देश में कोरोना को लेकर मचे हाहाकर के बीच सेना के दिल्ली के बेस अस्पताल के कमांडेट मेजर जनरल वासु वर्धन के अचानक हुए ट्रांसफर पर भले ही सेना ने बयान जारी कर इसे रुटीन मसला बताया हो पर इससे उठा विवाद थमने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है . खासकर सोशल मीडिया पर सेना के वेटरन इस मसले पर सेना और सरकार को कटघरे में खड़े कर रहे है . सेना के ही एक लेफ्टिनेंट जनरल ने नाम ना छापे जाने पर कहा कि यह गलत नहीं बल्कि महागलत हुआ है . कोरोना के खिलाफ जो वार्रियर लड़ाई रहे हैं उनका मनोबल तोड़ने वाला काम है. ऐसा कभी नहीं होता है कि रिटायरमेंट से दो-तीन महीना पहले किसी अफसर का ट्रांसफर कर दिया जाए. उस हालात में जब वो अफसर दिन रात एक करके कोरोना महामारी के दौरान अपनी ड्यूटी निभा रहा है.
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बेस अस्पताल के कमांडेट को 10 मई के एक आदेश के मुताबिक इस पद से हटाकर रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में अतिरिक्त अधिकारी बना दिया जाता है. कईयों के मुताबिक यह एक मेजर जनरल रैंक के अफसर की बेइज्जती है. यह तभी किया जाता है जब इनके खिलाफ कोई मामला चल रहा है. समान्य हालात में इस रैंक के अफसर का ऐसे तबादला तो नहीं ही किया जाता है. मीडिया में जब यह मामला उछला तो सेना ने बयान जारी कहा कि मेजर जनरल वासु वर्धन बेस अस्पताल के कमांडेट के तौर पर 18 महीने से ऊपर के अपने कार्यकाल को पूरा कर लिया है. अब जनरल वासु की जगह लखनऊ के आर्मी मेडिकल कोर सेन्टर व कॉलेज के डिप्टी कमांडेट मेजर जनरल एस के सिंह को बेस अस्पताल का कमांडेट बनाया गया है.
सेना के कई रिटायर अफसरों का कहना है कि दिल्ली के बेस अस्पताल फिलहाल 1000 बेड का कोविड अस्पताल बना हुआ है. यहीं पर कोरोना से संक्रमित सेना और उनके परिवार का इलाज चल रहा है. मेजर जनरल वासु वर्धन पिछले एक साल से अस्पताल को किस कदर संभाल रहे है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि हाल ही अपने मां की मृत्यु के बावजूद छुट्टी पर नहीं गए . मां की अंत्येष्टि कर सीधे अपने ड्यूटी पर आ गए. सोशल मीडिया में यह खबर भी चल रही है कि रक्षा मंत्रालय के किसी अधिकारी ने बेस अस्पताल के कमांडेट से रेडमेसिवर दवा की मांग की तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया और इसी का कोपभाजन उन्हें अपने ट्रांसफर के रुप में भुगतना पड़ा.
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सेना के रिटार्यड लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय ने एनडीटीवी से कहा कि मेजर जनरल वासु वर्धन का तबादला ऐसे समय में हुआ जबकि देश कोविड के मार से जूझ रहा है. इतने अनुभवी अफसर को ऐसे नाजुक वक्त में इस जिम्मेवारी हटाना सेना के मनोबल के लिए सही संकेत नहीं है .
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