फ्रेंच विमान निर्माता कंपनी दसॉ (Dassault) ने भारत को 36 राफेल फाइटर जेट बेचने का सौदा हासिल करने के लिए मिडिलमैन (बिचौलिये) को करीब 7.5मिलियन यूरो (लगभग 650 मिलियन या 65 करोड़ रुपये ) का भुगतान किया और भारतीय एजेंसियां, दस्तावेज होने के बावजूद इसकी जांच करने में नाकाम रहीं. फ्रेंच पोर्टल 'Mediapart' ने अपनी नई रिपोर्ट में यह आरोप लगाया है. यह ऑनलाइन जर्नल, 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रहा है.Mediapart ने कथित झूठे Invoices प्रकाशित किए हैं जो बताते हैं कि दसॉ ने कथित बिचौलिये सुशेन गुप्ता को गुप्त रूप से कमीशन का भुगतान किया. पोर्टल कहता है, 'इन दस्तावेजों की मौजूदगी के बावजूद भारतीय संघीय एजेंसी ने मामले को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया और जांच शुरू नहीं की.'
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रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के पास अक्टूबर 2018 से सबूत हैं कि दसॉ ने राफेल जेट के बिक्री सौदे को हासिल करने के लिए सुशेन गुप्ता को घूस दी.रिपोर्ट में कहा गया है, सबूत गोपनीय दस्तावेजो में मौजूद हैं जो दोनों एजेंसियों की ओर से एक अन्य भ्रष्टाचार मामले-अगस्तावेस्टलैंड की ओर से वीवीआईपी हेलीकॉप्टर्स की सप्लाई का घोटाला- की जांच में सामने आए हैं .NDTV स्वतंत्र रूप से इन दस्तावेजों की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकता और कमेंट के लिए सीबीआई के पास पहुंचा. 'राफेल पेपर्स' पर मीडियापार्ट की तफ्तीश के कारण फ्रांस को जुलाई माह में भ्रष्टाचार के आरोपों की न्यायिक जांच शुरू करनी पड़ी.
सुशेन गुप्ता पर मॉरीशस में रजिस्टर्ड एक 'शैल कंपनी' के जरिये अगस्तावेस्टलैंड से रिश्वत लेने का आरोप है. मॉरीशस प्रशासन, जांच के लिए इस कंपनी से संबंधित दस्तावेज सीबीआई और ईडी को भेजने पर सहमत हो गया था.यह दस्तावेज सीबीआई के पास 11 अक्टूबर, 2018 को, राफेल डील में कथित भ्रष्टाचार की आधिकारिक तौर पर शिकायत मिलने के ठीक एक सप्ताह बाद भेजे गए थे. मीडियापार्ट के अनुसार, 'इसके बाद भी सीबीआई ने जांच शुरू नहीं करने का निर्णय लिया.'. पोर्टल के अनुसार, यह तब हुआ जब उनहें पता चला कि सुशेन गुप्ता ने राफेल डील में दसॉ के लिए भी मध्यस्थ के रूप में काम किया है. रिपोर्ट बताती है कि गुप्ता की 'शेल कंपनी' Interstellar Technologies ने फ्रांस की विमानन फर्म से वर्ष 2007 से 2012 के बीच करीब 7.5 मिलियन यूरो प्राप्त किए.मीडियापार्ट के अनुसार, मॉरीशस के डॉक्यूमेंट्स, नीलामी की (bid process) को कवर करते हैं जो अंतत: दसॉ (2007 - 2012) ने जीती, जिस समय कांग्रेस सत्ता में थी. जबकि 4 अक्टूबर 2018 को फाइल की गई शिकायत, उस संदिग्ध गतिविधि पर प्रकाश डालती है जो 2015 में हुई, जब पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदा सरकार की ओर से सौदे को अंतिम रूप दिया जा रहा था.
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