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नस में लगने वाली प्लास्टिक पाइप कैथेटर से हो रहा संक्रमण, AIIMS की स्टडी के डरावने नतीजे

सेंट्रल लाइन-एसोसिएटेड ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन (CLABSI), एक गंभीर संक्रमण है जो तब होता है, जब बैक्टीरिया या अन्य रोगाणु सेंट्रल लाइन के माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं. यह संक्रमण तब होता है जब कैथेटर (जो आमतौर पर गर्दन, छाती या कमर में एक बड़ी नस में डाला जाता है) के माध्यम से रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं.

नस में लगने वाली प्लास्टिक पाइप कैथेटर से हो रहा संक्रमण, AIIMS की स्टडी के डरावने नतीजे
भारत के ICU में बढ़ रहा कैथेटर से खून का संक्रमण, AIIMS की स्टडी में खुलासा

नई दिल्ली: आईसीयू में कैथेटर (नस में लगाई जाने वाली नली) के इस्तेमाल से मरीजों में खून के संक्रमण (Bloodstream Infection) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और यह भारत के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS Delhi) के नेतृत्व में हुए हालिया शोध में यह बात सामने आई है, जिसे लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जनरल में प्रकाशित किया गया है. आईसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों के इलाज के दौरान कैथेटर यानी नस में लगाई जाने वाली विशेष नली का उपयोग आम बात है. यह नली दवाइयों, तरल पदार्थों या पोषण को सीधे ब्लड फ्लो में पहुंचाने के लिए लगाई जाती है.

हालांकि, हाल के सालों में यह देखा गया है कि कैथेटर के लंबे समय तक इस्तेमाल से मरीजों में खून के संक्रमण यानी ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन (BSI) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. यह संक्रमण न केवल मरीज की स्थिति को और गंभीर बना देता है, बल्कि इलाज को भी जटिल और महंगा कर देता है. एक हालिया शोध में इस गंभीर मुद्दे को उजागर किया गया है.

क्यों बढ़ रहा है खतरा?

यह संक्रमण अक्सर ऐसे जीवाणुओं (माइक्रोब्स) से होते हैं, जो एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antibiotic Resistance) विकसित कर चुके हैं. आसान भाषा में कहें, तो इन माइक्रोब्स पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं करतीं. इसकी वजह से मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ता है और इलाज का खर्च बढ़ जाता है, जिससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है.

औसतन 9 लोगों में संक्रमण की पुष्टि 

हेल्थ जर्नल में छपी स्टडी के अनुसार, भारत के आईसीयू में जब भी किसी मरीज को बड़ी नस में कैथेटर (सेंट्रल लाइन) लगाई जाती है, तो औसतन हर एक हजार में से करीब 9 लोगों को ये संक्रमण होता हैं. इसे 'सेंट्रल लाइन-एसोसिएटेड ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन' (CLABSI) कहा जाता है.

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CLABSI से मृत्यु दर 12-25% तक

सेंट्रल लाइन-एसोसिएटेड ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन (CLABSI), एक गंभीर संक्रमण है जो तब होता है, जब बैक्टीरिया या अन्य रोगाणु सेंट्रल लाइन के माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं. यह संक्रमण तब होता है जब कैथेटर (जो आमतौर पर गर्दन, छाती या कमर में एक बड़ी नस में डाला जाता है) के माध्यम से रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं. सेंट्रल लाइन का उपयोग आमतौर पर दवाएं, तरल पदार्थ, पोषक तत्व देने या रक्त परीक्षण करने के लिए किया जाता है. भारत जैसे देश में ये संक्रमण बीमारी और मृत्यु दर को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं. इस संक्रमण के कारण मृत्यु दर 12-25% तक है. ये संक्रमण अक्सर अस्पतालों के वातावरण से फैलते हैं. हालांकि, इन संक्रमणों को रोका जा सकता है.

निगरानी क्यों चुनौतिपूर्ण?

शोधकर्ताओं का कहना है कि आईसीयू में ऐसे संक्रमणों की लगातार निगरानी करने से देशों को अपने सिस्टम के हिसाब से रोकथाम के उपाय बनाने में मदद मिल सकती है. लेकिन इस तरह की निगरानी के लिए काफी संसाधन चाहिए, जो एक बड़ी चुनौती है.

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200 आईसीयू के 7 वर्षो के डाटा का अध्ययन 

शोधकर्ताओं ने देशभर के 54 अस्पतालों से भारतीय स्वास्थ्य सेवा-संबंधित संक्रमण (HAI) निगरानी नेटवर्क द्वारा प्राप्त 200 आईसीयू के डाटा की स्टडी की. ये डाटा 1 मई, 2017 से 30 अप्रैल, 2024 के बीच का है. इस दौरान 8629 लैब द्वारा ब्लड स्ट्रीम संक्रमण (CLABSI) के मामलों की पुष्टि हुई. शोध में पता चला है कि हर 1000 सेंट्रल लाइन-डे पर 8.83 लोगों को कैथेटर से संक्रमण हुआ. कोविड महामारी के दौरान साल 2020–21 में CLABSI संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए. शोधकर्ताओं का मानना है कि इन संक्रमणों का कारण आईसीयू में ज्यादा भार, स्टाफ की कमी और संक्रमण नियंत्रण उपायों में कमी है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में पहली बार ऐसा बड़ा अध्ययन किया गया है. यह अस्पतालों को संक्रमण कम करने की दिशा में नई रणनीति बनाने में मदद कर सकता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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