कोर्ट ने अखिलेश सरकार की स्कीम के बारे में कहा कि ये बेहद सुंदर पॉलिसी है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार द्वारा दी जाने वाली समाजवादी पेंशन योजना की तारीफ की है. कोर्ट ने कहा कि ये बेहद सुंदर पॉलिसी है. लिहाजा इस योजना को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस याचिका में कहा गया था कि समाजवादी पेंशन योजना में 25 फ़ीसदी का आरक्षण अल्पसंख्यकों को दिया गया है जो कि असंवैधानिक है. धर्म के आधार पर सरकारी योजनाओं में आरक्षण नहीं दिया जा सकता. समाजवादी पेंशन योजना के तहत 500 रुपये हर महीने दिया जाता है.
समाजवादी पेंशन योजना का बंटवारा कुछ इस तरह हुआ
हिंदू फ्रंट फोर जस्टिस की याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने पहले ही आदेश दिया था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. लेकिन 2014 में अखिलेश सरकार ने समाजवादी पेंशन योजना लागू की, जिसके तहत 500 रुपये की पेंशन गरीबी रेखा के नीचे लोगों को बांटी जानी थी. इसमें राज्य सरकार ने 25 फीसदी आरक्षण अल्पसंख्यकों को, 45 फीसदी सामान्य और दूसरे पिछड़े वर्गों और 30 फीसदी अनूसूचित जाति और जनजाति के लिए तय किया.
याचिकाकर्ता ने ये दिए थे तर्क
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि धर्म के आधार पर कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता और मुस्लिम वर्ग और अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में पहले से ही आरक्षण मिल रहा है, इसलिए अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले 25 फीसदी आरक्षण को रद्द किया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि यूपी में इन दिनों चुनावों का माहौल है. यूपी सरकार लगातार अपने किए कामों को गिनवा रही है तो बीजेपी और बसपा राज्य में विकास न होने को लेकर अखिलेश सरकार पर लगातार हमले बोल रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाजवादी पार्टी के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है.
समाजवादी पेंशन योजना का बंटवारा कुछ इस तरह हुआ
हिंदू फ्रंट फोर जस्टिस की याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने पहले ही आदेश दिया था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. लेकिन 2014 में अखिलेश सरकार ने समाजवादी पेंशन योजना लागू की, जिसके तहत 500 रुपये की पेंशन गरीबी रेखा के नीचे लोगों को बांटी जानी थी. इसमें राज्य सरकार ने 25 फीसदी आरक्षण अल्पसंख्यकों को, 45 फीसदी सामान्य और दूसरे पिछड़े वर्गों और 30 फीसदी अनूसूचित जाति और जनजाति के लिए तय किया.
याचिकाकर्ता ने ये दिए थे तर्क
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि धर्म के आधार पर कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता और मुस्लिम वर्ग और अल्पसंख्यकों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में पहले से ही आरक्षण मिल रहा है, इसलिए अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले 25 फीसदी आरक्षण को रद्द किया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि यूपी में इन दिनों चुनावों का माहौल है. यूपी सरकार लगातार अपने किए कामों को गिनवा रही है तो बीजेपी और बसपा राज्य में विकास न होने को लेकर अखिलेश सरकार पर लगातार हमले बोल रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाजवादी पार्टी के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है.
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