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This Article is From Jun 11, 2021

कोविड में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के हिमायती अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी बोले - 'अगर आप गरीबों को बताएंगे कि...'

नोबल प्राइज से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने NDTV से बातचीत में कहा कि सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का यह सोचना कि गरीबों के हाथों में सीधे पैसे देने से डिमांड नहीं बढ़ती है,  समस्या को देखने का सही तरीका नहीं है. 

अभिजीत बनर्जी ने अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए दिए सुझाव.

नई दिल्ली:

कोरोनावायरस की पहली लहर के बाद दूसरी लहर ने लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर सवाल खड़े किए हैं. नोबल प्राइज से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने NDTV से इस मुद्दे पर बात करते हुए सुझाव दिया कि सरकार को अपने सरकारी रोजगार गारंटी योजनाओं में वर्कडेज़ को 100 से बढ़ाकर 150 करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का यह सोचना कि गरीबों के हाथों में सीधे पैसे देने से डिमांड नहीं बढ़ती है,  समस्या को देखने का सही तरीका नहीं है. 

बनर्जी ने एक इंटरव्यू में कहा, 'गरीबों के हाथ में सीधा पैसा देना एक अच्छा आइडिया साबित हो सकता है. सरकार को मनरेगा के तहत रोजगार सुनश्चित करने पर काम करना चाहिए. इसे 100 से बढ़ाकर 150 करना चाहिए.' राजीव कुमार का कहना है कि गरीब पैसा बचत करते हैं, खर्च नहीं करते हैं, इससे डिमांड नहीं बढ़ती है. इसपर अर्थशाष्त्री ने कहा कि 'अगर आप गरीब को बताएंगे कि उसे इतनी ही मदद मिलेगी, तो वो मिला हुआ पैसा बचाएगा ही, इसलिए मैं उनमें भरोसा जगाने और मनरेगा की बात कर रहा हूं.'

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उन्होंने आगे कहा, 'महामारी के बाद जो लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं, वो लोग दरअसल इसके पहले गरीबी रेखा से कुछ ही ऊपर थे...ये कोई अच्छी बात नहीं है, लेकिन उनको वापस उस जगह पर लाने के लिए थोड़ी ही मदद की जरूरत होगी. मेरे हिसाब से असली सवाल अर्थव्यवस्था में सुधार का है. अगर ऐसे सेक्टर जहां गैर कुशल मजदूर काम करते हैं, जैसे- होटल, मैन्युफैक्चरिंग और कन्स्ट्रक्शन वगैरह, उन सेक्टरों में सुधार किया जाए तो चीजें जल्दी सुधर सकती हैं.'

भारत की डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजनाओं की तुलना दूसरे देशों से करते हुए बनर्जी ने बताया कि यूएस में बेरोजगारों को हर हफ्ते 600 डॉलर मिलता है. फ्रांस में अपनी नौकरी खो चुके लोगों को सरकार मदद दे रही है. उन्होंने कहा कि 'यूरोपीय सेंट्रल बैंक को बहुत रुढ़िवादी माना जाता है, लेकिन उन्होंने भी जो हो सकता है वो किया. उन्होंने नए नोट छापकर बाजार में डाले.' भारत के बड़े बैंकरों में शामिल उदय कोटक ने भी पिछले हफ्ते इकॉनमी को सपोर्ट करने के लिए करेंसी छापने का सुझाव दिया था.

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पिछले महीने बेंगलुरु की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी में बताया था कि महामारी के चलते पिछले साल लगभग 230 मिलियन यानी 23 करोड़ लोग गरीब हो गए, जिसमें सबसे ज्यादा युवा और महिलाएं प्रभावित हुईं. दूसरी लहर से चीजें और खराब हो सकती हैं. पिछले साल मार्च में लगे लॉकडाउन के चलते लगभग 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई, जिनमें से 15 फीसदी लोग साल खत्म होते-होते भी नई नौकरी नहीं ढूंढ पाए थे.

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