सूबेदार राम किशन ग्रेवाल
नई दिल्ली:
पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल ने जहर खा लिया क्योंकि उन्हें पूर्व सैनिक होने के नाते ओआरओपी लागू होने के बाद जो बढ़ा हुआ वेतन मिलना था वह नहीं दिया गया. उनकी मौत ने वन रैंक वन पेंशन यानी ओआरओपी के मुद्दे पर राजनीति गर्मा दी है. यह मुद्दा पूर्व सैनिकों का सबसे अहम मुद्दा रहा है क्योंकि यह उनके रिटायरमेंट के साथ जुड़ा हुआ है.
हरियाणा के गांव के रहने वाले सूबेदार ग्रेवाल ने सेना में 30 साल की सेवाएं दी थी. एक साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ओआरओपी लागू करने की घोषणा की तब ग्रेवाल को 25,500 रुपये प्रतिमाह पेंशन के रूप में मिल रहे थे. लेकिन जब से सरकार ने ओआरओपी को लागू किया जिसमें एक पद पर रिटायर हुए आदमी को एक पेंशन का प्रावधान किया गया जिसमें यह नहीं देखा जाना था कि वह कब रिटायर हुआ और उसने कितने साल सेना में सेवाएं दी, तब ग्रेवाल भी पेंशन में तीन हजार रुपये की वृद्धि के हकदार बन गए थे.
बावजूद इसके ओआरओपी लागू होने के बाद ग्रेवाल को न तो बढ़ा हुआ वेतन अभी तक दिया गया था न ही एरियर अभी तक उन्हें दिया गया.
कहा जाता है कि इस बात से परेशान सूबेदार ग्रेवाल (70) ने मंगलवार को आत्महत्या कर ली. सरकार ने कहा कि उनकी पेंशन को सरकार ने नहीं रोका था, बल्कि इस मामले में देरी के लिए अधिकृत बैंक जिम्मेदार है.
करीब एक साल से पूर्व सैनिक और उनकी विधवाएं जिनमें कुछ लोगों की उम्र 90 से भी ज्यादा है, ने दिल्ली में धरना दिया और कहा कि ओआरओपी में कई खामियां हैं. इनमें सबसे अहम था कि वर्तमान और पूर्व पेंशनर्स के हर पांच साल में पेमेंट की दर में बदलाव की बात, जबकि पूर्व सैनिक यह मांग कर रहे थे कि यह हर साल होना चाहिए. इन लोगों का यह भी विरोध रहा है कि जिन लोगों ने स्वेच्छा से समयपूर्व रिटायरमेंट लिया है उन्हें ओआरओपी से क्यों बाहर रखा जाए.
पूर्व सैनिकों का यह भी कहना है कि नई और बढ़ी हुई पेंशन उन्हें 1 अप्रैल 2014 से दी जाए. वहीं सरकार ने कहा है कि एरियर जुलाई 2014 से देय होगा.
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि बढ़ी हुई पेंशन जल्द से जल्द लागू करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं सूत्रों का कहना है कि कम से कम 500 से ज्यादा मामलों में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने खुद दखल दिया और समाधान कराया.
सरकारी सूत्रों का कहना है कि करीब 21 लाख पेंशनधारियों में केवल एक लाख ही ऐसे बचे हैं जिनका पैसा बकाया है जबकि सरकार ने इस संबंध में 6000 करोड़ रुपये पहले ही जारी कर चुकी है.
बता दें कि पूर्व सैनिकों ने सूबेदार ग्रेवाल के मामले में हो रही राजनीति का विरोध किया है. कई लोगों का कहना है कि जब तक कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने ओआरओपी को लागू नहीं किया. इनका कहना है कि बैंक इस मामले में ढीला रवैया अपनाते हैं जिससे देरी होती है. ऐसे में कुछ पूर्व सैनिकों का समूह है जो मदद को हमेशा तैयार रहता है.
हरियाणा के गांव के रहने वाले सूबेदार ग्रेवाल ने सेना में 30 साल की सेवाएं दी थी. एक साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ओआरओपी लागू करने की घोषणा की तब ग्रेवाल को 25,500 रुपये प्रतिमाह पेंशन के रूप में मिल रहे थे. लेकिन जब से सरकार ने ओआरओपी को लागू किया जिसमें एक पद पर रिटायर हुए आदमी को एक पेंशन का प्रावधान किया गया जिसमें यह नहीं देखा जाना था कि वह कब रिटायर हुआ और उसने कितने साल सेना में सेवाएं दी, तब ग्रेवाल भी पेंशन में तीन हजार रुपये की वृद्धि के हकदार बन गए थे.
बावजूद इसके ओआरओपी लागू होने के बाद ग्रेवाल को न तो बढ़ा हुआ वेतन अभी तक दिया गया था न ही एरियर अभी तक उन्हें दिया गया.
कहा जाता है कि इस बात से परेशान सूबेदार ग्रेवाल (70) ने मंगलवार को आत्महत्या कर ली. सरकार ने कहा कि उनकी पेंशन को सरकार ने नहीं रोका था, बल्कि इस मामले में देरी के लिए अधिकृत बैंक जिम्मेदार है.
करीब एक साल से पूर्व सैनिक और उनकी विधवाएं जिनमें कुछ लोगों की उम्र 90 से भी ज्यादा है, ने दिल्ली में धरना दिया और कहा कि ओआरओपी में कई खामियां हैं. इनमें सबसे अहम था कि वर्तमान और पूर्व पेंशनर्स के हर पांच साल में पेमेंट की दर में बदलाव की बात, जबकि पूर्व सैनिक यह मांग कर रहे थे कि यह हर साल होना चाहिए. इन लोगों का यह भी विरोध रहा है कि जिन लोगों ने स्वेच्छा से समयपूर्व रिटायरमेंट लिया है उन्हें ओआरओपी से क्यों बाहर रखा जाए.
पूर्व सैनिकों का यह भी कहना है कि नई और बढ़ी हुई पेंशन उन्हें 1 अप्रैल 2014 से दी जाए. वहीं सरकार ने कहा है कि एरियर जुलाई 2014 से देय होगा.
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि बढ़ी हुई पेंशन जल्द से जल्द लागू करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं सूत्रों का कहना है कि कम से कम 500 से ज्यादा मामलों में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने खुद दखल दिया और समाधान कराया.
सरकारी सूत्रों का कहना है कि करीब 21 लाख पेंशनधारियों में केवल एक लाख ही ऐसे बचे हैं जिनका पैसा बकाया है जबकि सरकार ने इस संबंध में 6000 करोड़ रुपये पहले ही जारी कर चुकी है.
बता दें कि पूर्व सैनिकों ने सूबेदार ग्रेवाल के मामले में हो रही राजनीति का विरोध किया है. कई लोगों का कहना है कि जब तक कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने ओआरओपी को लागू नहीं किया. इनका कहना है कि बैंक इस मामले में ढीला रवैया अपनाते हैं जिससे देरी होती है. ऐसे में कुछ पूर्व सैनिकों का समूह है जो मदद को हमेशा तैयार रहता है.
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