नई दिल्ली:
हिरासत में टॉर्चर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई बंद की. पूर्व कानून मंत्री डॉ. अश्विनी कुमार की याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने निस्तारण किया. सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम संसद को कानून बनाने के लिए कैसे आदेश दे सकते हैं. कानून बनाना संसद का अधिकार है. जबकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हिरासत में टॉर्चर को लेकर लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट दी है, जिसपर विचार हो रहा है.\
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अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में हिरासत में टार्चर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संधियों के तहत नियम बनाने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की थी. गौरतलब है कि लॉ कमीशन ने हिरासत में टॉर्चर को लेकर नया बिल तैयार किया है. नए बिल के मुताबिक अगर कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस वाला हिरासत में टॉर्चर करता है तो उसे उम्र क़ैद की सज़ा के साथ जुर्माना भी लगाया जाए. लॉ कमिशन ने बिल को कानून मंत्रालय को दिया है.
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लॉ कमीशन ने इस बिल का नाम 'द प्रीवेंशन ऑफ टॉर्चर बिल 2017' है. लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन की पुष्टि करता है जिसमें उन्होंने हिरासत में टॉर्चर को लेकर सज़ा की बात कही गई है. लॉ कमीशन ने कहा है कि भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए है, लेकिन एन्टी टॉर्चर लॉ के न होने से इस संधि का अनुसमर्थन करना बाक़ी है. 160 देश इसका अनुसमर्थन करते है. हालांकि इससे पहले UPA सरकार ने टॉर्चर को लेकर एक बिल बनाया था लेकिन वो सदन से पास नही हो पाया.
लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देने के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में बदलाव की जरूरत है. कमीशन ने ये भी कहा है CRPC में बदलाव कर मुआवजा और जुर्माने का प्रावधान किया जाए.
VIDEO: शीत्र सत्र में तीन तलाक पर बिल लाने की तैयारी
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लॉ कमीशन ने इस बिल का नाम 'द प्रीवेंशन ऑफ टॉर्चर बिल 2017' है. लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन की पुष्टि करता है जिसमें उन्होंने हिरासत में टॉर्चर को लेकर सज़ा की बात कही गई है. लॉ कमीशन ने कहा है कि भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए है, लेकिन एन्टी टॉर्चर लॉ के न होने से इस संधि का अनुसमर्थन करना बाक़ी है. 160 देश इसका अनुसमर्थन करते है. हालांकि इससे पहले UPA सरकार ने टॉर्चर को लेकर एक बिल बनाया था लेकिन वो सदन से पास नही हो पाया.
लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देने के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में बदलाव की जरूरत है. कमीशन ने ये भी कहा है CRPC में बदलाव कर मुआवजा और जुर्माने का प्रावधान किया जाए.
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