ललितगेट और व्यापमं घोटाला, क्या बनी रहेगी विपक्षी एकता?

नई दिल्‍ली:

मॉनसून सत्र का तीसरा दिन, संसद के दोनों सदन ललितगेट और व्यापमं मामले पर हंगामे के साथ शुरू हुये और फिर जब तक भी चले हंगामा ही होता रहा। इस बीच सदन के नेता अरुण जेटली ने विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक करनी चाही लेकिन कोई नेता उस मीटिंग में गया नहीं।

विपक्षी नेताओं का कहना था कि उस मीटिंग में क्या होना था किसी को नहीं बताया गया। विपक्ष ने सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाये। सीपीएम महासचिव और राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी ने कहा, 'हमें कोई एजेंडा नहीं बताया गया... क्यों मीटिंग हो रही है, इसका कुछ पता नहीं था।'

लेकिन सवाल ये भी है कि अभी साथ खड़ा दिख रहा विपक्ष क्या वाकई एकजुट है। लेफ्ट पार्टियां ज़रूर कांग्रेस के साथ मोदी सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे मांग रही है लेकिन बाकी पार्टियों के रुख को लेकर यह नहीं कहा जा सकता।

लोकसभा में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी एआईएडीएमके का रुख ठंडा है। तीसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी टीएमसी खामोश है। उसके नेता कहते हैं कि उनके लिये भ्रष्टाचार मुद्दा है लेकिन आरोपियों (सुषमा, वसुंधरा और शिवराज) पर वह हमला नहीं करना चाहती।

टीएमसी के वरिष्ठ सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने पत्रकारों से कहा, 'हमारे पास इस्तीफा मांगने का कोई एवीडेंस नहीं है। हम करप्शन पर चर्चा के लिये तैयार हैं।'

सच्चाई ये भी है कि टीएमसी सरकार अभी शारदा मामले में सीबीआई जांच के डर से घिरी है। हालांकि कांग्रेस और टीएमसी दोनों इस बात से इनकार करते हैं कि बंगाल और केंद्र के बीच भ्रष्टाचार के मामले में सहूलियत का कोई लेन-देन हो रहा है।

उधर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी व्यापमं घोटाले पर तो अभी शिवराज सिंह चौहान और ललितगेट पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का इस्तीफा तो मांग रही है लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर बिल्कुल नरम है। मुलायम सिंह यादव ने एनडीटीवी इंडिया से बुधवार को कहा, 'सब लोग एक महिला के पीछे पड़े हैं। सपा का महिलाओं के लिये नज़रिया बिल्कुल साफ है। महिलाओं को सात खून माफ।'

सूत्र बताते हैं कि सुषमा स्वराज ने निजी स्तर पर कई नेताओं से बात की और इसी वजह से उन्हें मुलायम सिंह यादव का समर्थन भी मिल रहा है। इसके अलावा कहीं न कहीं मुलायम सिंह यादव पर यह दबाव भी है कि पुराना सीबीआई जांच का मामला सरकार एक बार फिर से न खोल दे। इसीलिये उनकी पार्टी कांग्रेस की पिछलग्गू नहीं दिखना चाहती। सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा, 'अगर कांग्रेस लेट जायेगी तो क्या हम भी लेट जायेंगे?'

उधर जेडीयू भी इस मामले में बढ़चढ़ कर हमले नहीं कर रही। पहले कई महत्वपूर्ण बिलों पर जेडीयू सरकार के खिलाफ बोलने पर आकिर वक्त में वॉक आउट कर चुकी है। अभी पार्टी के बड़े नेता कहते हैं कि सांसदों की सारी ऊर्जा बिहार चुनावों की तैयारी में खर्च हो रही है। सांसद के.सी. त्यागी ने कहा कि, 'हमारे सारे नेता बिहार में हैं और चुनाव प्रचार में लगे हैं। यहां बीजेपी सरकार के विरोध करने की ज़िम्मेदारी शरद यादव, पवन वर्मा और मेरे पास है। वह काम हम कर रहे हैं। हमने कांग्रेस के भ्रषाटाचार का विरोध किया और हम बीजेपी के भ्रष्टाचार के भी खिलाफ हैं।'

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बुधवार के संसद के मुख्य गेट के आगे गांधी जी की प्रतिमा के सामने कांग्रेस अध्य़क्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को धरना देना था लेकिन रणनीति के तहत उसे टाल दिया गया क्योंकि कांग्रेस सबको साथ लेकर विरोध करना चाह रही है उसे डर है कि अकेले आगे बढ़ने पर सहयोगी बुरा न मान जायें। लेकिन क्या सब लोग वास्तव में कांग्रेस के साथ है?