Prashant Bhushan Contempt Case: प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 का अदालत की अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल (Attorney General KK Venugopal) की मदद मांगी है. सुप्रीम कोर्ट ने वेणुगोपाल से इस मामले में विचार करने और सवाल तय करने में मदद के लिए कहा है. बता दें कि मामले (Prashant Bhushan Contempt Case) की सुनवाई 12 अक्टूबर तक के लिए टल गई है. जस्टिस ए.एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की तीन जजों वाली बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इस मामले की सुनवाई की.बताते चलें कि इससे पहले जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने मामले को CJI के पास भेजा था. जस्टिस मिश्रा (Justice Arun Mishra) ने कहा था कि वो रिटायर हो रहे हैं उनके पास समय की कमी है. मामले को संवैधानिक पीठ भेजा जाए या नहीं, नई बेंच तय करेगी.
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जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि हम मामले को खत्म करना चाहते थे, लेकिन कुछ मूल प्रश्न हैं कि अगर आपको किसी न्यायाधीश के खिलाफ कोई शिकायत है, तो प्रक्रिया क्या होनी चाहिए? किन परिस्थितियों में इस तरह के आरोप किए जा सकते हैं यह भी एक सवाल है. भूषण के वकील राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाया गये सवाल सही नहीं है. धवन ने सुझाव दिया अवमानना के मामले को बंद कर देना चाहिए और जो सवाल बेंच ने उठाये हैं उन्हें सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेज देना चहिए. वकील ने दलील दी कि भूषण ने जो कहा था वह रिटायर्ड जजों के बारे में कहा था, वे जज तब सुप्रीम कोर्ट में जज के पद पर नहीं थे इसलिए यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं होती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले इस पर विचार ज़रूरी कि ऐसे बयान से पहले क्या आंतरिक शिकायत करना उचित नहीं होता? साल 2009 के 11 साल पुराने अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की तरफ़ से सफाई और खेद व्यक्त करने को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. यह केस भूषण की ओर से 11 साल पहले तहलका पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू को लेकर है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि भारत के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे. वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चलाने से पहले कोर्ट पहले ये तय करेगा कि भूषण के शब्द ‘भ्रष्टाचारी' कोर्ट की अवमानना माना जाएगा या नहीं. प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया था जिसमें कहा गया है कि जजों में भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक नहीं होता. अपने पद का गलत लाभ लेना, भाई-भतीजावाद जैसी कई बातें इसके दायरे में आती हैं.
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