41 सालों तक जो कानून बने वो क्या गलत थे? बिलों को संसदीय समितियों के पास न भेजने के आरोपों पर सरकार

बिना चर्चा के बिल पारित करने के आरोपों का सरकार ने जवाब दिया है और कहा है कि बिलों को संसदीय समितियों के पास भेजना लोकतंत्र मापने का पैमाना नहीं है.

41 सालों तक जो कानून बने वो क्या गलत थे? बिलों को संसदीय समितियों के पास न भेजने के आरोपों पर सरकार

बिलों को संसदीय समितियों के पास न भेजने के आरोपों का केंद्र सरकार ने दिया जवाब

नई दिल्ली:

Winter Session: संसद बिना चर्चा केबिल पारित करने के आरोपों का केंद्र सरकार ने जवाब दिया है और कहा है कि बिलों को संसदीय समितियों के पास भेजना लोकतंत्र मापने का पैमाना नहीं है. केंद्र सरकार ने बिलों को संसदीय समितियों को न भेजने के आरोपों पर कहा कि संसदीय समितियों की स्थापना साल 1993 में हुई थी यानी 41 वर्षों तक बिल बिना संसदीय समितियों की चर्चा के संसद में रखे जाते थे. क्या इसका ये मतलब है कि देश में 41 वर्षों तक लोकतंत्र नहीं था और पंडित नेहरु, राजीव गांधी के समय बनाए गए कानून गलत थे. बाबा साहब आंबेडकर का बनाया गया संविधान भी सेलेक्ट कमेटी को नहीं भेजा गया था.

मोदी सरकार (Narendra Modi Government) का कहना है कि 2014 के पहले 25 वर्षों तक केंद्र में बनी सरकारें कमजोर थीं और गठबंधन की सरकारें थीं. इसलिए आम राय के अभाव में सत्तारूढ़ दल के भीतर ही विभिन्न विचारों और मतभेद के कारण बिलों को संसदीय समितियों को भेजा जाना जरूरी थी. लेकिन 2014 के बाद से सत्तारूढ़ दल को पूर्ण बहुमत है. इसलिए जब कोई बिल चर्चा के लिए आता है. तो बहुसंख्यक सदस्यों में आम राय होती है. इसलिए इन्हें संसद की स्थायी समितियों को भेजने की गुंजाइश कम रह जाती है.

मोदी सरकार आने के बाद तेजी से गिरी संख्या

दरअसल केंद्र सरकार पर आरोप लगे हैं कि बिना चर्चा के बिल पारित कराए जा रहे हैं. जहां 2004-2009 के बीच 60 प्रतिशत बिल संसदीय समितियों के पास भेजे गए. वहीं साल 2009-2014 में 71 प्रतिशत बिल समितियों के पास भेजे गए. लेकिन मोदी सरकार आने के बाद से ये संख्या तेजी से गिरी है.

सरकार का कहना है संसद ही सर्वोच्च, समितिया उसका हिस्सा

साल 2014-2019 में केवल 27 प्रतिशत बिल संसदीय समितियों के पास भेजे गए और 2019 क बाद से अभी तक केवल 12 प्रतिशत बिल संसदीय समितियों के पास गए हैं. वहीं सरकार का कहना है कि संसदीय समितियां संसद का हिस्सा हैं. वे किसी बिल को पारित नहीं कर सकती. संसद सर्वोच्च है. सारे कानून संसद ही पारित करती है. सारे बिल संसदीय समितियों को नहीं भेजे जाते. उदाहरण के लिए बिलों की जगह लाए जाने वाले अध्यादेश, मनी बिल और महत्वपूर्ण संवैधानिक बिल.

सरकार पर आरोप लगाते समय आंकड़ों का मनमाना उपयोग किया गया. साल 2014-19 के बीच राज्यसभा में केवल 18 विधेयक लाए गए और इनमें से 11 बिल यानी 61 प्रतिशत बिल राज्यसभा की समितियों को भेजे गए. 5 बिल यानी 28 प्रतिशत बिल लोकसभा की स्थाई समिति को भेजे गए. यूपीए एक में 2004-09 में राज्यसभा में 100 बिल रखे गए और इनमें से 48 बिल यानी 48 प्रतिशत राज्यसभा की स्थायी समिति को भेजे गए. जबकि 30 बिल यानी 30 प्रतिशत लोकसभा की स्थायी समिति को भेजे गए. यूपीए-2 में 2009-14 में 78 बिल राज्यसभा में रखे गए जिनमें से 40 बिल यानी 51 प्रतिशत राज्यसभा की और 21 बिल यानी 27 प्रतिशत लोकसभा की स्थायी समिति को भेजे गए.

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