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डिजिटल डिटॉक्स क्या है इसका आपके दिमाग और शरीर पर क्या असर पड़ता है? जानिए यहां

डब्ल्यूएचओ की हालिया 'डिजिटल वेलबिइंग 2025' रिपोर्ट में इसे 'डोपामिन ओवरलोड' कहा गया है यानी खुशी के लिए मस्तिष्क को बार-बार बाहरी स्टिम्युलस की जरूरत. यही कारण है कि डिजिटल डिटॉक्स अब सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि जरूरत बन गया है. 

डिजिटल डिटॉक्स क्या है इसका आपके दिमाग और शरीर पर क्या असर पड़ता है? जानिए यहां
डिजिटल डिटॉक्स का उद्देश्य तकनीक से भागना नहीं, बल्कि उसके साथ एक स्वस्थ रिश्ता बनाना है.

What is digital detox : दिन की शुरुआत मोबाइल की स्क्रीन से और सोने से पहले भी उसके साथ घंटों बिताना आधुनिक जीवन का अहम शगल बन गया है. औसतन एक व्यक्ति रोजाना 6 से 7 घंटे स्क्रीन पर बिताता है, और यही आंकड़ा धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य के लिए नई चुनौती बनता जा रहा है.  हार्वड मेडिकल स्कूल की 2025 की एक रिपोर्ट बताती है कि अत्यधिक स्क्रीन टाइम मस्तिष्क के 'रिवॉर्ड सर्किट' को बदल देता है. ये वही हिस्सा है जो खुशी, प्रेरणा और आपकी एकाग्रता को नियंत्रित करता है.

डोपामिन, जिसे 'फील-गुड' हार्मोन कहा जाता है, हर लाइक, नोटिफिकेशन और वीडियो स्क्रॉल पर बढ़ता है. लेकिन लगातार देखने से दिमाग इसकी आदत डाल लेता है, और फिर जब फोन दूर रखा जाता है तो बेचैनी, थकान या मूड स्विंग महसूस होते हैं. डब्ल्यूएचओ की हालिया 'डिजिटल वेलबिइंग 2025' रिपोर्ट में इसे 'डोपामिन ओवरलोड' कहा गया है यानी खुशी के लिए मस्तिष्क को बार-बार बाहरी स्टिम्युलस की जरूरत. यही कारण है कि डिजिटल डिटॉक्स अब सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि जरूरत बन गया है. 

डिजिटल डिटॉक्स क्या है, कैसे करें और इसके फायदे - What is digital detox, how to do it and its benefits

  • रिसर्च बताती है कि लगातार 3 दिन का 'स्क्रीन ब्रेक' नींद के पैटर्न को 40 फीसदी तक सुधार सकता है और तनाव हार्मोन कोर्टिसोल को औसतन 25 फीसदी घटा देता है. यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने इसे 'ब्रेन रीसेट' की स्थिति कहा है.
  • कई देशों में अब 'स्क्रीन फ्री संडे' जैसी मुहिमें चल रही हैं. जापान के स्कूलों में “साइलेंट आवर” शुरू हुआ है, जहां छात्र दिन में एक घंटा बिना किसी डिवाइस के बिताते हैं. भारत में भी आईटी कंपनियां 'डिजीटल रीसेट वीक' का ट्रायल कर रही हैं ताकि कर्मचारियों की उत्पादकता और नींद में सुधार हो.
  • डिजिटल डिटॉक्स का उद्देश्य तकनीक से भागना नहीं, बल्कि उसके साथ एक स्वस्थ रिश्ता बनाना है. विशेषज्ञ कहते हैं कि शुरुआत छोटी होनी चाहिए. सुबह उठते ही 30 मिनट तक फोन न देखें, रात को सोने से एक घंटे पहले स्क्रीन बंद करें, और हर 2 घंटे में 10 मिनट 'ऑफलाइन टाइम' लें.
  • क्योंकि सच्चाई यह है कि हमारा दिमाग 24 घंटे ऑनलाइन रहने के लिए नहीं बना. जब हम लगातार स्क्रॉल करते हैं, तो वह हमें खुश नहीं बल्कि खाली करता है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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