प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई:
महाराष्ट्र के कोल्हापुर महानगर पालिका की मेयर अश्विनी रामाणे का पद इसलिए छिन गया है क्योंकि उन्होंने सत्ता के लिए झूठी जाति का सहारा लिया था। सोमवार को आए एक बड़े फैसले ने अश्विनी को सत्ता से बेदखल कर दिया है।
कांग्रेस को इससे करारा झटका लगा है। अश्विनी राज्य के संभ्रांत मराठा समाज की हैं। जबकि उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए खुद को ओबीसी बताया था। ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में कुणबी जाति के होने का दावा करते हुए अश्विनी मेयर के पद पर आसीन हो सकीं, जो कि ओबीसी महिला के लिए आरक्षित था। लेकिन, झूठ की कलई खुली तो उन्हें इसी के साथ पार्षद का पद भी खोना पड़ा है।
कोल्हापुर पश्चिम महाराष्ट्र का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है। इस शहर में जाति का झूठ पकड़े जाने वाली मेयर अकेली नहीं। उनके अलावा 6 अन्य पार्षद हैं, जिन पर ऐसी ही कार्रवाई हुई है। गौरतलब है कि सभी पार्षद मराठा समाज के हैं। जिन्होंने अपने आपको ओबीसी बताकर चुनाव लड़ा।
चुनाव जीतने के बाद हर एक उस पार्षद को अपने जाति प्रमाण पत्र का वेरिफिकेशन पेश करना होता है जो पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित सीट पर विजई हुआ हो। इस प्रक्रिया में दावा करने वाले व्यक्ति की जाति की वैधता जांची जाती है। विवादित 7 पार्षदों के इसी प्रक्रिया के तहत मराठा (अगड़ी जाति) होने के सबूत मिलने पर दोषी करार दिया गया। इन 7 पार्षदों में 4 कांग्रेस के हैं। जबकि, एनसीपी, बीजेपी और ताराराणी आघाड़ी का एक - एक सदस्य हैं।
कोल्हापुर महानगरपालिका के कुल 33 वार्ड पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें जीते पार्षदों में से 13 ने अपनी जाति प्रमाण पत्र का वेरिफिकेशन महानगर पालिका प्रशासन के सामने प्रस्तुत किया था। इसमें से 7 के प्रमाण पत्र झूठे साबित हुए। अब इन जगहों पर चुनाव कराने के बारे में स्थानीय प्रशासन ने राज्य चुनाव आयोग से सलाह मांगी है।
महाराष्ट्र में मराठा सवर्ण समाज है, जिसे शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की पहल बॉम्बे हाई कोर्ट सिरे से खारिज कर चुका है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता नारायण राणे ने मराठाओं को पिछड़ा घोषित करते हुए उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण देने की पेशकश की थी।
कांग्रेस को इससे करारा झटका लगा है। अश्विनी राज्य के संभ्रांत मराठा समाज की हैं। जबकि उन्होंने सत्ता हथियाने के लिए खुद को ओबीसी बताया था। ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में कुणबी जाति के होने का दावा करते हुए अश्विनी मेयर के पद पर आसीन हो सकीं, जो कि ओबीसी महिला के लिए आरक्षित था। लेकिन, झूठ की कलई खुली तो उन्हें इसी के साथ पार्षद का पद भी खोना पड़ा है।
कोल्हापुर पश्चिम महाराष्ट्र का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है। इस शहर में जाति का झूठ पकड़े जाने वाली मेयर अकेली नहीं। उनके अलावा 6 अन्य पार्षद हैं, जिन पर ऐसी ही कार्रवाई हुई है। गौरतलब है कि सभी पार्षद मराठा समाज के हैं। जिन्होंने अपने आपको ओबीसी बताकर चुनाव लड़ा।
चुनाव जीतने के बाद हर एक उस पार्षद को अपने जाति प्रमाण पत्र का वेरिफिकेशन पेश करना होता है जो पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित सीट पर विजई हुआ हो। इस प्रक्रिया में दावा करने वाले व्यक्ति की जाति की वैधता जांची जाती है। विवादित 7 पार्षदों के इसी प्रक्रिया के तहत मराठा (अगड़ी जाति) होने के सबूत मिलने पर दोषी करार दिया गया। इन 7 पार्षदों में 4 कांग्रेस के हैं। जबकि, एनसीपी, बीजेपी और ताराराणी आघाड़ी का एक - एक सदस्य हैं।
कोल्हापुर महानगरपालिका के कुल 33 वार्ड पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें जीते पार्षदों में से 13 ने अपनी जाति प्रमाण पत्र का वेरिफिकेशन महानगर पालिका प्रशासन के सामने प्रस्तुत किया था। इसमें से 7 के प्रमाण पत्र झूठे साबित हुए। अब इन जगहों पर चुनाव कराने के बारे में स्थानीय प्रशासन ने राज्य चुनाव आयोग से सलाह मांगी है।
महाराष्ट्र में मराठा सवर्ण समाज है, जिसे शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की पहल बॉम्बे हाई कोर्ट सिरे से खारिज कर चुका है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता नारायण राणे ने मराठाओं को पिछड़ा घोषित करते हुए उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण देने की पेशकश की थी।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मेयर अश्विनी रामाणे, मेयर पद छिना, झूठा जाति प्रमाण पत्र, Kolhapur, Maharashtra, Ashwini Ramane, Mayor