- महाराष्ट्र ATS के पूर्व अफसर महबूब मुजावर ने दावा किया था कि उन पर भागवत को गिरफ्तार करने दबाव था.
- महबूब मुजावर ने दावा किया कि ये आदेश न मानने पर उन्हें फर्जी केस में फंसा दिया गया था.
- मालेगांव बम विस्फोट मामले में स्पेशल NIA कोर्ट के डिटेल्ड ऑर्डर में इस गवाही का पूरा जिक्र है.
मालेगांव बम विस्फोट मामले में एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है. स्पेशल एनआईए कोर्ट के डिटेल्ड ऑर्डर में इस बात का जिक्र किया गया है कि महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने दावा किया था कि उन पर एटीएस के वरिष्ठ अधिकारियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का दबाव डाला था. बात न मानने पर उन्हें फर्जी केस में फंसा दिया गया.
महबूब मुजावर ने क्या दावा किया?
मुजावर के मुताबिक, उन्हें मोहन भागवत को हिरासत में लेकर गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था. उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उन्हें इस केस में भागवत की कोई संलिप्तता नजर नहीं आई. उनका यह भी कहना है कि इस आदेश को न मानने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी और उन्हें एक फर्जी केस में फंसा दिया गया. यह मुकदमा सोलापुर के मजिस्ट्रेट कोर्ट में दर्ज हुआ.
NIA कोर्ट के ऑर्डर में कहा गया है कि आरोपी संख्या 10 के वकील ने दलील दी कि महबूब मुजावर जांच टीम के सदस्य थे और उनके द्वारा दिया गया बयान बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के आदेश को अस्वीकार कर दिया क्योंकि उन्हें उनकी भूमिका संदिग्ध नहीं लगी.
कोर्ट के सामने ये दस्तावेज़-बयान पेश
कोर्ट में पेश दस्तावेजों में महबूब मुजावर का एक आवेदन और सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दिया गया उनका बयान शामिल है, जिसे सोलापुर के मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया गया था. लेकिन स्पेशल NIA कोर्ट ने इन दस्तावेजों को पर्याप्त साक्ष्य नहीं माना क्योंकि:
- ये बयान इस विशेष न्यायालय के समक्ष दर्ज नहीं हुए.
- महबूब मुजावर को अदालत में गवाह के रूप में पेश नहीं किया गया.
- केवल दस्तावेजों के आधार पर किसी दावे को प्रमाणित नहीं किया जा सकता, जब तक उससे संबंधित गवाह की ठोस और विश्वसनीय गवाही न हो.
एसीपी और डिप्टी एसपी ने क्या बयान दिए?
- PW-320 (एसीपी मोहन कुलकर्णी) ने माना कि महबूब मुजावर को कालसांगरा और डांगे की तलाश में भेजा गया था, लेकिन मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के आदेश का उन्होंने खंडन किया.
- PW-321 (डिप्टी एसपी अनिल दुबे) ने माना कि महबूब मुजावर एटीएस की टीम का हिस्सा थे और उनके बयान वानखेड़े द्वारा दर्ज किए गए थे.
कोर्ट ने को याचिका में दम क्यों नहीं दिखा?
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि महबूब मुजावर के दावों के समर्थन में पेश दस्तावेज इस न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यह दस्तावेज सोलापुर कोर्ट में दिए गए बयान पर आधारित हैं, ना कि एनआईए कोर्ट में पेश किसी साक्ष्य पर. इसलिए कोर्ट को आरोपी संख्या 10 की ओर से दी गई याचिका में कोई दम नहीं दिखाई दिया.
योगी समेत 5 लोगों का नाम लेने का भी था दवाब
इस आर्डर कॉपी में अभिनव भारत के जुड़े मिलिंद जोशी राव के बयान का भी जिक्र है, जिसमें मिलिंद ने अदालत को बताया था कि एटीएस के अधिकारी उस पर दबाव बना रहे थे कि इस मामले में योगी आदित्यनाथ, इंद्रेश कुमार, साध्वी, काका जी, असीमानंद और प्रोफेसर देवधर का नाम ले. मिलिंद ने अपने बयान में यह भी कहा था कि एटीएस ने 7 दिनों तक उसे गैरकानूनी तरीके से अपनी हिरासत में रखा और कहा कि अगर वह इन पांच लोगों का नाम लेता है तो उसे जाने दिया जाएगा.
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