नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने रोहिंग्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दायर किया है. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजने का फैसला परिस्थितियों, कई तथ्यों को लेकर किया गया है, जिसमें राजनयिक विचार, आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, देश के प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन आदि शामिल हैं. हलफनामे में कहा गया है कि रोहिंग्या ने अनुछेद 32 के तहत जो याचिका दाखिल है कि वो सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है, न कि अवैध घुसपैठियों के लिए.
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सरकार ने कहा है कि कुछ रोहिंग्या देशविरोधी और अवैध गतिविधियों में शामिल हैं- जैसे हुंडी, हवाला चैनल के जरिये पैसों का लेनदेन, रोहिंग्याओं के लिए फर्जी भारतीय पहचान संबंधी दस्तावेज हासिल करना और मानव तस्करी आदि. सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या अवैध नेटवर्क के जरिये भारत में घुस आते हैं. बहुत सारे रोहिंग्या पैन कार्ड और वोटर कार्ड जैसे फर्जी भारतीय दस्तावेज हासिल कर चुके हैं. सरकार ने ये भी पाया है कि बहुत सारे रोहिंग्या ISI और ISIS तथा अन्य चरमपंथी ग्रुप द्वारा भारत के संवेदनशील इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की साजिश के हिस्सा हैं.
VIDEO : राहत शिविरों में कब तक रहेंगे रोहिंग्या?
सरकार ने कहा है कि भारत में जनसंख्या बहुत ज्यादा है और सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ढांचा जटिल है. ऐसे में अवैध रूप से आए हुए रोहिंग्या को देश में उपलब्ध संसाधनों में से सुविधायें देने से देश के नागरिकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इससे भारत के नागरिकों और लोगों को रोजगार, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा से वंचित रहना पड़ेगा. साथ ही इनकी वजह से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और कानून व्यस्था में दिक्कत आएगी. सरकार पहले ही कह चुकी है कि कोर्ट को इस मुद्दे को केंद्र पर छोड़ देना चाहिए और देशहित में केंद्र सरकार को पॉलिसी निर्णय के तहत काम करने देना चाहिए.
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सरकार ने कहा है कि भारत में जनसंख्या बहुत ज्यादा है और सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ढांचा जटिल है. ऐसे में अवैध रूप से आए हुए रोहिंग्या को देश में उपलब्ध संसाधनों में से सुविधायें देने से देश के नागरिकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इससे भारत के नागरिकों और लोगों को रोजगार, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा से वंचित रहना पड़ेगा. साथ ही इनकी वजह से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और कानून व्यस्था में दिक्कत आएगी. सरकार पहले ही कह चुकी है कि कोर्ट को इस मुद्दे को केंद्र पर छोड़ देना चाहिए और देशहित में केंद्र सरकार को पॉलिसी निर्णय के तहत काम करने देना चाहिए.