भारत में पारिवारिक राजनीति (Family Politics) का लंबा इतिहास रहा है, खासकर क्षेत्रीय दलों की ये खासियत रही है. क्षेत्रीय दलों को सियासी शिखर पर पहुंचाने वाले कद्दावर नेता (Regional Parties) सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ कायम करने के लिए पारिवारिक सदस्यों को अहम पदों पर बिठाते हैं. लेकिन जब ऐसे कद्दावर नेता उम्र या अन्य वजहों से राजनीतिक हाशिये पर चले जाते हैं तो परिवार में उनके उत्तराधिकार को लेकर जंग छिड़ जाती है और शह-मात का खेल शुरू हो जाता है. फिलहाल बिहार के क्षेत्रीय दल लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) में दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की विरासत को लेकर उनके बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) और चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) में उठापटक चल रही है. हालांकि सियासत में चाचा-भतीजे के बीच ऐसी अदावत पहले भी देखने को मिली हैं, जिनकी नजीर उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक मिलती है...
बिहार-चिराग पासवान बनाम पशुपति पारस...
बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में पिछले हफ्ते उस वक्त भूचाल आ गया जब एलजेपी के 6 सांसदों में से 5 सांसदों ने पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में बगावत कर दी. चिराग पासवान (Chirag Paswan) को हटाकर कर चाचा पशुपति पारस (Pashupati Kumar Paras) लोकसभा में संसदीय दल के नेता बन गए. भतीजे ने भी जवाब देते हुए चाचा समेत सभी बागी सांसदों को पार्टी से ही निकाल दिया. सुलह-समझौते के आसार खत्म होने के साथ अब राजनीतिक उत्तराधिकार की यह जंग लंबी चलने वाली है. दोनों पक्ष कानूनी विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं और मामला कोर्ट से लेकर चुनाव आय़ोग की चौखट तक भी जा सकता है.
एलजेपी (LJP) में चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज बिहार इकाई के अध्यक्ष और राम विलास के एक और भाई रामचंद्र पासवान समस्तीपुर से सांसद थे. रामचंद्र का जुलाई 2019 में निधन हो गया था. दोनों ही नेता अब खुद को एलजेपी का मुखिया बता रहे हैं और समर्थकों के बीच भी इसको लेकर टकराव दिख रहा है.
यूपी में अखिलेश बनाम शिवपाल...
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को जीत मिली तो दल के मुखिया मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के सामने बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और भाई शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) के रूप में दो मजबूत विकल्प थे. शिवपाल का राजनीतिक करियर और अनुभव अखिलेश के मुकाबले कहीं ज्यादा था, लेकिन बाजी बेटे के हाथ लगी. जबकि 2007 में बसपा की सरकार के दौरान शिवपाल नेता प्रतिपक्ष भी थे.
युवा चेहरे और चुनाव में जमकर पसीना बहाने वाले अखिलेश यादव राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी कायम रहे. मगर युवा भतीजे के अधीन अनुभवी चाचा के बीच शीत युद्ध धीरे-धीरे सतह पर आ गया. झगड़ा शांत कराने के लिए मुलायम ने शिवपाल को 2016 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो अखिलेश ने शिवपाल से पीडब्ल्यूडी, राजस्व और सिंचाई जैसे अहम विभाग छीन लिए. दो दिन बाद शिवपाल ने मंत्री पद से, उनके बेटे आदित्य ने कोऑपरेटिव फेडरेशन से त्यागपत्र दे दिया.
2017 के विधानसभा चुनाव में भी शिवपाल समर्थकों को तवज्जो नहीं मिली. पारिवारिक कलह का ही नतीजा रहा कि 2017 का चुनाव सपा बुरी तरह हार गई. अगस्त 2018 में शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नाम से नया दल बनाया, इससे 2019 के चुनाव में सपा को खासा नुकसान झेलना पड़ा, हालांकि शिवपाल की पार्टी भी कोई छाप नहीं छोड़ पाई. शिवपाल और अखिलेश के बीच दूरियां तो कम हुई हैं, लेकिन कोई भी अभी एक-दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने को मंजूर नहीं दिख रहा. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Election 2022) में भी दोनों एक साथ आएंगे, इस पर संशय है.
हरियाणा में अभय बनाम दुष्यंत चौटाला...
हरियाणा (Haryana) की राजनीति में चौटाला परिवार का अहम हिस्सा रहा है. मुख्यमंत्री और उप प्रधानमंत्री रहे देवी लाल चौटाला के बाद उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने लंबे समय तक प्रदेश की कमान संभाली. लेकिन खेल 2013 में शुरू हुआ, जब नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के मामले में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) में ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) और उनके बेटे अजय चौटाला को 10 साल की जेल हो गई.
इनेलो की कमान तब ओम प्रकाश के एक और बेटे अभय चौटाला (Abhay Chautala) को मिल गई, लेकिन अजय के बेटे दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) राजनीति में तेजी से उभरे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई को हिसार सीट से मात देकर दुष्यंत ने ताकत दिखाई मगर हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो बुरी तरह हार गई और पार्टी में फूट पड़ गई.
ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बाहर कर दिया और इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ में रहने दी. लेकिन सियासी तेवर दिखा चुके दुष्यंत चौटाला ने दिसंबर 2018 में जननायक जनता पार्टी (Jannayak Janta Party) बनाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने 10 सीटें जीतकर हरियाणा में बीजेपी (BJP) की सत्ता में वापसी में मदद की. दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) मनोहर लाल खट्टर की सरकार में उप मुख्यमंत्री बने. लेकिन किसान आंदोलन को लेकर उन्हें नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है.
शरद पवार -अजित पवार के रिश्तों में उतार-चढ़ाव..
महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में भी चाचा-भतीजे के तौर पर शरद पवार (Sharad Pawar) और उनके भाई के बेटे अजित पवार (Ajit Pawar) के बीच भी काफी उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते रहे. अजित पवार को राजनीति में लाने का श्रेय उनके चाचा और एनसीपी (NCP) के प्रमुख शरद पवार को जाता है, लेकिन कथित सिंचाई घोटाले को लेकर वो अपने चाचा के लिए मुसीबत बने. अजित पवार के महज 27 साल के बेटे पार्थ पवार (Parth Pawar) के मावल लोकसभा सीट से मई 2019 में चुनाव हारने पर भी दोनों में मनमुटाव रहा. फिर नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) के नतीजे जब किसी पार्टी के पक्ष में नहीं आए तो अजित पवार ने अपने चाचा को भरोसे में लिए बिना पार्टी के कुछ विधायकों के साथ बीजेपी (BJP) से हाथ मिला लिया.
एनसीपी, कांग्रेस (Congress) और शिवसेना (Shiv Sena) के गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच 23 नवंबर 2019 की सुबह 5.30 बजे देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली. लेकिन कुशल रणनीतिकार शरद पवार अजित पर कार्रवाई की बजाय उन्हें सूझबूझ से पाले में लाने में सफल रहे. हालांकि शरद पवार के बाद उनकी बेटी सुप्रिया सुले (Supriya sule) या अजित में कौन पार्टी की कमान संभालेगा, यह सवाल अभी भी बाकी है.
पर चाची-भतीजे की जोड़ी ने रिश्ता निभाया...
तमिलनाडु में चाची शशिकला (Sasikala) औऱ उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन (TTV Dinakaran) ने रिश्ते को सियासत में बखूबी निभाया है. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता (Tamilnadu Former Chief Minister Jayalalitha) ने वर्ष 2011 में अपनी घनिष्ठ सहयोगी शशिकला, उनके पति एम नटराजन और भतीजे दिनाकरन को पार्टी से निकाल दिया था, लेकिन दोनों पार्टी में वापसी करने में सफल रहे. लेकिन दिसंबर 2016 में जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक में वर्चस्व की जंग तेज हो गई.
तमिलनाडु की सियासत में जयललिता को अम्मा तो शशिकला चिनम्मा बोला जाता था. अम्मा की मौत के बाद शशिकला ही 5 फरवरी 2017 को एआईएडीएमके (AIADMK) महासचिव बनीं और दिनाकरन को उन्होंने उप महासचिव बना दिया. शशिकला ने 24 घंटे में ही ओ पन्नीरसेल्वम (Pannerselvam) को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया.
शशिकला को पार्टी विधायक दल का नेता चुना गया. वो मुख्यमंत्री बनने ही वाली थीं कि 14 फरवरी 2017 को आय से अधिक संपत्ति के मामले में कोर्ट का निर्णय आया और उन्हें चार साल की जेल हो गई. फिर उनके करीबी ईके पलानीसामी (EK Palaniswami) सीएम बने. लेकिन अगस्त 2017 में ईपीएस और ओपीएस ने हाथ मिला लिया और शशिकला, दिनाकरन को पार्टी से निकाल दिया. दिनाकरन ने जयललिता की विरासत पर कब्जे के लिए अम्मा मक्कल मुनेत्र कझगम नाम से मार्च 2018 में पार्टी बनाई और अपनी चाची शशिकला को पार्टी अध्यक्ष बनाया. विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक की हार के बाद चाची-भतीजे की ये जोड़ी फिर से मूल पार्टी में सेंध लगाने में जुट गई है.
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