नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में सूखे के संकट का दायरा बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 21 ज़िलों के करीब 15700 गांव सूखे से प्रभावित हैं। जबकि केंद्र सरकार भगवान की बारिश के आसरे है।
बीड ज़िले का सबसे बड़ा मांजरा बांध भी आख़िरकार सूख गया। कभी पानी से लबालब रहने वाले इस बांध में ज़रा भी पानी नहीं है। बांध के प्रबंधकों के मुताबिक इस पूरे इलाके में पिछले तीन साल से औसत से काफी कम बारिश हुई है जिस वजह से ये बांध पूरी तरह से सूख चुका है। इस बांध से बीड और लातूर ज़िले में सिंचाई, पीने के पानी और उद्योग जगत की पानी का ज़रूरतें पूरी होती हैं, लेकिन अब पानी की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
महाराष्ट्र में ये तीसरा बांध है जो सूख चुका है। 21 ज़िलों के 15747 गांव सूखे की चपेट में हैं। ये सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं, देश के कई राज्यों का हाल है। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में पानी पर पहरा है। पुलिसवाले ख़ुद पानी बांट रहे हैं।
इन सबके बीच केंद्र सरकार अब भगवान का नाम ले रही है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू ने कहा, "इसमें हम क्या कर सकते हैं...भगवान ने दया किया तो बारिश आएगा...नहीं आएगा तो सरकार की तरफ से काम होता रहता है।" विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाने में देरी नहीं की। एनसीपी नेता और सांसद तारीक अनवर ने कहा कि सरकार पूरी तरह से संकट से निपटने में नाकाम हो चुकी है।
उधर केंद्रीय जल आयोग का कहना है - पानी को बहुत संभाल कर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। एनडीटीवी से बातचीत में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष, जी एस झा ने कहा कि जल्दी ही आयोग सूखा-ग्रस्त इलाकों को एडवाइज़री जारी करने वाला है। जी एस झा मानते हैं कि किसानों को नए सीज़न में अब ऐसे बीजों का इस्तेमाल करना होगा जिसमें पानी के इस्तेमाल की कम ज़रूरत पड़ती हो।
लेकिन सवाल है कि इस संकट में फौरन राहत कैसे मिले। दरअसल ये तीसरे साल का सूखा है। लेकिन तीन सालों में सरकार का ऐसी कोई इमरजेंसी प्लान नहीं दिखता है कि किसानों को इस संकट में राहत मिल सके। मुश्किल ये है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीज़न अब भी करीब दो महीने दूर है, यानी आने वाले दिनों में पानी के संकट का दायरा और बढ़ने वाला है।
बीड ज़िले का सबसे बड़ा मांजरा बांध भी आख़िरकार सूख गया। कभी पानी से लबालब रहने वाले इस बांध में ज़रा भी पानी नहीं है। बांध के प्रबंधकों के मुताबिक इस पूरे इलाके में पिछले तीन साल से औसत से काफी कम बारिश हुई है जिस वजह से ये बांध पूरी तरह से सूख चुका है। इस बांध से बीड और लातूर ज़िले में सिंचाई, पीने के पानी और उद्योग जगत की पानी का ज़रूरतें पूरी होती हैं, लेकिन अब पानी की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
महाराष्ट्र में ये तीसरा बांध है जो सूख चुका है। 21 ज़िलों के 15747 गांव सूखे की चपेट में हैं। ये सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं, देश के कई राज्यों का हाल है। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में पानी पर पहरा है। पुलिसवाले ख़ुद पानी बांट रहे हैं।
इन सबके बीच केंद्र सरकार अब भगवान का नाम ले रही है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू ने कहा, "इसमें हम क्या कर सकते हैं...भगवान ने दया किया तो बारिश आएगा...नहीं आएगा तो सरकार की तरफ से काम होता रहता है।" विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाने में देरी नहीं की। एनसीपी नेता और सांसद तारीक अनवर ने कहा कि सरकार पूरी तरह से संकट से निपटने में नाकाम हो चुकी है।
उधर केंद्रीय जल आयोग का कहना है - पानी को बहुत संभाल कर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। एनडीटीवी से बातचीत में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष, जी एस झा ने कहा कि जल्दी ही आयोग सूखा-ग्रस्त इलाकों को एडवाइज़री जारी करने वाला है। जी एस झा मानते हैं कि किसानों को नए सीज़न में अब ऐसे बीजों का इस्तेमाल करना होगा जिसमें पानी के इस्तेमाल की कम ज़रूरत पड़ती हो।
लेकिन सवाल है कि इस संकट में फौरन राहत कैसे मिले। दरअसल ये तीसरे साल का सूखा है। लेकिन तीन सालों में सरकार का ऐसी कोई इमरजेंसी प्लान नहीं दिखता है कि किसानों को इस संकट में राहत मिल सके। मुश्किल ये है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीज़न अब भी करीब दो महीने दूर है, यानी आने वाले दिनों में पानी के संकट का दायरा और बढ़ने वाला है।
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