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ये बच्चों के लिए बेहतर कदम... यूपी में स्कूलों के मर्जर पर सरकार ने और क्या कुछ कहा पढ़ें

शिक्षक संगठनों और विपक्ष ने इस पर ये कहते हुए सवाल खड़ा किया है कि छोटे-छोटे बच्चे दूर किसी गांव में कैसे जाएंगे? अब सरकार ने इस पर भी सफाई पेश की है.

ये बच्चों के लिए बेहतर कदम... यूपी में स्कूलों के मर्जर पर सरकार ने और क्या कुछ कहा पढ़ें
यूपी में स्कूल के मर्जर पर मचा है घमासान
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को नजदीकी स्कूलों में शिफ्ट करने का फैसला लिया है.
  • बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने बताया कि किसी भी स्कूल को एक किलोमीटर से अधिक दूर नहीं ले जाया जाएगा.
  • सरकार का मानना है कि इस कदम से बच्चों की संख्या बढ़ेगी और शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होगा.
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लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के मर्जर को लेकर यूपी सरकार का एक बड़ा बयान आया है. यूपी सरकार ने अपने इस फैसले को सही बताते हुए इसे बच्चों के लिए बेहतर कदम बताया है. उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने इसे लेकर स्थिति भी स्पष्ट की है. उन्होंने कहा कि स्कूल्स की पेयरिंग का सरकार निर्णय नया नहीं है. लंबे समय से इस पर चर्चा चल रही थी. इसके तहत 50 से कम संख्या वाले बेसिक शिक्षा एवं परिषदीय विद्यालयों को पास के स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा. किसी भी स्कूल को एक किलोमीटर से ज़्यादा दूर शिफ्ट नहीं किया जाएगा. 

दरअसल, यूपी में हर गांव में एक प्राइमरी स्कूल हैं. अब स्कूल हैं तो टीचर भी होंगे. ऐसे में सरकार को लगा कि जिन स्कूलों में बच्चे कम है अगर उन स्कूलों को आसपास के किसी दूसरे स्कूल में शिफ्ट कर दिया जाए तो बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी और टीचर-स्टूडेंट रेशियो भी मेंटेन किया जा सकेगा. हालांकि शिक्षक संगठनों और विपक्ष ने इस पर ये कहते हुए सवाल खड़ा किया है कि छोटे-छोटे बच्चे दूर किसी गांव में कैसे जाएंगे? अब सरकार ने इस पर भी सफाई पेश की है.

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इस मर्जर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक सोशल मीडिया पोस्ट किया है. इस पोस्ट में उन्होंने कहा कि स्कूल मर्जर का फैसला वापस लेना पीडीए पाठशाला आंदोलन की महाजीत है. शिक्षा का अधिकार अखंड होता है और रहेगा. शिक्षा विरोधी भाजपा की ये नैतिक हार है. वहीं, संसद परिसर में मीडिया से बातचीत में कहा कि भाजपा सरकार का प्राथमिक स्कूलों को बंद करने का फैसला राजनीतिक है. भाजपा सरकार का ध्यान शिक्षा पर नहीं है.

फ़िलहाल सरकार मर्जर के फ़ैसले को वापस लेने के बिलकुल भी मूड में नहीं दिखाई दे रही. ये ज़रूर है कि व्यावहारिक दिक्कतों को दूर कर सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. देखना होगा ये विवाद फ़िलहाल थम जाएगा या इस विरोध का दूरगामी असर देखने को मिलेगा? 

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