भारत ने हाल ही में लिपुलेख दर्रे से जुड़ने वाली एक लिंक रोड का उद्घाटन किया है. अब इस पर नेपाल ने आपत्ति जताई है. दरअसल, 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह लिंक रोड चीन-उत्तराखंड(भारत) सीमा और धारचूला (नेपाल ) के करीब है. जिस वजह से इसकी रणनीतिक तौर पर अहमियत बढ़ जाती है. नेपाल के विदेश मंत्री ने एक बयान में कहा, 'यह एकपक्षीय कार्रवाई है. जो कि दो देशों के बीच की समझ के विपरीत है. दोनों ही देशों के सीमा संबंधी विवाद बातचीत के जरिए ही सुलझाए जाते रहे हैं.' इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल के इस बयान का शनिवार को जवाब दिया और कहा, 'इस रोड का इस्तेमाल तीर्थ यात्रियों द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए किया जाता रहा है और यह भारतीय भूक्षेत्र में आता है.'
मंत्रालय ने कहा, 'जिस रोड का उद्घाटन किया गया है वह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आती है. जो कि पूरी तरह भारतीय क्षेत्र में शामिल है. इस रोड का इस्तेमाल पहले भी कैलाश मानसरोवर यात्रियों द्वारा तीर्थ यात्रा के लिए किया जाता रहा है. मौजूदा प्रोजेक्ट के तहत तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए सड़क को बनाया जा रहा है जिससे कि स्थानीय लोग और व्यापारियों को भी मदद मिल सके.'
मंत्रालय के बयान में कहा गया है, 'भारत और नेपाल के बीच सीमा संबंधी विवादों को निपटाने के लिए पहले से ही एक व्यवस्थित तौर तरीका रहा है. नेपाल के साथ सीमा निर्धारित करने को लेकर कार्य भी प्रगति पर है. भारत दूसरे देशों के साथ सीमा विवादों को निपटाने के लिए कूटनीति और चर्चा का पक्षधर रहा है.'
बता दें कि 80 किलोमीटर लंबी इस सड़क का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शुक्रवार को उद्घाटन किया गया था. जो कि कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रियों के लिए मददगार साबित होगी. इस रोड का रक्षा मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया था. राजनाथ सिंह ने कहा था कि कि अब तीर्थयात्री 3 हफ्ते की जगह 1 हफ्ते में ही यात्रा पूरी कर सकेंगे.
गौरतलब है कि यह रोड कैलाश मानसरोवर के लिए गेटवे की तरह है. कैलाश मानसरोवर यात्रा में लगभग 19,500 फीट की ऊंचाई तक ट्रैकिंग की जाती है. लिपुलेख दर्रा एक सुदूर पश्चिमी बिंदु है. जो कि काला पानी के नजदीक है. जिस लेकर नेपाल और भारत के बीच विवाद है. नेपाल और भारत दोनों ही कालापानी को अपने देश का हिस्सा मानते हैं. भारत उसे उत्तराखंड का जबकि नेपाल उसे धारचूला का हिस्सा समझता है.
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