
Bhima-Koregaon Case LIVE UPDATES: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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भीमा कोरेगावं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एसआईटी की जांच नहीं होगी.
चार हफ्ते तक नजब बंद रखने का और आदेश.
Supreme Court Verdict in Bhima-Koregaon Case LIVE UPDATE:
- भीमा-कोरेगांव केस में बहुमत से विपरीत पक्ष सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, 14 सितंबर को ही इस कोर्ट ने एक व्यक्ति को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने के आदेश दिए, जिसे 25 साल पहले फंसाया गया था... यह कोर्ट की निगरानी में SIT से जांच कराए जाने के लिए फिट केस है...
- भीमा-कोरेगांव केस में बहुमत से विपरीत पक्ष सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, गिरफ्तार आरोपियों का नक्सलियों से कोई लिंक नहीं पाया गया... किसी अनुमान के आधार पर आज़ादी का हनन नहीं किया जा सकता... कोर्ट को इसे लेकर सावधान रहना चाहिए... पुणे पुलिस का बर्ताव इस मामले में सही नहीं रहा है...
- जस्टिस चंद्रचूड़: पांच नागरिकों ने असाधारण तरीके से याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दो घंटे बाद ही पुलिस अफसर मीडिया के सामने आ गए. पुलिस कार्रवाई पर संदेह के बादल. पुलिस मीडिया ट्रायल में मदद कर रही है.
चंद्रचूड ने चिट्ठियों को लेकर NDTV का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि सुधा भारद्वाज के लेटर को टीवी पर सनसनीखेज तरीके से दिखाया गया.
- जस्टिस खानविलकर बोले- आरोपी ये तय नहीं कर सकते कि कौन सी एजेंसी जांच करेगी और कैसे. ये केस सिर्फ इसलिए गिरफ्तारी का नहीं है कि असहमति हुई. आरोपी पहले ही कोर्ट में कानूनी उपचार ले रहे हें. हम कोई चिप्पणी नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसका केस पर गंभीर असर पड़ेगा.
- CJI और खानविलकर का बहुमत का फैसला: पांचों गिरफ्तार लोगों की हाउस अरेस्ट चार हफ्ते तक बनी रहेगी. ताकि वो कानूनी उपचार ले सकें. मामले की SIT जांच नहीं होगी.
- सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों का बहुमत से फैसला- अगले 4 हफ्ते तक घर में ही नजरबंद रहेंगे आरोपी.
- 5 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामेल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी जांच नहीं होगी.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, आनंद ग्रोवर और वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से दखल देने और SIT जांच कराने का आग्रह किया तो महाराष्ट्र सरकार की ओर से ASG तुषार मेहता और शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने इसका विरोध किया. ASG तुषार मेहता ने बरामद चिट्ठियां व दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि इनसे साफ है कि वे एक साजिश का हिस्सा हैं. वहीं हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में SIT जांच की जरूरत नहीं है. ऐसा आदेश 2G जैसे मामलों में दिया जाता है.
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एक तरफ जहां सिंघवी ने टीवी चैनलों का जिक्र किया कि कैसे चैनलों को यह चिट्ठियां पहले मिलीं और ये झूठी हैं. सुधा भारद्वाज हिंदीभाषी हैं लेकिन उनकी कथित चिट्ठी में मराठी शब्दों का इस्तेमाल हुआ. जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी सहमति जताई कि कुछ शब्द खास हैं जो मराठी में ही इस्तेमाल होते हैं. हालांकि साल्वे ने कहा कि ये गंभीर मसला है कि चैनल के पास ये चिट्ठी कैसे पहुंची. लेकिन पीठ ने कहा कि मूल मुद्दे पर बहस होनी चाहिए.
राज्य सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने जब पुलिस की केस डायरी सीलबंद कवर में दी और कहा कि ये खुद व्याख्यात्मक है तो चीफ जस्टिस ने कहा कि अपना सर्वश्रेष्ठ दस्तावेज दिखाएं. तुषार मेहता ने कहा कि पांचों आरोपियों को पुख्ता सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया. 6 महीने की जांच के बाद ये कदम उठाया गया. फोन और लेपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स सबूत जब्त किए गए जिन्हें फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. सब कुछ केस डायरी में दर्ज है और संबंधित कोर्ट को हर कदम की जानकारी दी गई. ये कैसे कहा जा सकता है कि हम उन्हें फंसा रहे हैं.
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि कोर्ट को सब बाज़ जैसी नजर से देखना है. याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, ये मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिए. हम चाहते हैं कि कोर्ट के कंधे मजबूत हों और कोई प्रतिबंध न हो. सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी की स्वतंत्रता का बलिदान नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था बिगाड़ने व सरकार को उखाड़ फेंकने और असहमति में अंतर होता है.
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वहीं पुलिस के सामने शिकायत करने वाले की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि आपराधिक कृत्य और असहमति के बीच अंतर होता है. पुलिस जांच आगे बढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि आरोपियों के नाम दोनों FIR में नहीं हैं. न ही वे यलगार परिषद की बैठक में मौजूद थे. उसमें सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज शामिल थे.
सिंघवी ने कहा कि वरवर पर 25 मामले दर्ज हुए जिसमें सभी में वे बरी हो गए. गोंजाल्विस पर 18 मामले हुए जिनमें 17 में वे बरी हो गए. एक मामले में सजा हुई जिसमें अपील लंबित है. इसलिए इसकी जांच SIT से होनी चाहिए. पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने भी इसके पक्ष में दलीलें दीं और कहा कि मामले की निष्पक्ष जांच जरूरी है. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से आनंद ग्रोवर, राजीव धवन और प्रशांत भूषण ने भी दलीलें पेश कीं.
दरअसल 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वो पुणे पुलिस के दस्तावेज देखकर तय करेगा कि इस मामले की जांच SIT के आदेश दिए जाएं या नहीं. हाई वोल्टेज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश ASG मनिंदर सिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि नक्सलवाद गंभीर समस्या है और ये देशभर में फैला है. निचली अदालत को ही ऐसे मामलों को सुनना चाहिए. तीसरे पक्ष द्वारा दाखिल याचिका पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गलत उदाहरण पेश करेगी.
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