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This Article is From Jan 19, 2021

एनिमल प्रिवेंशन एक्‍ट को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई दो हफ्ते टली

सुप्रीम कोर्ट, बुफेलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें 2017 के नोटिफिकेशन की वैधता को चुनौती दी गई है जिसमें अधिकारियों को मवेशियों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों को जब्त करने और पशुओं को 'गौशाला' (गौ आश्रय गृह) भेजने की अनुमति दी गई है.

एनिमल प्रिवेंशन एक्‍ट को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई दो हफ्ते टली
एनिमल प्रिवेंशन एक्‍ट को चुनौती देने वाली याचिका पर SC में सुनवाई टली (प्रतीकात्‍मक फोटो)
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
याचिकाकर्ता ने सरकार के जवाब पर जवाब देने के लिए मांगा वक्‍त
पिछली सुनवाई में SC ने सरकार के नोटिफिकेशन में उठाया था सवाल
कहा था, बहुत से जानवर लोगों की आजीविका को स्रोत, इन्‍हें नहीं छीन सकते
नई दिल्ली:

पशुओं के जबरन परिवहन में इस्तेमाल पर उस वाहन को कब्जे में करने तथा पशुओं को गोशाला या गाय आश्रयों को भेजने को 2017 के नियम (Animal prevention act 2017) को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई दो हफ्ते के लिए टल गई है.याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार द्वारा दाखिल जवाब पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था. गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में SC ने इस मामले में केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर सवाल उठाया था. मुख्‍य न्‍यायाधीश (CJI) एसए बोबडे ने कहा था कि कुत्‍तों-बिल्लियों को छोड़कर बहुत से जानवर बहुत से लोगों की आजीविका के स्रोत हैं, आप इसे इस तरह नहीं छीन ले जा  सकते. यह धारा 29 के विरूद्ध है, आपके नियम विरोधाभासी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया था कि वो इन नियमों पर रोक लगा सकता है. केंद्र सरकार की ओर से ASG जयंत सूद (ASG Jayant Sood) ने अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा था.

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट, बुफेलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें 2017 के नोटिफिकेशन की वैधता को चुनौती दी गई है जिसमें अधिकारियों को मवेशियों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों को जब्त करने और पशुओं को 'गौशाला' (गौ आश्रय गृह) भेजने की अनुमति दी गई है. जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.जस्टिस एसए बोबड़े और बीआर गवई की बेंच ने याचिका पर केंद्र को एक नोटिस जारी किया था जिसमें दावा किया गया कि इस तरह का नोटिफिकेशन मूल कानून, क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों से बाहर चला गया है. याचिकाकर्ता, दिल्ली के पशु व्यापारियों के संगठन, का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और अधिवक्ता सनोबर अली कुरैशी कर रहे हैं, याचिका में 23 मई, 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (केस संपत्ति प्राणियों की देखभाल और रखरखाव) नियम, 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजारों का विनियमन) नियम, 2017 को असंवैधानिक और अवैध करार देने की मांग की गई है.

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SC ने कहा ये नियम कानून के विपरीत है, अगर सरकार प्रावधानों को नहीं हटाती है तो अदालत इसे रोक  सकती है. 
हालांकि, अदालत ने इस मामले को सरकार के वकील के अनुरोध पर स्थगित कर दिया. CJI ने कहा था कि हम एक बात समझते हैं. पालतू जानवर नहीं, पशु लोगों की आजीविका का स्रोत होते हैं. आप (सरकार) उन्हें गिरफ़्तार करने से पहले उन्हें पकड़ नहीं कर सकते. इसलिए प्रावधान विपरीत हैं. आप इसे हटा दें या हम इसे हटा देंगे. केंद्र के वकील ने बताया था कि सरकार ने नियमों को अधिसूचित किया है और यह जानवरों पर क्रूरता को रोकने और रिकॉर्ड पर साक्ष्य है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा था कि कानून में संशोधन करें, धाराएं बहुत स्पष्ट हैं.दोषी पाए जाने पर एक व्यक्ति अपने जानवर को खो सकता है.नियम कानून के विपरीत नहीं हो सकता है.

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