जस्टिस मार्केंडेय काटजू (फाइल फोटो)
तिरुवनंतपुरम:
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने सोमवार को कहा कि शीर्ष अदालत ने सौम्या मामले में आरोपी को दिए गए मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलकर गंभीर भूलें कीं और इसकी वजह यह है कि न्यायाधीश लंबित मामलों के भारी बोझ की वजह से मामलों पर ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं.
अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने कहा, ''मैं वाकई मानता हूं कि उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए मृत्युदंड को बदलकर अपने फैसले में कुछ गंभीर भूल की हैं.'' उन्होंने कहा, ''संभवतया ये गलतियां इसलिए हुईं क्योंकि अदालत पर काम का इतना ज्यादा बोझ है कि वह मामलों पर उतना वक्त नहीं दे पाती जितने कि वह हकदार हैं, यदि मामलों का ऐसा भारी बोझ नहीं होता तो चीजें कुछ और होतीं.''
भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि जब उन्होंने सुना कि उन्हें 11 नवंबर को पेशी के लिए नोटिस जारी किया गया है तो वह परेशान हो गए और उन्होंने सोचा कि उच्चतम न्यायालय उन्हें अपमानित करने का प्रयत्न कर रहा है क्योंकि उन्होंने उसके फैसले की आलोचना की है, ऐसा आदेश अप्रत्याशित था. अतएव उन्होंने शुरू में कहा कि वह पेश नहीं होंगे.
उन्होंने कहा कि जब उन्हें उच्चतम न्यायालय का नोटिस प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे पढ़ा तब उन्हें अहसास हुआ कि अदालत ने मेरे लिए बहुत ही सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है और मुझसे पेश होने के लिए अनुरोध किया है न कि मुझे आदेश दिया है. चूंकि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार करने के प्रति गंभीर दिखाई देते हैं और इस मामले में अड़ियल नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ''हम सभी इंसान हैं और हम सभी गलतियां करते हैं लेकिन भद्रपुरूष वह है जो अपनी गलती का अहसास करते हैं, उसे स्वीकार करते हैं और उसे सुधारने का प्रयास करते हैं. यह न्यायाधीशों पर भी लागू होता है. मैने भी कई बार अपने फैसलों में गलतियां की हैं.''
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने कहा, ''मैं वाकई मानता हूं कि उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए मृत्युदंड को बदलकर अपने फैसले में कुछ गंभीर भूल की हैं.'' उन्होंने कहा, ''संभवतया ये गलतियां इसलिए हुईं क्योंकि अदालत पर काम का इतना ज्यादा बोझ है कि वह मामलों पर उतना वक्त नहीं दे पाती जितने कि वह हकदार हैं, यदि मामलों का ऐसा भारी बोझ नहीं होता तो चीजें कुछ और होतीं.''
भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि जब उन्होंने सुना कि उन्हें 11 नवंबर को पेशी के लिए नोटिस जारी किया गया है तो वह परेशान हो गए और उन्होंने सोचा कि उच्चतम न्यायालय उन्हें अपमानित करने का प्रयत्न कर रहा है क्योंकि उन्होंने उसके फैसले की आलोचना की है, ऐसा आदेश अप्रत्याशित था. अतएव उन्होंने शुरू में कहा कि वह पेश नहीं होंगे.
उन्होंने कहा कि जब उन्हें उच्चतम न्यायालय का नोटिस प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे पढ़ा तब उन्हें अहसास हुआ कि अदालत ने मेरे लिए बहुत ही सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है और मुझसे पेश होने के लिए अनुरोध किया है न कि मुझे आदेश दिया है. चूंकि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार करने के प्रति गंभीर दिखाई देते हैं और इस मामले में अड़ियल नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ''हम सभी इंसान हैं और हम सभी गलतियां करते हैं लेकिन भद्रपुरूष वह है जो अपनी गलती का अहसास करते हैं, उसे स्वीकार करते हैं और उसे सुधारने का प्रयास करते हैं. यह न्यायाधीशों पर भी लागू होता है. मैने भी कई बार अपने फैसलों में गलतियां की हैं.''
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