प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा से जुड़े मुद्दों की समीक्षा के लिए गठित एक विशेषज्ञ समिति ने लोगों से पूछा है कि क्या अनूसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों के लिए उम्र सीमा में छूट और परीक्षा में बैठने के लिए अधिक मौके को बरकरार रखा जाए? इन विषयों सहित अन्य मुद्दों पर विशेषज्ञ समिति ने लोगों से सुझाव मांगा है। लोग 21 फरवरी तक अपने सुझाव दे सकते हैं।
सर्वेक्षण के तहत कुछ सवालों के जरिए लोगों से जवाब मांगा गया है। अपने मौजूदा स्वरूप में क्या सिविल सेवा परीक्षा शहरी पृष्ठभूमि के छात्रों को कुछ खास फायदा पहुंचाती है और आज के परिप्रेक्ष्य में सिविल सेवा के किसी उम्मीदवार के लिए अंग्रेजी भाषा की मूलभूत जानकारी की कितनी जरूरत है, जैसे सवाल इसके तहत पूछे गए हैं।
समिति द्वारा इस सर्वेक्षण को सूचना जुटाने का कार्य भर बताया जा रहा है। केंद्र ने पूर्व मानव संसाधन सचिव और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बीएस बसावन के नेतृत्व वाली एक समिति का गठन किया था।
हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया है, ‘संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने यह सर्वेक्षण शुरू नहीं किया है और यह सिर्फ सूचना जुटाने का कार्य भर है जिसे विशेषज्ञ समिति कर रही है।’ समिति को उम्र सीमा में छूट, योग्यता, पाठ्यक्रम और सिविल सेवा परीक्षा की पद्धति से जुड़े विभिन्न विषयों की समीक्षा करने का अधिकार दिया गया है।
यह इस प्रतिष्ठित परीक्षा के मौजूदा स्वरूप के प्रभाव की समीक्षा करेगी और परीक्षा की संशोधित पद्धति को लागू करने की समय सीमा का सुझाव दिया जाएगा।
गौरतलब है कि छात्रों के कुछ समूह ने सिविल सेवा परीक्षा के मौजूदा स्वरूप के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए दावा किया था कि यह शहरी पृष्ठभूमि के छात्रों को अधिक फायदा पहुंचाता है हालांकि सरकार ने इस आरोप को खारिज कर दिया था।
सर्वेक्षण में पूछा गया है कि क्या अंग्रेजी भाषा की जानकारी की जांच सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा में अवश्य की जानी चाहिए? और क्या साल 2011 में पेश किए गए पेपर-2 ने ‘प्रिलिम्स’ को बेहतर बनाया है? सिविल सेवा प्री. में दो पत्र होते हैं, प्रत्येक ही 200 अंक का होता है। छात्रों ने साल 2014 में पत्र-2 की पद्धति के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसे साल 2011 में पेश किया गया था। उन्होंने दावा किया था कि यह इंजीनियरिंग और प्रबंधन पृष्ठभूमि के छात्रों को फायदा पहुंचाता है।
कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने पिछले साल स्पष्ट किया था कि समिति की सिफारिशें मिलने पर सरकार कोई फैसला करेगी। हालांकि प्री. में दूसरे पत्र (सीसैट) में 33 फीसदी अंकों के साथ अर्हता प्राप्त करनी होगी।
सर्वेक्षण के तहत कुछ सवालों के जरिए लोगों से जवाब मांगा गया है। अपने मौजूदा स्वरूप में क्या सिविल सेवा परीक्षा शहरी पृष्ठभूमि के छात्रों को कुछ खास फायदा पहुंचाती है और आज के परिप्रेक्ष्य में सिविल सेवा के किसी उम्मीदवार के लिए अंग्रेजी भाषा की मूलभूत जानकारी की कितनी जरूरत है, जैसे सवाल इसके तहत पूछे गए हैं।
समिति द्वारा इस सर्वेक्षण को सूचना जुटाने का कार्य भर बताया जा रहा है। केंद्र ने पूर्व मानव संसाधन सचिव और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बीएस बसावन के नेतृत्व वाली एक समिति का गठन किया था।
हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया है, ‘संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने यह सर्वेक्षण शुरू नहीं किया है और यह सिर्फ सूचना जुटाने का कार्य भर है जिसे विशेषज्ञ समिति कर रही है।’ समिति को उम्र सीमा में छूट, योग्यता, पाठ्यक्रम और सिविल सेवा परीक्षा की पद्धति से जुड़े विभिन्न विषयों की समीक्षा करने का अधिकार दिया गया है।
यह इस प्रतिष्ठित परीक्षा के मौजूदा स्वरूप के प्रभाव की समीक्षा करेगी और परीक्षा की संशोधित पद्धति को लागू करने की समय सीमा का सुझाव दिया जाएगा।
गौरतलब है कि छात्रों के कुछ समूह ने सिविल सेवा परीक्षा के मौजूदा स्वरूप के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए दावा किया था कि यह शहरी पृष्ठभूमि के छात्रों को अधिक फायदा पहुंचाता है हालांकि सरकार ने इस आरोप को खारिज कर दिया था।
सर्वेक्षण में पूछा गया है कि क्या अंग्रेजी भाषा की जानकारी की जांच सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा में अवश्य की जानी चाहिए? और क्या साल 2011 में पेश किए गए पेपर-2 ने ‘प्रिलिम्स’ को बेहतर बनाया है? सिविल सेवा प्री. में दो पत्र होते हैं, प्रत्येक ही 200 अंक का होता है। छात्रों ने साल 2014 में पत्र-2 की पद्धति के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसे साल 2011 में पेश किया गया था। उन्होंने दावा किया था कि यह इंजीनियरिंग और प्रबंधन पृष्ठभूमि के छात्रों को फायदा पहुंचाता है।
कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने पिछले साल स्पष्ट किया था कि समिति की सिफारिशें मिलने पर सरकार कोई फैसला करेगी। हालांकि प्री. में दूसरे पत्र (सीसैट) में 33 फीसदी अंकों के साथ अर्हता प्राप्त करनी होगी।
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