नई दिल्ली:
गुजरात सरकार ने राज्यपाल द्वारा की गई लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति आरए मेहता की नियुक्ति को बरकरार रखे जाने के राज्य उच्च न्यायालय के फैसले को गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मेहता की लोकायुक्त के रूप में नियुक्ति बरकरार रखी थी और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके ‘हथकंडों’ के लिए तीखी आलोचना की थी जिससे ‘संवैधानिक लघु संकट’ पैदा हो गया।
उच्च न्यायालय द्वारा खंडित आदेश दिए जाने के तीन महीने बाद न्यायमूर्ति वीएम सहाय ने कहा कि लोकायुक्त मुद्दे पर मोदी द्वारा अपनाए गए ‘हथकंडों’ से ‘हमारे लोकतंत्र में आ रही गिरावट दिखती है।’
दो सदस्यीय पीठ के खंडित आदेश के बाद न्यायमूर्ति सहाय को लोकायुक्त की नियुक्ति के खिलाफ सुनवाई का जिम्मा सौंपा गया था। न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति पर ‘असहयोग’ का मोदी का ‘आपत्तिजनक’ आचरण कानून के शासन लिए खतरा है।
उन्होंने कहा कि गुजरात लोकायुक्त :संशोधन: अध्यादेश 2011 जारी कर लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया को विस्तारित करने का मोदी का प्रयास ‘भ्रष्ट एवं उग्र’ कार्रवाई है।
यह उल्लेख करते हुए कि ‘असाधारण स्थितियां असाधारण समाधान की मांग करती हैं’ उन्होंने कहा ‘लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय के महत्व को स्वीकार नहीं कर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद के खुले विरोध ने संकटपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है।’
उन्होंने उल्लेख किया कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा मुख्यमंत्री की आपत्तियों को एक बार अस्वीकार कर दिए जाने के बाद न्यायमूर्ति मेहता के नाम को खारिज करने का कोई उचित कारण नहीं था।
मोदी ने न्यायमूर्ति जेआर वोरा को लोकायुक्त नियुक्त किए जाने पर जोर दिया था लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने इसे इस आधार पर स्वीकार नहीं किया था कि न्यायाधीश को गुजरात राज्य न्यायिक अकादमी का निदेशक नियुक्त किया जा चुका है। न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री की पसंद को मान लिया जाता तो इससे ‘घातक चलन’ स्थापित होता।
गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल ने पिछले साल 25 अगस्त को लोकायुक्त पद पर न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति की थी। लोकायुक्त का पद पिछले आठ साल से रिक्त था। राज्य सरकार ने नियुक्ति को अगले ही दिन उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और कहा था कि राज्यपाल ने राज्य सरकार की उपेक्षा की है।
मोदी ने उल्लेख किया था कि राज्यपाल ने लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में असंवैधानिक ढंग से काम किया है क्योंकि राज्य सरकार से सलाह मशविरा नहीं किया गया। ग्यारह अक्तूबर को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने मुद्दे पर खंडित आदेश दिया था । इस पर मामला न्यायमूर्ति सहाय को भेज दिया गया।
गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मेहता की लोकायुक्त के रूप में नियुक्ति बरकरार रखी थी और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके ‘हथकंडों’ के लिए तीखी आलोचना की थी जिससे ‘संवैधानिक लघु संकट’ पैदा हो गया।
उच्च न्यायालय द्वारा खंडित आदेश दिए जाने के तीन महीने बाद न्यायमूर्ति वीएम सहाय ने कहा कि लोकायुक्त मुद्दे पर मोदी द्वारा अपनाए गए ‘हथकंडों’ से ‘हमारे लोकतंत्र में आ रही गिरावट दिखती है।’
दो सदस्यीय पीठ के खंडित आदेश के बाद न्यायमूर्ति सहाय को लोकायुक्त की नियुक्ति के खिलाफ सुनवाई का जिम्मा सौंपा गया था। न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति पर ‘असहयोग’ का मोदी का ‘आपत्तिजनक’ आचरण कानून के शासन लिए खतरा है।
उन्होंने कहा कि गुजरात लोकायुक्त :संशोधन: अध्यादेश 2011 जारी कर लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया को विस्तारित करने का मोदी का प्रयास ‘भ्रष्ट एवं उग्र’ कार्रवाई है।
यह उल्लेख करते हुए कि ‘असाधारण स्थितियां असाधारण समाधान की मांग करती हैं’ उन्होंने कहा ‘लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय के महत्व को स्वीकार नहीं कर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद के खुले विरोध ने संकटपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है।’
उन्होंने उल्लेख किया कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा मुख्यमंत्री की आपत्तियों को एक बार अस्वीकार कर दिए जाने के बाद न्यायमूर्ति मेहता के नाम को खारिज करने का कोई उचित कारण नहीं था।
मोदी ने न्यायमूर्ति जेआर वोरा को लोकायुक्त नियुक्त किए जाने पर जोर दिया था लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने इसे इस आधार पर स्वीकार नहीं किया था कि न्यायाधीश को गुजरात राज्य न्यायिक अकादमी का निदेशक नियुक्त किया जा चुका है। न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री की पसंद को मान लिया जाता तो इससे ‘घातक चलन’ स्थापित होता।
गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल ने पिछले साल 25 अगस्त को लोकायुक्त पद पर न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति की थी। लोकायुक्त का पद पिछले आठ साल से रिक्त था। राज्य सरकार ने नियुक्ति को अगले ही दिन उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और कहा था कि राज्यपाल ने राज्य सरकार की उपेक्षा की है।
मोदी ने उल्लेख किया था कि राज्यपाल ने लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में असंवैधानिक ढंग से काम किया है क्योंकि राज्य सरकार से सलाह मशविरा नहीं किया गया। ग्यारह अक्तूबर को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने मुद्दे पर खंडित आदेश दिया था । इस पर मामला न्यायमूर्ति सहाय को भेज दिया गया।
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