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This Article is From Aug 06, 2021

Mumbai: चार माह के मासूम को डॉक्टरों ने दिया जीवनदान, ब्रेन का हिस्सा निकल आया था बाहर

मुंबई के डॉक्टरों ने एक 4 महीने के मासूम को जीवनदान दिया है. बच्चे के ब्रेन का हिस्सा चेहरे पर आ गया था. 8 घंटे तक चली जटिल सर्जरी के बाद बच्चे को इस परेशानी से निजात मिल सकी.

Mumbai: चार माह के मासूम को डॉक्टरों ने दिया जीवनदान, ब्रेन का हिस्सा निकल आया था बाहर
8 घंटे की तक चली सर्जरी के बाद चेहरे के बाहर निकल आए ब्रेक हिस्से को डॉक्टरों ने किया अंदर.
मुंबई:

महाराष्ट्र में 4 महीने के नन्हे कार्तिक को डॉक्टरों ने जीवनदान दिया है. उसे एक ऐसी दुर्लभ बीमारी हुई थी जिसमें उसके ब्रेन का हिस्सा नाक के जरिये बाहर चेहरे पर आ चुका था. ब्रेन के हिस्से की वजह से उसकी आंख और नाक ढंक चुकी थी. मुंबई में 8 घंटे के जटिल और चुनौतीपूर्ण सर्जरी के बाद बच्चे को इस परेशान से राहत मिल सकी.

दरअसल, नन्हा कार्तिक ‘कंजेनिटल एनसीफैलोसील डिसॉर्डर' नाम की दुर्लभ बीमारी के साथ ही पैदा हुआ था. बच्चे की आंखों और नाक को ढंक चुका ये सूजन जैसा हिस्सा, ब्रेन का ही एक छोटा सा भाग है, जो हड्डी से निकल नाक से बाहर आ गया था. बच्चा देख नहीं पा रहा था. उसे खाने-पीने और नाक से सांस लेने में भी तकलीफ़ हो रही थी. मेडिकल भाषा में इस बीमारी को एनसीफैलोसील कहा जाता है.

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जब ब्रेन का हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार होता है. ये जन्मजात और रेयर बीमारी है. ये बीमारी लगभग 10 से 11 हजार नवजात बच्चों में से किसी एक को होती है, जिसका इलाज सिर्फ़ सर्जरी है. सर्जरी में इस हिस्से को सफलतापूर्वक बाहर निकाल कर सिर को बंद किया जाता है. ये सर्जरी बेहद चुनौतीपूर्ण, लेकिन संभव होती है.

बच्चे की सर्जरी के लिए महाराष्ट्र के नंदुरबार ज़िले का ये किसान परिवार साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर मुंबई के वाडिया अस्पताल पहुंचा था. 8 घंटे की सर्जरी और क़रीब 15 दिनों के इलाज के बाद कार्तिक को नया जीवनदान मिला. सर्जरी समय पर ना होती तो सूजन वाले हिस्से का फटने का ख़तरा था, जिससे बच्चे को संक्रमण हो सकता था.

कार्तिक के पिता सुरेश पावरा ने कहा, ''बच्चे का दर्द देखकर हम बहुत डर गए थे. बहुत इधर-उधर भटके, लग ही नहीं रहा था की बच्चे का ऑपरेशन हो पाएगा, लेकिन ये ज़रूर पता था की इसे बचाने के लिए ऑपरेशन ही करवाना होगा, हम बेहद उम्मीद के साथ मुंबई आए और वाडिया अस्पताल के डॉक्टरों ने हमें आश्वस्त किया. मेरे बेटे को नया जन्म दिया. इसके लिए मैं डॉक्टरों का शुक्रिया अदा करता हूं."

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वाडिया अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. चंद्रशेखर देवपुजारी ने कहा कि ''महत्वपूर्ण बात ये है की इस तरह की बीमारी समय पर रोकी जा सकती है, इस प्रिवेन्शन के दो हिस्से हैं, मां का न्यूट्रिशन ठीक रहना चाहिए, गर्भावस्था की योजना से एक महीने पहले और गर्भावस्था से दो महीने पहले फोलिक एसिड की गोलियां लेना जरूरी है. दूसरा इस बीमारी के बारे में सोनोग्राफ़ी टेस्ट से पहले ही जाना जा सकता है. गर्भावस्था से पहले और इस दौरान, शरीर में संतुलित मात्रा में पौष्टिक तत्व हो और समय पर कुछ जांच की जाए तो इस बीमारी को रोका और समय से पहले समझा जा सकता है.

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