टैरिफ के पीछे क्या है... भारत को अनाज-डेयरी उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बनाने की फिराक में अमेरिका... किसानों क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, जेम्स एंड ज्वेलरी और टेक्सटाइल सेक्टरों पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. लेकिन भारत कृषि और डेयरी सेक्टर खोलकर अपने पांव में कुल्हाड़ी मारने को तैयार नहीं है.

अमेरिका ने भले ही भारतीय उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है, लेकिन सरकार ने संकेत दिए हैं कि वो 10 करोड़ परिवारों के लिए रोजी-रोटी से जुड़े कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिकी बाजार के लिए नहीं खोलेगी. सरकार में अंदरखाने ये राय बनी है कि वो दबाव के बावजूद घरेलू हितों को ताक पर रखकर अमेरिका के कृषि-दुग्ध और जीएम उत्पादों के लिए वो देश को डंपिग ग्राउंड नहीं बनने देगी. यही वजह है कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर मार्च से पांच दौर की वार्ता बेनतीजा रही. अगले दौर की बातचीत अगस्त के अंत में हो सकती है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ऐसी सब्सिडी के जरिये कृत्रिम तरीके से कृषि उत्पादों की कीमतें काफी रखता है. इससे अमेरिकी जनता को खुश करने के साथ वो इन उत्पादों को दूसरे देशों में डंप करता है. इन सस्ते उत्पादों की डंपिंग की इजाजत देने वाले देशों की सरकारें इसका मुकाबला नहीं कर पातीं. उनके कृषि और डेयरी सेक्टर बर्बादी की कगार पर पहुंच जाते हैं. भारत, ब्राजील जैसे विकासशील देश इसका मुकाबला नहीं कर सकते.
सब्सिडी देकर बाजार को बिगाड़ने का खेल
अमेरिकी सरकार अपने कृषि बाजार को कई तरह की सब्सिडी देती है. इससे अनाज, फल-सब्जी से लेकर तमाम कृषि उत्पादों की कीमतें काफी कम रहती हैं. अमेरिकी इन्हीं कम दामों के सहारे दूसरे देशों में अपने कृषि उत्पादों को डंप कर रहा है. अमेरिकी कृषि विभाग किसानों का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट तरीके से कई सरकारी मदद देता है.
1. डायरेक्ट सब्सिडी
कॉर्न, सोयाबीन, गेहूं, कॉटन, और चावल उत्पादक किसानों को सीधे प्रति हेक्टेयर उत्पादन के हिसाब से सब्सिडी
2. MSP जैसी मदद भी
अगर बंपर उत्पादन से कृषि उत्पादों की कीमतें धड़ाम होती हैं तो सरकार सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार की कीमतों के अंतर के बराबर का भुगतान किसानों को करती है.
3. फसल बीमा
किसानों को बेहद मामूली कीमत पर बड़ी इंश्योरेंस राशि वाली फसल बीमा योजना (Crop Insurance) के जरिये भी मदद दी जाती है. अगर फसल खराब होती है या कीमतें गिरती हैं तो किसानों को इससे मुआवजा मिलता है.
4. दूसरे देशों के कृषि बाजारों में पहुंच के लिए मदद
अमेरिकी सरकार मार्केंटिंग एंड एक्सपोर्ट असिस्टेंस प्रोग्राम (MAP)और फॉरेन मार्केट डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत अमेरिकी किसानों के उत्पादों के आसानी से निर्यात के लिए भी सहायता देती है.
5. आपदा में राहत
अमेरिकी सरकार बाढ़-सूखे या युद्ध या किसी देश से ट्रेड वॉर के दौरान किसानों को पहुंचे नुकसान के लिए उन्हें पैसा देती है.
व्यापार घाटे से परेशान ट्रंप सरकार
अमेरिका और भारत के बीच वर्ष 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 131.8 अरब डॉलर का रहा. इसमें भारत का निर्यात 86.5 अरब डॉलर और अमेरिकी आयात 45.3 अरब डॉलर था. इसमें फार्मास्यूटिक्ल और इलेक्ट्रानिक उत्पादों का बड़ा हिस्सा पहले अमेरिकी शुल्क छूट के दायरे में है. लिहाजा इस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.
मैक्सिको बड़ा उदाहरण
अमेरिका ने नाफ्टा ट्रेड डील के बाद बड़े पैमाने पर अपने देश से मक्का मैक्सिको को निर्यात किया. मैक्सिको के किसान इन बनावटी सस्ते दामों का मुकाबला नहीं कर सके. नतीजा हुआ कि कॉर्न उत्पादक बर्बाद हो गए. ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बढ़ी और खेतिहर किसान शहरों में मजदूरी के लिए पलायन को मजबूर हुए.
हैती में चावल की डंपिंग
1990 में व्यापारिक उदारीकरण के बाद अमेरिका से भारी मात्रा में चावल का निर्यात हैती को हुआ. हैती में चावल उगाने वाले किसान हाशिये पर आ गए.
भारत में गेहूं-चावल की बंपर पैदावार
भारत गेहूं-चावल और गन्ना उत्पादन में शीर्ष देशों में शुमार है. आत्मनिर्भरता के साथ वो इन उत्पादों का निर्यात भी करता है. भारत 24 फीसदी हिस्सेदारी के साथ दुग्ध उत्पादन में भी नंबर वन है. भारत के 80 फीसदी किसान खेती और पशुपालन दोनों से जुड़े हैं. ऐसे में डेयरी सेक्टर को खोलना आत्मघाती कदम साबित हो सकता है. उत्तर भारत में यूपी, पंजाब-हरियाणा, एमपी-छत्तीसगढ़ से लेकर तमिलनाडु-कर्नाटक तक गेहूं-चावल की उपज किसानों की आजीविका से सीधे जुड़ी है.
नुकसान---
1. भारत के छोटे किसान सब्सिडी वाले सस्ते अमेरिकी उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे
2. अमेरिकी उत्पादों की डंपिंग से घरेलू कृषि बाजार में कीमतें औंधे मुंह गिरने की आशंका
3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर संकट आएगा और बेरोजगारी बढ़ेगी
4. पहले से ही माइग्रेशन का दबाव झेल रहे शहरों की ओर पलायन बढ़ेगा
डेयरी उत्पाद भारत के लिए संवेदनशील मामला
अमेरिका के डेयरी सेक्टर में सभी पशुओं के चारे के तौर पर बड़े पैमाने पर मांसाहारी उत्पादों का इस्तेमाल होता है. भारत के लिए यह धार्मिक तौर पर संवेदनशील मसला है भारत ऐसे पशुओं के दूध से बने उत्पादों को इजाजत नहीं दे सकता. ऐसे उत्पादों को शुल्क मुक्त श्रेणी में आयात की इजाजत देने से भारत के उभरते डेयरी सेक्टर पर बड़ा नकारात्मक असर भी पड़ सकता है. इस पर समझौते की गुंजाइश नहीं है.
दुनिया भर से आलोचना
दुनिया भर से एनजीओ, अर्थशास्त्री और तमाम विकासशील देशों की सरकारें मुक्त प्रतिस्पर्धा के के बीच वैश्विक व्यापार में ऐसी अमेरिकी सब्सिडी पर सवाल उठाती रही हैं. ये डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन भी है. हालांकि अमेरिका खासकर ट्रंप सरकार wto जैसी वैश्विक संगठनों की परवाह नहीं करती. अमेरिका अपने देश में फूड सप्लाई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए इसे जरूरी बताता है, लेकिन दूसरे देश यही नियम लागू करें तो इसे बर्दाश्त नहीं है.
जीएम फूड पर चिंताएं
अमेरिका चाहता है कि भारत कॉर्न और सोयाबीन जैसे उत्पादों के लिए जेनेटिकली मोडिफाइड (आनुवांशिक फसलें) की इजाजत दे, लेकिन ये भारत में फसलों की प्रजाति को बिगाड़ सकता है. पर्यावरण-इंसानों की सेहत से लेकर जैव विविधता को भी इससे खतरा है.
गरीबों के लिए संजीवनी है खाद्य सुरक्षा योजना
डब्ल्यूटीओ और तमाम देशों के दबाव के बावजूद भारत अपनी खाद्य सुरक्षा योजना से समझौता नहीं करेगा, सभी सरकारों ने यही रुख दिखाया है. मोदी सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराती है. भारत में करीब 27 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में ये संजीवनी साबित हुई है. भारत में 2011-12 में अत्यधिक गरीबी दर 27% थी. लेकिन 2022-23 में यह महज 5.3 फीसदी रह गई है.
-
"हम चारा, रेत पीसकर खिलाने को मजबूर": गाजा में जिंदगी की जंग लड़ते 2 भूखे नवजात बच्चों का दर्द
Gaza Ground Reality: गाजा उजड़ रहा है, मौत की पहली कतार में ये दुधमुंहे बच्चे हैं जिनकी जुबान को दूध लगे हफ्ते गुजरते चले जा रहे हैं. मौत हर घर पर दस्तक दे रही है, हर दूसरा घर अपने बच्चों को अपने हाथ से दफना रहा है.
-
ट्रंप के भारत पर 25% टैरिफ लगाने की इनसाइड स्टोरी...रुपये, शेयर बाजार, उद्योगों पर कैसा असर, जानिए हर एक बात
US Tariff on India Impact: अमेरिका के इस टैरिफ से दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ सकता है. ट्रंप प्रशासन की संरक्षणवादी नीतियां और भारत पर 'उच्च टैरिफ' लगाने का आरोप व्यापारिक रिश्तों को जटिल बना रहा है.
-
ज्योति-आलोक मौर्य केस: क्या पत्नी से गुजारा-भत्ता मांग सकता है पति? क्या कहता है कानून, वकील से जानिए
इस मामले ने एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत भरण-पोषण के प्रावधानों पर बहस छेड़ दी है. इन प्रावधानों को विस्तार से समझने के लिए हमने पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता कुमार आंजनेय शानू से बात की.
-
जस्टिस वर्मा केस के बहाने समझें महाभियोग की पूरी ABCD... आज तक क्यों नहीं हटाए जा सके कोई जज?
All About Impeachment: महाभियोग प्रस्ताव होने के बाद जज पर क्या कार्रवाई होती है? पहली बार महाभियोग कब लाया गया? देश के इतिहास में ऐसा कब-कब हुआ? क्या कार्रवाइयां हुईं? ये सारी जानकारी भी हम यहां देने जा रहे हैं.
-
World Emoji day: क्या एक दिन शब्दों को बेदखल कर देंगे इमोजी?
क्या धीरे-धीरे इमोज़ी ही हमारी भाषा बनती चली जाएगी? उसका अपना व्याकरण स्थिर हो जाएगा? क्या हम अक्षरों और शब्दों की दुनिया को पीछे छोड़ मुद्राओं और तस्वीरों से अपनी नई भाषा बनाएंगे?अभी यह बहुत दूर का सवाल है, लेकिन ताज़ा सच्चाई यह है कि अपने डिजिटल संवाद में हम लगातार इमोजी-निर्भर होते जा रहे हैं.
-
तमिल से लेकर मराठी पर राजनीति, अंग्रेजों की भड़काई आग आज भी सुलग रही
1953 में आंध्र प्रदेश के गठन से लेकर अब तक भाषा विवाद ने देश की राजनीति बदल दी है. भाषा विवाद से डीएमके(DMK) और शिवसेना से लेकर टीएमसी(TMC) तक ने ताकत पाई है. भारतीय भाषाओं की इस लड़ाई का फायदा विदेश से आई अंग्रेज़ी को हो गया और वो मजबूत हो गई.
-
वोटर लिस्ट बवाल: साल 2005, जब बिहार में वोटर बढ़ने के बजाय घटे और खत्म हो गया लालू राज
Voter List Revision in Bihar: बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की जांच का काम चल रहा है. विपक्ष इसे वोटबंदी का नाम दे रहा है. हालांकि चुनाव आयोग इसे जरूरी कदम बता रहा है. NDTV Data Story में आज पढ़िए उस चुनाव की कहानी, जब बिहार में वोटर बढ़ने के बजाए घटे और राज्य से लालू का राज खत्म हो गया.
-
Explainer: तकनीक से ताकत तक रेयर अर्थ मिनरल्स की लड़ाई, चीन के आगे भारत कहां खड़ा है? पढ़ें 360 डिग्री विश्लेषण
All About Rare Earth Metals: भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन उत्पादन में बहुत पीछे हैं. 2024 में भारत में सिर्फ 2900 टन ही उत्पादन हुआ जबकि चीन ने 2.7 लाख टन. इसे देखते हुए भारत सरकार ने 'नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन' शुरू किया है.
-
न्यूज़ अपडेट्स
-
फीचर्ड
-
अन्य लिंक्स
-
Follow Us On