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This Article is From Dec 14, 2020

मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च मामला : सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और केरल सरकार से उनका रुख जानना चाहा

शीर्ष अदालत ने 2017 के फैसले में मलंकारा एसोसिएशन के 1934 के संविधान से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद पर विचार करने से सभी दीवानी अदालतों और उच्च न्यायालय को रोक दिया था.

मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च मामला : सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और केरल सरकार से उनका रुख जानना चाहा
सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च में ‘जबरन और अनिवार्य रूप से‘ पवित्र स्वीकारोक्ति की कथित परंपरा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को केन्द्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किये. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रणमणियन की पीठ का शुरू में मत था कि धार्मिक परंपरा को चुनौती देने वाली इस याचिका की सुनवाई केरल उच्च न्यायलाय को करनी चाहिए लेकिन बाद में 2017 के शीर्ष अदालत के फैसले से अवगत कराये जाने पर उसने नोटिस जारी किये. शीर्ष अदालत ने 2017 के फैसले में मलंकारा एसोसिएशन के 1934 के संविधान से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद पर विचार करने से सभी दीवानी अदालतों और उच्च न्यायालय को रोक दिया था.

चर्च के एक सदस्य ने याचिका में प्रथाओं और उसके उपनियमों को चुनौती दी थी जिसमें कबूलनामा बयान और भुगतान अनिवार्य है. याचिका में कहा गया है कि ये प्रथा गरिमा और स्वतंत्रता को प्रभावित कर रही है. याचिका में कहा गया है कि इस तरह का जबरन कबूलनामा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत इस तरह की प्रथाओं को बंद करे. अनिवार्य कहूलनामा अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन है और पुरुषों और महिलाओं को अनिवार्य कबूलनामा या पैसे का भुगतान करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

चर्च के सदस्य मैथ्यू टी माथचन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि केरल मालंकरा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च की प्रथाओं को स्वीकार नहीं किया गया है और ये प्रथाएं असंवैधानिक हैं. याचिकाकर्ता के वकील संजय पारेख ने तर्क दिया कि चर्च की प्रथा ब्लैकमेल करती है और समाचार रिपोर्टों में कहा था कि कबूलनामे का दुरुपयोग किया जाता है और पादरियों द्वारा बलात्कार और यौन शोषण के मामले होते हैं.

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि चर्च के सदस्य पादरियों के आदेशों का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है. याचिकाकर्ता ने मलंकरा चर्च के उपनियमों को चुनौती दी, जो हर साल इकबालिया बयान देना और एक रजिस्टर में इन बयानों के रखरखाव को अनिवार्य बनाता है. चर्च के कानून सदस्यों को पादरियों द्वारा पूछे जाने पर बकाया का भुगतान करने के लिए भी मजबूर करते हैं.

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