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This Article is From Sep 13, 2019

Ayodhya Case : मुस्लिम पक्ष ने कहा- चीन मानसरोवर जाने से रोक दे तो क्या पूजा का अधिकार होगा?

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में शुक्रवार को 23वें दिन की सुनवाई हुई

Ayodhya Case : मुस्लिम पक्ष ने कहा- चीन मानसरोवर जाने से रोक दे तो क्या पूजा का अधिकार होगा?
सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में शुक्रवार को 23 वें दिन की सुनवाई हुई.
नई दिल्ली:

अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद (Ayodhya Case) मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में शुक्रवार को 23वें दिन की सुनवाई हुई. कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि जन्मस्थान के लिए अदालत में याचिका दाखिल नहीं हो सकती. जन्मस्थान कोई कानूनी व्यक्ति नहीं है. नदियों, पहाड़ों, कुओं के लिए प्रार्थना की जाती है और यह एक वैदिक अभ्यास है. अगर कल को चीन मानसरोवर में जाने से मना कर देता है तो क्या कोई पूजा के अधिकार का दावा कर सकता है?  मुस्लिम पक्ष की तरफ से सबसे पहले वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने बहस की शुरुआत की. जिलानी ने कहा कि 1885 में निर्मोही अखाड़े ने जब कोर्ट में याचिका दायर की थी तो उन्होंने अपनी याचिका में विवादित जमीन की पश्चिमी सीमा पर मस्जिद होने की बात कही थी. यह हिस्सा अब विवादित जमीन के भीतरी आंगन के नाम से जाना जाता है. निर्मोही अखाड़े ने 1942 के अपने मुकदमे में भी मस्जिद का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने तीन गुम्बद वाले ढांचे को मस्जिद स्वीकार किया था.

जफरयाब जिलानी दस्तावेजों के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि 1934 से 1949 के बीच बाबरी मस्जिद में नियमित नमाज़ होती थी. जिलानी ने कहा कि रोज़ की नमाज के लिए ज़्यादा लोग नहीं आते थे लेकिन जुमे की नमाज में भीड़ होती थी. जिलानी ने कहा कि जिन दस्तावेज़ों को निर्मोही अखड़ा द्वारा इस्तेमाल किया गया है उसके बाद भी यह कैसे कह सकते हैं कि वहां पर नमाज नहीं पढ़ी जाती थी. जिलानी ने मोहम्मद हाशिम के बयान का हवाला देते हुए कहा कि हाशिम ने अपने बयान में कहा था कि उन्होंने 22 दिसबंर 1949 को बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी. जिलानी ने हाजी महबूब के बयान का हवाला देते हुए कहा कि 22 नवंबर 1949 को हाजी महबूब ने बाबरी मस्जिद में नमाज अदा की थी. जिलानी ने एक गवाह के बारे में बताया कि 1954 में बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने की कोशिश करने पर उस व्यक्ति को जेल हो गई थी.

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जफरयाब जिलानी ने बाबरी मस्जिद में 1945-46 में तरावीह की नमाज पढ़ाने वाले हाफ़िज़ के बयान का ज़िक्र किया. जिलानी ने एक गवाह का बयान पढ़ते हुए कहा कि उसने 1939 में मगरिब की नमाज़ बाबरी मस्जिद में पढ़ी थी. जफरयाब जिलानी मुस्लिम पक्ष के गवाहों के बयान पर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि 1934 के बाद भी विवादित स्थल पर नमाज पढ़ी गई. हिन्दू पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जिरह के दौरान यह दलील दी गई कि 1934 के बाद विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी गई थी.

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लंच के बाद मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा ने सिर्फ प्रभार और प्रबंधन के लिए अंदर के अहाते के अधिकार के लिए याचिका दाखिल की. धवन ने कहा कि पहले हिन्दू बाहर के अहाते में पूजा करते थे लेकिन 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति को गलत तरीके से मस्जिद के अंदर शिफ्ट किया गया.

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राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखड़े का कहना है कि वह शेबेत है और प्रबंधन के अधिकार से वंचित है. अगर कोई नया मंदिर बन जाता है तो निर्मोही अखाड़ा उसका शेबेत रहेगा. धवन ने कहा कि 1885 में महंत रघुबर दास के मुकदमे को पहले निर्मोही अखाड़े ने नकार दिया था लेकिन बाद में निर्मोही अखड़ा का महंत मान लिया था. पहले निर्मोही अखाड़ा ने जन्मस्थान शब्द को नकार दिया था लेकिन बाद में इसको ज्यूडिशियल इंट्री में माना.

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राजीव धवन ने स्थान को ज्यूरिस्टिक पर्सन कहे जाने की दलील पर उठाए गए सवाल पर कहा कि हिन्दू पक्ष ने तर्क दिया है कि नदियों, पहाड़ों, कुओं के लिए प्रार्थना की जाती है. मेरा तर्क है कि यह एक वैदिक अभ्यास है. जहां तक ​​वेदों का सवाल है, वे इसे पूजते हैं, लेकिन इस रूप में नहीं. आप सूर्य से प्रार्थना करते हैं, लेकिन इसे अपना अधिकार क्षेत्र नहीं कहते. धवन ने कहा कि स्वयंभू का कांसेप्ट यह होता है कि ईश्वर खुद को परिलक्षित करता है, जैसे कोई पर्वत या मानसरोवर, इससे यह साबित नहीं होता कि इस तरह के स्वयंभू ईश्वर स्वरूपों की ज्यूरिस्टिक पर्सनालिटी ही हो.

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अयोध्या रामजन्मभूमि मामले की सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी. मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन पक्ष रखेंगे.

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