यह ख़बर 15 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

जापानी हादसे के बाद एटमी बिल पर बहस की मांग

खास बातें

  • भारत में ऐटमी जवाबदेही कानून पर फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। विपक्ष अब कह रहा है कि इस कानून के कई पहलुओं पर विचार ज़रूरी है।
New Delhi:

जापान के ताज़ा संकट ने भारत में ऐटमी जवाबदेही कानून पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्ष अब कह रहा है कि इस कानून के कई पहलुओं पर विचार ज़रूरी है। भूकंप और सुनामी के बाद जापान पर मंडरा रहे न्यूक्लियर ख़तरे की ख़बरों ने भारत में एक नई बहस छेड़ दी। क्योंकि देश के नए एटमी जिम्मेदारी कानून के मुताबिक अगर किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से न्यूक्लियर हादसे होते हैं तो प्लांट ऑपरेटर की कोई जवाबदेही नहीं होगी। बीजेपी नेता वैंकया नायडू ने कहा कि जवाबदेही तय करने के लिए मौजूदा नियमों में बदलाव पर विचार ज़रूरी है। जापान में हुए हादसे के बाद ये सवाल उठने लगा है कि इस तरह के हादसों से निपटने के लिए भारत में जो नियम कानून हैं क्या उन्हें बदला जाना चाहिए और क्या परमाणु हादसे की स्थिति में ऑपरेटर की जवाबदेही तय करने के लिए नए सिरे से विचार किया जाना चाहिए। मौजूदा एटमी बिल के अनुसार ऑपरेटर की जवाबदेही की सीमा 1500 करोड़ है। जिसे खास हालात में सरकार बढ़ा सकती है। लेकिन विपक्ष मानता है कि पिछले साल ही पास हुए एटमी जवाबदेही कानून को बदलने का वक्त आ गया है। सीपीएम नेता सीताराम येचूरी ने कहा कि परमाणु हादसे से होने वाले नुकसान का सही जायज़ा हादसे के बाद ही तय हो सकता है, पहले नहीं, ऑपरेटर की जवाबदेही के लिए कैंप लगाना ठीक नहीं है। राज्य सभा में सफाई पेश करते हुए पीएम ने कहा कि ऐसे हादसे एक झटके में कई सबक सीखा जाते हैं लेकिन सवाल ये है कि हम कितना सीख पाते हैं।


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