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This Article is From Feb 27, 2019

लाखों आदिवासी जंगल से होंगे बेदखल? केंद्र ने फैसले पर रोक की मांग की, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

वन भूमि से करीब 11 लाख आदिवासियों व अन्य को बेदखल करने के मामले पर केंद्र सरकार और गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है.

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लाखों आदिवासी जंगल से होंगे बेदखल? केंद्र ने फैसले पर रोक की मांग की, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

वन भूमि से करीब 11 लाख आदिवासियों व अन्य को बेदखल करने के मामले पर केंद्र सरकार और गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. केंद्र और गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश पर रोक लगाने की मांग की है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच से केंद्र और गुजरात सरकार की ओर से जल्द सुनवाई की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताते हुए गुरुवार को सुनवाई करने की बात की है. 

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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 17 राज्यों की सरकारों से एक करीब मिलियन आदिवासी और अन्य लोगों को वन भूमि से बेदखल करने के आदेश जारी किए हैं. ये आदेश वनों में रहने के अधिकार के उनके दावों को वन अधिकार कानून के तहत खारिज करने के बाद आया है. अदालत ने 24 जुलाई तक उन्हें निष्कासित करने को कहा है और देहरादून स्थित वन सर्वेक्षण को निर्देश दिया है कि हटाए गए अतिक्रमणों पर उपग्रह-छवि आधारित रिपोर्ट प्रस्तुत करें.

सुप्रीम कोर्ट में राज्यों द्वारा दायर हलफनामों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए गए लगभग 11,72,931 (1.17 मिलियन) भूमि स्वामित्व के दावों को विभिन्न आधारों पर खारिज कर दिया गया है. इनमें वो लोग शामिल हैं जो ये सबूत नहीं दे पाए कि  कम से कम तीन पीढ़ियों से भूमि उनके कब्जे में थी।  

ये कानून 31 दिसंबर 2005 से पहले कम से कम तीन पीढ़ियों तक वन भूमि पर रहने वालों को भूमि अधिकार देने का प्रावधान करता है. दावों की जांच जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति और वन विभाग के अधिकारियों के सदस्यों द्वारा की जाती है. 

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इनकी मध्य प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा में सबसे बड़ी संख्या है- जिसमें अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनों के निवासियों (वन अधिकार कानून की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत भारत भर के वनों में रहने वालों द्वारा प्रस्तुत भूमि स्वामित्व के कुल दावों का 20% शामिल है. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत वनवासियों के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय को रद्द करने के लिए कानून बनाया गया था, जो पीढियों से रह रहे लोगों को भूमि पर "अतिक्रमण" करार देता था. 

शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से 17 राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किए हैं कि उन  सभी मामलों में जहां भूमि स्वामित्व के दावे खारिज कर दिए गए हैं  उन्हें12 जुलाई, 2019 तक बेदखल किया जाए. ऐसे मामलों में जहां सत्यापन/ पुन: सत्यापन/ पुनर्विचार लंबित है, राज्य को चार महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए. 

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2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुमानित 104 मिलियन आदिवासी हैं. लेकिन सिविल सोसाइटी समूहों का अनुमान है कि वन क्षेत्रों में 1,70,000 गांवों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों मिलाकर लगभग 200 मिलियन लोग हैं, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 22% हिस्सा कवर करते हैं. 

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