जज बीएच लोया की मौत की जांच के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
नई दिल्ली:
सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. कोर्ट में बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से पेश दुष्यंत दवे ने कहा कि जजों व अन्य के बयानों में विरोधाभास है. इसी कारण लोया की मौत के मामले में संदेह उत्पन्न होता है.
दुष्यंत दवे ने कहा कि लोया के साथ जो जज थे वे उन्हें नागपुर के अस्पताल में नहीं ले गए. किसी ने भी लोया के परिवार को उनकी मृत्यु की सूचना नहीं दी. लोया को नागपुर के अच्छे अस्पताल में नहीं ले जाया गया. 24 नवंबर को लोया की सुरक्षा भी हटा ली गई थी. पुलिस की किसी रिपोर्ट में ये बात नहीं है कि ये जज उस वक्त लोया के साथ थे. ऐसे में चारों जजों से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने को कहा जाए. इस मामले में स्वतंत्र जांच की जरूरत है.
यह भी पढ़ें : जज लोया मौत केस पर कांग्रेस सख्त, कहा- जज के दो करीबियों की भी हुई संदिग्ध मौत
दवे ने कहा कि सोहराबुद्दीन ट्रायल का मामला पहले जज उत्पत देख रहे थे जिनका अचानक ट्रांसफर किया गया. तबादले का आदेश 27 सितंबर 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है जिसमें कहा गया था कि ट्रायल को एक ही जज शुरू से आखिर तक सुने. हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने जज उत्पत के तबादले का फैसला लिया और बाद में ये केस जज बीएच लोया को सौंप दिया गया. आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जज का ट्रांसफर क्यों किया गया. अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने को भी चुनौती क्यों नहीं दी गई.
VIDEO : जज की मौत के मामले में कांग्रेस के तेवर तीखे
वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि जज लोया के साथ नागपुर के रवि भवन में दो जज और ठहरे थे. वे ही कार में लोया को अस्पताल लेकर गए थे.वहां हाईकोर्ट रजिस्ट्रार और बाद में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी पहुंचे थे. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अनुमति के बाद ही डीजी ने इन जजों के बयान लिए. ये बयान कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट का हिस्सा हैं. इस मामले की सुनवाई पांच फरवरी को जारी रहेगी.
दुष्यंत दवे ने कहा कि लोया के साथ जो जज थे वे उन्हें नागपुर के अस्पताल में नहीं ले गए. किसी ने भी लोया के परिवार को उनकी मृत्यु की सूचना नहीं दी. लोया को नागपुर के अच्छे अस्पताल में नहीं ले जाया गया. 24 नवंबर को लोया की सुरक्षा भी हटा ली गई थी. पुलिस की किसी रिपोर्ट में ये बात नहीं है कि ये जज उस वक्त लोया के साथ थे. ऐसे में चारों जजों से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने को कहा जाए. इस मामले में स्वतंत्र जांच की जरूरत है.
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दवे ने कहा कि सोहराबुद्दीन ट्रायल का मामला पहले जज उत्पत देख रहे थे जिनका अचानक ट्रांसफर किया गया. तबादले का आदेश 27 सितंबर 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है जिसमें कहा गया था कि ट्रायल को एक ही जज शुरू से आखिर तक सुने. हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने जज उत्पत के तबादले का फैसला लिया और बाद में ये केस जज बीएच लोया को सौंप दिया गया. आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जज का ट्रांसफर क्यों किया गया. अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने को भी चुनौती क्यों नहीं दी गई.
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वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि जज लोया के साथ नागपुर के रवि भवन में दो जज और ठहरे थे. वे ही कार में लोया को अस्पताल लेकर गए थे.वहां हाईकोर्ट रजिस्ट्रार और बाद में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी पहुंचे थे. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अनुमति के बाद ही डीजी ने इन जजों के बयान लिए. ये बयान कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट का हिस्सा हैं. इस मामले की सुनवाई पांच फरवरी को जारी रहेगी.
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