यह ख़बर 13 सितंबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

नक्सल प्रभावित इलाकों को मिले विकास का लाभ : पीएम

खास बातें

  • पीएम ने कहा कि जमीनी स्तर पर योजनाओं को क्रियान्वित करने वाले जनता के प्रतिनिधियों और अधिकारियों को योजनाओं में बदलाव करने की आजादी रखनी होगी।
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था ने जो समृद्धि लाई है उसमें नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को उचित हिस्सेदारी मिलनी चाहिए जबकि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इन इलाकों में सड़क सम्पर्क के लिए प्रधानमंत्री से अतिरिक्त निधि की मांग की। 'एकीकृत कार्य योजना (आईएपी) जिलों में ग्रामीण विकास योजनाओं के प्रभावी क्रियान्यवन के लिए उचित विकास रणनीति पर राष्ट्रीय कार्यशाला' विषय पर अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास की कमी वाम-पंथ चरमपंथी इलाकों के निवासियों के बीच अक्सर अलगाव की भावना पैदा करती है। उन्होंने कहा, "यदि अलगाव की भावना को अपनेपन की भावना में बदलनी है तो हमारे कार्यक्रमों एवं नीतियों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि इन इलाकों के लोगों की समृद्धि में बराबर की हिस्सेदारी है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि जमीनी स्तर पर योजनाओं को क्रियान्वित करने वाले जनता के प्रतिनिधियों और अधिकारियों को योजनाओं में बदलाव करने की अत्यधिक आजादी रखनी होगी क्योंकि 'ये योजनाएं एक दूरी से काफी मजबूत लग सकती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इनमें कई समस्याएं होती हैं।' उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि योजना आयोग, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के समक्ष यह चुनौती इस चीज को उपस्थित करने वाली है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए जमीनी स्तर से सीख लेना हमारी विकास योजना का प्रमुख बिंदु रहा है।" एकीकृत कार्य योजना (आईएपी) का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आईएपी का उद्देश्य वाम-पंथी चरमपंथ से प्रभावित अत्यंत पिछड़े इलाकों में विकास की कमी को दूर करना है। उन्होंने कहा कि इन इलाकों में सुरक्षा का अभाव विकास में एक बड़ी बाधा है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि विभिन्न योजनाओं के लिए धन का प्रबंध करने वाली संस्थाओं को सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक इमारत से पुलिस स्टेशन, बैंक और इस तरह की गतिविधियां चलाने वाले उपक्रमों को संचालित किया जा सकता है और इसके लिए प्रयोग किया जा सकता है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने दिन भर चली बैठक की समाप्ति पर कार्यशाला के महत्वपूर्ण निष्कर्षो को पढ़ा। इस कार्यशाला में 60 जिलों के जिलाधिकारियों ने हिस्सा लिया। रमेश ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि  60 आईएपी जिलों के करीब सभी निवासियों को जोड़ने वाले प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना को अगले तीन वर्ष के लिए अतिरिक्त 35000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। रमेश ने बाद में पत्रकारों को बताया कि प्रधानमंत्री ने फैसला किया है कि वह इस मुद्दे को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के साथ चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि मार्च 2012 तक प्रत्येक आईएपी जिले में 500 लोगों को 'भारत निर्माण स्वयंसेवकों' के रूप में भर्ती की जाएगी। वहीं, चिदम्बरम ने कहा कि सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती नक्सलवाद से निपटना है। सरकार नक्सलियों के साथ बातचीत के लिए तैयार है लेकिन इसके लिए उन्हें वार्ता की मेज पर आना होगा। कार्यशाला के उद्घाटन के मौके पर चिदम्बरम ने इस बात पर भी जोर दिया कि असली समस्या शांति स्थापित करना या विकास नहीं, बल्कि ग्रामीणों का दिल जीतना है। उन्होंने कहा कि आतंकवादी घटनाओं के मुकाबले नक्सली हिंसा में इस वर्ष अधिक लोग मारे जा चुके हैं। चिदम्बरम के मुताबिक इस वर्ष पहले आठ महीनों में आतंकवादी घटनाओं के दौरान 26 नागरिक मारे जा चुके हैं। इसके अलावा 46 लोग पूर्वोत्तर में आतंकवादी घटनाओं के दौरान तथा जम्मू एवं कश्मीर में 27 लोग मारे जा चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ इस वर्ष नक्सलियों द्वारा कुल 297 लोग मारे जा चुके हैं। चिदम्बरम ने कहा कि इन सबके उलट इस वर्ष 109 सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में मारे गए जबकि 50 लोग जम्मू एवं कश्मीर तथा पूर्वोत्तर में हिंसा के दौरान मारे गए। चिदम्बरम ने कहा कि योजना अयोग के सदस्यों ने बताया है कि आईएपी के तहत चलायी जा रही किसी भी परियोजना को नक्सलियों ने निशाना नहीं बनाया है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले साल नौ राज्यों के 60 जिलों को आईएपी योजना में शामिल करने की मंजूरी दी थी और इसके तहत वर्ष 2010-11 में 25 करोड़ रुपये और वर्ष 2011-12 के लिए 30 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मंजूरी दी गई थी।


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