नई दिल्ली:
देश के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान एम्स से जारी हुआ एक प्रेस रिलीज़ बताती है कि स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के करीबी और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे एक अधिकारी को बचाने की कोशिश हो रही है।
मामला 1982 बैच के आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी का है जिन पर एम्स के भीतर गंभीर गड़बड़ियों और करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। साल भर पहले ही विनीत चौधरी के खिलाफ चार्जशीट को खुद तब स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. हर्षवर्धन ने हरी झंडी दी, लेकिन बीजेपी सरकार ने अब तक उस चार्जशीट पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
लेकिन अब खुद एम्स की इस प्रेस रिलीज़ से पता चला है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स के निदेशक एम सी मिश्रा से कहा है कि वह देखें कि विनीत चौधरी पर लगे आरोप किसी कार्रवाई के लायक हैं या नहीं। एम्स की प्रेस रिलीज़ में ये भी कहा गया है कि संस्थान के मौजूदा सीवीओ के मुताबिक विनीत चौधरी पर लगे आरोपों में कोई 'विजिलेंस एंगल' नहीं है यानी जांच की ज़रूरत नहीं है।
एम्स में डिप्टी डायरेक्टर रह चुके विनीत चौधरी पर दायर चार्जशीट को लेकर पहले ही काफी विवाद हो चुका है। असल में भ्रष्टाचार के कई मामलों के तार विनीत चौधरी से जुड़ते हैं। जिनका खुलासा पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने किया जिन्हें बाद में एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया।
एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि सांसद रहते नड्डा ने इन मामलों की जांच रोकने के लिए चिट्ठी लिखी और एम्स में अपनी पसंद का नया सीवीओ बनाए जाने को कहा। ये बात भी सामने आई है कि विनीत चौधरी पर कार्रवाई जेपी नड्डा के हरी झंडी न देने की वजह से ही नहीं हो पा रही है।
जनहित अभियान नाम की एनजीओ ने भ्रष्टाचार के मामलों की जांच रोकने के आरोप लगाते हुआ कोर्ट में अपील की, जिसके बाद निजी हैसियत पर खुद स्वास्थ्य मंत्री नड्डा को भी हाइकोर्ट की ओर से नोटिस दिया गया।
हाइकोर्ट में दिए सीवीसी के हलफनामे से साफ हुआ है कि नड्डा की अनुमति न मिलने की वजह से एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच रुकी हुआ है। तो सवाल उठ रहा है कि विनीत चौधरी को बचाने की कोशिश के पीछे का मकसद क्या एम्स में भ्रष्टाचार के तमाम मामलों पर परदा डालना है।
एम्स ने अपनी प्रेस रिलीज़ में विनीत चौधरी के पक्ष में दलील दी है कि उन्हें अब तक चार्जशीट थमाई नहीं गई, इसलिए इसमें लगे आरोपों पर पुनर्विचार किया जा रहा है लेकिन सवाल यह भी है कि पिछले एक साल से इस चार्जशीट को ठंडे बस्ते में क्यों रखा गया।
हैरान करने वाली बात यह है कि विनीत चौधरी की चार्जशीट पर पुनर्विचार के लिए नवंबर 2013 में भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स के निदेशक से कहा और तब भी वर्तमान निदेशक एम सी मिश्रा ने चौधरी के खिलाफ आरोपों को सही बताते हुए चार्जशीट दायर करने की अनुमति दी। उसके बाद ही केंद्रीय हर्षवर्धन इस अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट को हरी झंडी दी। अब सवाल ये है कि मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा चौधरी के खिलाफ कार्रवाई को क्यों रोके हुए हैं?
साफ है कि यह मामला सिर्फ एम्स के भीतर भ्रष्टाचार के मामलों की लीपा-पोती का नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा का भी है, क्योंकि मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री उस अफसर को बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो तमाम आरोपों से घिरा है और मंत्री जी को खुद इस बारे में कोर्ट से नोटिस दिया जा चुका है।
मामला 1982 बैच के आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी का है जिन पर एम्स के भीतर गंभीर गड़बड़ियों और करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। साल भर पहले ही विनीत चौधरी के खिलाफ चार्जशीट को खुद तब स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. हर्षवर्धन ने हरी झंडी दी, लेकिन बीजेपी सरकार ने अब तक उस चार्जशीट पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
लेकिन अब खुद एम्स की इस प्रेस रिलीज़ से पता चला है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स के निदेशक एम सी मिश्रा से कहा है कि वह देखें कि विनीत चौधरी पर लगे आरोप किसी कार्रवाई के लायक हैं या नहीं। एम्स की प्रेस रिलीज़ में ये भी कहा गया है कि संस्थान के मौजूदा सीवीओ के मुताबिक विनीत चौधरी पर लगे आरोपों में कोई 'विजिलेंस एंगल' नहीं है यानी जांच की ज़रूरत नहीं है।
एम्स में डिप्टी डायरेक्टर रह चुके विनीत चौधरी पर दायर चार्जशीट को लेकर पहले ही काफी विवाद हो चुका है। असल में भ्रष्टाचार के कई मामलों के तार विनीत चौधरी से जुड़ते हैं। जिनका खुलासा पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने किया जिन्हें बाद में एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया।
एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि सांसद रहते नड्डा ने इन मामलों की जांच रोकने के लिए चिट्ठी लिखी और एम्स में अपनी पसंद का नया सीवीओ बनाए जाने को कहा। ये बात भी सामने आई है कि विनीत चौधरी पर कार्रवाई जेपी नड्डा के हरी झंडी न देने की वजह से ही नहीं हो पा रही है।
जनहित अभियान नाम की एनजीओ ने भ्रष्टाचार के मामलों की जांच रोकने के आरोप लगाते हुआ कोर्ट में अपील की, जिसके बाद निजी हैसियत पर खुद स्वास्थ्य मंत्री नड्डा को भी हाइकोर्ट की ओर से नोटिस दिया गया।
हाइकोर्ट में दिए सीवीसी के हलफनामे से साफ हुआ है कि नड्डा की अनुमति न मिलने की वजह से एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच रुकी हुआ है। तो सवाल उठ रहा है कि विनीत चौधरी को बचाने की कोशिश के पीछे का मकसद क्या एम्स में भ्रष्टाचार के तमाम मामलों पर परदा डालना है।
एम्स ने अपनी प्रेस रिलीज़ में विनीत चौधरी के पक्ष में दलील दी है कि उन्हें अब तक चार्जशीट थमाई नहीं गई, इसलिए इसमें लगे आरोपों पर पुनर्विचार किया जा रहा है लेकिन सवाल यह भी है कि पिछले एक साल से इस चार्जशीट को ठंडे बस्ते में क्यों रखा गया।
हैरान करने वाली बात यह है कि विनीत चौधरी की चार्जशीट पर पुनर्विचार के लिए नवंबर 2013 में भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स के निदेशक से कहा और तब भी वर्तमान निदेशक एम सी मिश्रा ने चौधरी के खिलाफ आरोपों को सही बताते हुए चार्जशीट दायर करने की अनुमति दी। उसके बाद ही केंद्रीय हर्षवर्धन इस अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट को हरी झंडी दी। अब सवाल ये है कि मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा चौधरी के खिलाफ कार्रवाई को क्यों रोके हुए हैं?
साफ है कि यह मामला सिर्फ एम्स के भीतर भ्रष्टाचार के मामलों की लीपा-पोती का नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा का भी है, क्योंकि मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री उस अफसर को बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो तमाम आरोपों से घिरा है और मंत्री जी को खुद इस बारे में कोर्ट से नोटिस दिया जा चुका है।
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