
- CRPF के पूर्व कर्मी समेत दो अलग-अलग लोगों ने जनहित याचिका दायर की.
- दिल्ली सरकार की इस घोषणा को रद्द करने की मांग की गई है.
- आगामी 7 नवंबर को इस मामले में सुनवाई हो सकती है.
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याचिकाकर्ता के अनुसार, 'सरकार बिना मंत्रिमंडल में आदेश पारित कर ऐसी घोषणा कैसे कर सकती है? यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) के तहत गैर कानूनी है. ग्रेवाल दिल्ली के निवासी नहीं थे. उन्हें दिल्ली सरकार अनुकंपा राशि कैसे दे सकती है. वहीं, यह एक करोड़ की रकम दिल्ली के जनता द्वारा टैक्स में दिए पैसे हैं'.
याचिका में ये भी कहा गया है कि इस प्रकार के फैसले से आम लोगों में गलत संदेश जाएगा और यह निर्णय आत्महत्या जैसे अपराध को महिमामंडित कर रहा है. आरोप लगाया गया है कि दिल्ली सरकार शहीद का दर्जा देकर आत्महत्या के फैसले को समर्थन दे रही है, जबकि आत्महत्या करना या उसका प्रयास करना भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है. ऐसे मामलों को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता का आरोप है कि दिल्ली सरकार राजनीति कर रही है. यह दूसरों को प्रलोभन देना है. सरकार का यह कदम आम लोगों के हित में नहीं है. इतना ही नहीं यह बॉर्डर पर तैनात अपने सैनिकों का भी अपमान है.
हाईकोर्ट से मांग की गई है कि केंद्र सरकार, उप राज्यपाल शहीद का दर्जा दिए जाने को लेकर गाइडलाइन बनाएं. आगामी 7 नवंबर को इस मामले में सुनवाई हो सकती है.
CRPF के पूर्वकर्मी पूरण चंद आर्य व वकील अवध कौशिक ने ये याचिकाएं दायर की है. याचिकाओं में कहा गया है कि हाल ही में हाईकोर्ट ने अपने एक ऑर्डर में स्पष्ट किया था कि केवल देश के लिए जान गंवाने वाले व्यक्ति को शहीद का दर्जा दिया जाता है. चाहे वह सशस्त्र बल के सैनिक हों या फिर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल का हिस्सा रहें हैं.
याचिकाकर्ता ने मीडिया में आई खबरों की आधार बनाते हुए कहा है कि एक नवंबर को ग्रेवाल ने साउथ एवेन्यू इलाके में स्थित जवाहर भवन के सामने स्थित पार्क में सल्फास खाकर खुदकशी कर ली. इसके बाद 3 नवंबर को दिल्ली सरकार ने ग्रेवाल के परिजनों को एक करोड़ रुपये, परिवार के एक सदस्य को नौकरी व उसे शहीद का दर्जा देने की घोषणा की.
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