जस्टिस बीएच लोया (फाइल फोटो)
मुंबई:
सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस लोया की मौत सवालों के घेरे में है और इसपर राजनीति भी हो रही है. इस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी होने वाली है. इस सब के बीच रविवार को मुंबई में जस्टिस लोया के बेटे अनुज लोया ने चुप्पी तोड़ी और मीडिया के सामने आए.
कहा कि उन्हें अपने पिता की आकस्मिक मौत को लेकर पहले संदेह था लेकिन अब उन्हें कोई संदेह नहीं है. अनुज लोया(21) ने कहा कि तीन साल पहले जिस तरह से उनके पिता की मृत्यु हुई, उस बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं है. दिवंगत न्यायाधीश के बेटे ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं भावनात्मक उथल-पुथल के गिरफ्त में था, अतएव मेरे मन में उनकी मृत्यु को लेकर संदेह था. लेकिन, अब मेरे मन में उनकी मौत के तरीके को लेकर कोई संदेह नहीं है.’’ संवेदनशील शोहराबुद्दीन शेख ‘फर्जी मुठभेड़’ कांड की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश लोया की एक दिसंबर, 2014 को कथित रूप से दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गयी थी. वह अपने एक सहयोगी की बेटी के विवाह में पहुंचे थे.
अनुज ने कहा, ‘‘पहले मेरे दादा और बुआ को उनकी मृत्यु को लेकर मन में कुछ संदेह था जो उन्होंने साझा किया. लेकिन अब उनमें से किसी को भी कोई संदेह नहीं है.’’
अनुज ने गैरसरकारी संगठनों और नेताओं से उनके परिवार को परेशान करना बंदकरने की भी अपील की. उन्होंने कहा, ‘‘हम पर नेताओं और गैरसरकारी संगठनों का कुछ दबाव आया. हम किसी का नाम नहीं लेना चाहते हैं लेकिन कृपया अब मेरे पिता की मृत्यु के बारे में सवाल करने से हमारे परिवार को बख्श दीजिए.’’ अनुज पुणे के एक महाविद्यालय में विधि के दूसरे वर्ष के छात्र हैं.
यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की रहस्यमय मौत को गंभीर मुद्दा बताया, महाराष्ट्र सरकार से मांगा जवाब
वहीं अनुज के वकील ने कहा कि इस मुद्दे को किसी भी तरह के विवाद में न घसीटा जाए और न ही इसका राजनीतिकरण हो. उन्होंने कहा कि किसी को कोई शक न रहे इस लिए अनुज मीडिया के सामने आए हैं.
VIDEO: जस्टिस लोया की मौत की जांच के लिए PIL
गौरतलब है कि जज लोया की मौत पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है. दरअसल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से अगवा किया गया था.
आरोप लगाया गया कि दोनों को मुठभेड़ में मार डाला गया. शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी 2006 में गुजरात पुलिस द्वारा मार डाला गया. उसे सोहराबुद्दीन मुठभेड़ का गवाह माना जा रहा था.
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और शेख के केस को एक साथ जोड़ दिया. शुरुआत में जज जेटी उत्पत केस की सुनवाई कर रहे थे लेकिन आरोपी अमित शाह के पेश ना होने पर नाराजगी जाहिर करने पर अचानक उनका तबादला कर दिया गया. फिर केस की सुनवाई जज बी एच लोया ने की और नवंबर 2014 में नागुपर में उनकी मौत हो गई थी.
कहा कि उन्हें अपने पिता की आकस्मिक मौत को लेकर पहले संदेह था लेकिन अब उन्हें कोई संदेह नहीं है. अनुज लोया(21) ने कहा कि तीन साल पहले जिस तरह से उनके पिता की मृत्यु हुई, उस बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं है. दिवंगत न्यायाधीश के बेटे ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं भावनात्मक उथल-पुथल के गिरफ्त में था, अतएव मेरे मन में उनकी मृत्यु को लेकर संदेह था. लेकिन, अब मेरे मन में उनकी मौत के तरीके को लेकर कोई संदेह नहीं है.’’ संवेदनशील शोहराबुद्दीन शेख ‘फर्जी मुठभेड़’ कांड की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश लोया की एक दिसंबर, 2014 को कथित रूप से दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गयी थी. वह अपने एक सहयोगी की बेटी के विवाह में पहुंचे थे.
अनुज ने कहा, ‘‘पहले मेरे दादा और बुआ को उनकी मृत्यु को लेकर मन में कुछ संदेह था जो उन्होंने साझा किया. लेकिन अब उनमें से किसी को भी कोई संदेह नहीं है.’’
अनुज ने गैरसरकारी संगठनों और नेताओं से उनके परिवार को परेशान करना बंदकरने की भी अपील की. उन्होंने कहा, ‘‘हम पर नेताओं और गैरसरकारी संगठनों का कुछ दबाव आया. हम किसी का नाम नहीं लेना चाहते हैं लेकिन कृपया अब मेरे पिता की मृत्यु के बारे में सवाल करने से हमारे परिवार को बख्श दीजिए.’’ अनुज पुणे के एक महाविद्यालय में विधि के दूसरे वर्ष के छात्र हैं.
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वहीं अनुज के वकील ने कहा कि इस मुद्दे को किसी भी तरह के विवाद में न घसीटा जाए और न ही इसका राजनीतिकरण हो. उन्होंने कहा कि किसी को कोई शक न रहे इस लिए अनुज मीडिया के सामने आए हैं.
VIDEO: जस्टिस लोया की मौत की जांच के लिए PIL
गौरतलब है कि जज लोया की मौत पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है. दरअसल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से अगवा किया गया था.
आरोप लगाया गया कि दोनों को मुठभेड़ में मार डाला गया. शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी 2006 में गुजरात पुलिस द्वारा मार डाला गया. उसे सोहराबुद्दीन मुठभेड़ का गवाह माना जा रहा था.
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और शेख के केस को एक साथ जोड़ दिया. शुरुआत में जज जेटी उत्पत केस की सुनवाई कर रहे थे लेकिन आरोपी अमित शाह के पेश ना होने पर नाराजगी जाहिर करने पर अचानक उनका तबादला कर दिया गया. फिर केस की सुनवाई जज बी एच लोया ने की और नवंबर 2014 में नागुपर में उनकी मौत हो गई थी.
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