इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने कहा, 'दस फीसदी आरक्षण मामले पर मोदी जी ये बहुत बड़ा फैसला लिया है. यह पहले से बीजेपी के एजेंडे पर था. इसका चुनाव से कोई लेना देना नहीं है. हमने मध्य प्रदेश और राजस्थान में उनसे अधिक वोट पाए हैं.'
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केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री विजय सांपला ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'आज की कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि सामान्य वर्ग में जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपए से कम या 5 एकड़ से कम खेती की जमीन है, उन्हें नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी का आरक्षण मिलेगा. इसकी बहुत समय से मांग चल रही थी. इसमें सभी सवर्ण समाज ब्राह्मण, बनिया इसके अलावा ईसाई और मुस्लिम भी इसी में आएंगे'
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साथ ही उन्होंने कहा, 'इस पर काफी समय से काम कर रहे थे. इस पर फैसला लेने की हिम्मत मोदी सरकार में ही थी.' साथ ही उन्होंने कहा कि इसे राजनीतिक दृष्टि से न देखें, इसे ऐसे देखें कि सरकार का कर्तव्य होता है कि लोगों की भावनाओं को समझे और उनकी जरूरतों को पूरा किया जाए. सरकार ने केवल अपना कर्तव्य निभाया है.
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एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि विधेयक एक बार पारित हो जाने पर संविधान में संशोधन हो जाएगा और फिर सामान्य वर्गों के गरीबों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा. उन्होंने कहा, ‘‘विधेयक मौलिक अधिकारों के प्रावधानों के तहत अगड़ी जातियों के लिए आश्रय प्रदान करेगा. आरक्षण पर अधिकतम 50 फीसदी की सीमा तय करने का न्यायालय का फैसला संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार नहीं छीन सकता.''
उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय कर दी थी. सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संविधान संशोधन से अतिरिक्त कोटा का रास्ता साफ हो जाएगा. एक सूत्र ने बताया, ‘‘आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.'' प्रस्तावित कानून का लाभ ब्राह्मण, राजपूत (ठाकुर), जाट, मराठा, भूमिहार, कई व्यापारिक जातियों, कापू और कम्मा सहित कई अन्य अगड़ी जातियों को मिलेगा. सूत्रों ने बताया कि अन्य धर्मों के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
कांग्रेस ने मोदी सरकार के इस फैसले को लोगों को बेवकूफ बनाने का ‘चुनावी पैंतरा' करार दिया और कहा कि यह लोकसभा चुनाव हारने के भाजपा के ‘डर' का प्रमाण है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश को गुमराह कर रही है, क्योंकि संसद में संविधान संशोधन पारित कराने के लिए जरूरी बहुमत उसके पास नहीं है. भाजपा ने इस कदम की तारीफ की. पार्टी के कई नेताओं ने इसे ‘ऐतिहासिक' करार दिया. कुछ नेताओं ने कहा कि यह ‘सबका साथ सबका विकास' के मोदी सरकार के ध्येय का प्रमाण है. संविधान संशोधन विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में एक धारा जोड़कर शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा. अब तक संविधान में एससी-एसटी के अलावा सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन इसमें आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का कोई जिक्र नहीं है.
संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में कम से कम दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा. भाजपा का मानना है कि यदि विपक्षी पार्टियां इस विधेयक के खिलाफ वोट करती हैं तो वे समाज के एक प्रभावशाली तबके का समर्थन खो सकती है. राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है.
बता दें, गुजरात में पहले से ही गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण है. गुजरात में पाटीदारों के आरक्षण की मांग को लेकर हुए बड़े आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने पटेलों की नाराज़गी को कम करने के लिए साल 2016 में सवर्ण गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी.
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