प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
सड़क हादसों में भारत को हर साल मानव संसाधन का सर्वाधिक नुकसान होता है. अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 12.5 लाख लोगों की प्रति वर्ष सड़क हादसों में मौत होती है. इसमें भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा है. जिनेवा स्थित आईआरएफ के अध्यक्ष के के कपिला ने बताया कि भारत में साल 2016 में 150785 लोग सड़क हादसों में मारे गये. यह किसी भी देश के मानव संसाधन का सर्वाधिक नुकसान है. कपिला ने वैश्विक स्तर पर मानव संसाधन के नुकसान को कम करने के लिये आईआरएफ की ओर से हर साल नवंबर के तीसरे सप्ताह में मनाये जाने वाले सड़क सुरक्षा सप्ताह के मौके पर यहां यह जानकारी दी.
सड़क दुर्घनाओं में बुरी तरह घायल हुए और मौत के मुंह से वापस लौटे लोगों द्वारा सड़क सुरक्षा सप्ताह मानने की कवायद साल 1993 में वैश्विक स्तर पर शुरू की गयी थी, जिसे साल 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने भी मान्यता प्रदान की थी. कपिला ने सड़क दुर्घनाओं से हुए नुकसान का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुये कहा कि दुनिया भर में वाहनों की कुल संख्या का महज तीन प्रतिशत हिस्सा भारत में है, लेकिन देश में होने वाले सड़क हादसों और इनमें जान गंवाने वालों के मामले में भारत की हिस्सेदारी 12.06 प्रतिशत है.
उन्होंने बताया कि इस कवायद का मकसद सड़क हादसों को कम करने में सरकारों के अलावा जागरुकता के माध्यम से जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना है. कपिला ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र ने इस मुहिम के माध्यम से साल 2020 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत तक की कमी लाने का लक्ष्य तय किया है. इसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये आईआरएफ ने भारत सरकार के साथ यातायात नियमों को दुरुस्त कर इनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करने में जनजागरुकता की पहल की है.'
उन्होंने कहा कि भारत को सड़क हादसों के कारण मानव संसाधन के साथ भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. आईआरएफ के अध्ययन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल हुये पीड़ित को औसतन पांच लाख रुपये के खर्च का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ता है. इससे पीड़ित के अलावा समूचा परिवार प्रभावित प्रभावित होता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सड़क दुर्घनाओं में बुरी तरह घायल हुए और मौत के मुंह से वापस लौटे लोगों द्वारा सड़क सुरक्षा सप्ताह मानने की कवायद साल 1993 में वैश्विक स्तर पर शुरू की गयी थी, जिसे साल 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने भी मान्यता प्रदान की थी. कपिला ने सड़क दुर्घनाओं से हुए नुकसान का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुये कहा कि दुनिया भर में वाहनों की कुल संख्या का महज तीन प्रतिशत हिस्सा भारत में है, लेकिन देश में होने वाले सड़क हादसों और इनमें जान गंवाने वालों के मामले में भारत की हिस्सेदारी 12.06 प्रतिशत है.
उन्होंने बताया कि इस कवायद का मकसद सड़क हादसों को कम करने में सरकारों के अलावा जागरुकता के माध्यम से जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना है. कपिला ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र ने इस मुहिम के माध्यम से साल 2020 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत तक की कमी लाने का लक्ष्य तय किया है. इसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये आईआरएफ ने भारत सरकार के साथ यातायात नियमों को दुरुस्त कर इनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करने में जनजागरुकता की पहल की है.'
उन्होंने कहा कि भारत को सड़क हादसों के कारण मानव संसाधन के साथ भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. आईआरएफ के अध्ययन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल हुये पीड़ित को औसतन पांच लाख रुपये के खर्च का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ता है. इससे पीड़ित के अलावा समूचा परिवार प्रभावित प्रभावित होता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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