाली समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में होगा।
नेता जजों की नियुक्ति में शामिल न हों : याचिका
आयोग सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीश पद हेतु उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा, जिसके नाम पर दो सदस्यों ने सहमति नहीं जताई हो। आयोग को लेकर विवाद के कारण सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। मामले में याचिकाकर्ता ने आयोग में कानून मंत्री की मौजूदगी पर भी सवाल उठाए हैं। कहा गया है कि भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट न्यायपालिका चाहेगी और भ्रष्ट जजों की नियुक्ति करेगी। नेताओं को जजों की नियुक्ति में शामिल नहीं होना चाहिए। नेताओं के हितों का टकराव हमेशा रहता है और यह सिस्टम पूरी न्यायपालिका को दूषित करेगा।
क्या था कोलेजियम सिस्टम
न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण का निर्धारण एक कोलेजियम व्यवस्था के तहत होता रहा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 1993 से लागू थी। इसके तहत कोलेजियम सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की अनुशंसा करता था। यह सिफारिश विचार और स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती थी। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद संबंधित नियुक्ति की जाती थी।
इसी प्रकार उच्च न्यायालय के लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कोलेजियम से सलाह मशविरे के बाद प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजते थे। फिर देश के प्रधान न्यायाधीश के पास यह प्रस्ताव जाता था। बाद में इसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास विचार और स्वीकृति के लिए भेजा जाता था। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद सम्बंधित नियुक्ति की जाती थी।
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