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This Article is From Feb 22, 2023

Depression: दयालु रवैया अपनाकर कम किया जा सकता है डिप्रेशन, स्टडी में हुआ खुलासा 

शोधकर्ताओं ने पाया कि चिंता और डिप्रेशन के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दूसरे ट्रीटमेंट्स की तुलना में दयालु रवैया और अच्छा व्यवहार सबसे कारगर है.

Depression: दयालु रवैया अपनाकर कम किया जा सकता है डिप्रेशन, स्टडी में हुआ खुलासा 
डिप्रेशन में मदद करेगा दयालु व्यवहार.

डिप्रेशन इन दिनों एक आम समस्या बन गई है, जिसका शिकार आजकल के समय में अधिकतर लोग हो रहे हैं. ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में इस बीमारी के इलाज के कुछ नए तरीके सामने आए हैं जिसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति डिप्रेशन और चिंता से ग्रस्त है उसके प्रति दयालु और अच्छा रवैया अपनाकर उसको ठीक किया जा सकता है. डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों के प्रित दयालु और अपनापन दिखाया जाए तो वो इस चिंता से आसानी से निकल सकते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि चिंता और डिप्रेशन के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दूसरे ट्रीटमेंट्स की तुलना में दयालु रवैया और अच्छा व्यवहार सबसे कारगर है. ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान में अपने पीएचडी शोध प्रबंध के हिस्से के रूप में काम का नेतृत्व करने वाले सह लेखक डेविड क्रेग ने भी इस उपचार को मददगार बताया.

क्रेग ने कहा, "सोशल कनेक्शन द्वारा लोग एक-दूसरे से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं, जिससे उनको फायदा मिलता है. इसलिए अपनापन और दयालु व्यवहार लोगों के बीच संबंधों को और ज्यादा बढ़ा देता है."

क्रेग ने ओहियो स्टेट में मनोविज्ञान के प्रोफेसर जेनिफर चेवेन्स के साथ यह रिसर्च किया. उनका अध्ययन हाल ही में द जर्नल ऑफ पॉजिटिव साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ था.

शोध से यह भी पता चला कि ऐसे लोगों के लिए दयालु व्यवहार का इस्तेमाल करना इतना अच्छा क्यों माना जाता है क्योंकि इससे लोगों को अपने मन की चिंता और डिप्रेशन के लक्षणों को दूर करने में मदद मिली.

चेवेन्स ने कहा, इस खोज से पता चलता है कि डिप्रेशन से ग्रसित लोगों के बारे में अन्य़ लोगों के मन में बहुत गलत धारणा और सोच होती है.

उन्होंने कहा कि,"हम अक्सर सोचते हैं कि डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों के  पास खुद से निपटने के लिए पर्याप्त समस्याएं हैं, इसलिए हम उन्हें दूसरों की मदद करने के लिए कहकर उन पर बोझ नहीं डालना चाहते. लेकिन इस अध्ययन के परिणाम इससे विपरीत है. लोगों के लिए अच्छी चीजें करना और दूसरों की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करना वास्तव में अवसाद और चिंता वाले लोगों को अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद कर सकता है." वो आगे कहते हैं कि, जब लोग दूसरों की मदद करते हैं, तो यह उन्हें अपने डिप्रेशन और चिंता के लक्षणों से लड़ने के लिए पॉजिटिव डिस्ट्रैक्शन देता है."

इस अध्ययन में ओहियो के ही 122 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें डिप्रेशन, चिंता और तनाव के कम और गंभीर लक्षण भी देखने को मिलते थे. प्रतिभागियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया. दो समूहों को डिप्रशेन के इलाज के लिए यूज की जाने वाली थेरेपी (सीबीटी) की जाने वाली तकनीकों को सौंपा गया था.

सामाजिक गतिविधियों के समूह ( social activities group) को हफ्ते में दो दिन सामाजिक गतिविधियों की योजना बनाने का निर्देश दिया गया. वहीं एक अन्य समूह को सीबीटी के स्टेपल्स में से एक में निर्देशित किया गया था: कॉग्निटिव रिप्रेसल. इन प्रतिभागियों ने हर सप्ताह कम से कम दो दिनों का रिकॉर्ड रखा जिससे उन्हें नकारात्मक विचार पैटर्न की पहचान करने और अपने विचारों को संशोधित करने में मदद मिली जिससे डिप्रशन और चिंता कम हो सके.

तीसरे ग्रुप के सदस्यों को निर्देश दिया गया कि वे सप्ताह में दो दिनों के लिए दिन में तीन दयालु कार्य करें. जिनमें ऐसे कार्य थे जिससे एक-दूसरे को खुश करने के लिए कुछ किया जाए.

इस ग्रुप के लोगों ने बताया कि उन्होंने अपने दोस्तों के लिए कुकीज़ बनाई, किसी ने दोस्त को राइड ऑफर की और अपने रूममेट के लिए नोट छोड़ा.

पार्टिसिपेंट्स ने पांच हफ्तों तक उनके निर्देशों का पालन किया, जिसके बाद उनकी फिर से जांच की गई. इसके बाद शोधकर्ताओं ने फिर से 5 हफ्तों के बाद पार्टिसिपेंट्स का यह देखने के लिए बुलाया और उनकी जाँच की कि क्या यह हस्तक्षेप अभी भी प्रभावी थे.

निष्कर्षों से पता चला कि सभी तीन समूहों में प्रतिभागियों ने अध्ययन के 10 हफ्तों के बाद लाइफ में सेटिस्फैक्शन और डिप्रेशन और चिंता के लक्षणों में कमी दिखी.

क्रेग ने कहा कि "ये परिणाम उत्साहजनक हैं, क्योंकि इनसे साफ है कि इसके परिणाम पॉजिटिव और प्रभावी हैं." उन्होंने कहा, लेकिन दयालुता ने सामाजिक गतिविधियों और संज्ञानात्मक पुनर्मूल्यांकन दोनों पर लाभ दिखाया है, जिससे लोगों को एक-दूसरे से अधिक जुड़ाव महसूस हुआ है, जो कल्याण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है."

चीवेंस ने कहा कि इस अध्ययन में केवल सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से सामाजिक जुड़ाव की भावनाओं में सुधार नहीं हुआ है बल्कि एक दूसरे के प्रति दयालु रवैया लोगों के बीच ज्यादा अपनापन दिखाता है.

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क्रेग ने कहा कि हालांकि इस अध्ययन में सीबीटी की तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन यह सीबीटी से गुजरने जैसा अनुभव नहीं है. जो लोग पूर्ण उपचार से गुजरते हैं, उन्हें इस अध्ययन में शामिल लोगों की तुलना में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.

चेवेन्स ने कहा, "लेकिन निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि इस अध्ययन में दिया गया सीमित सीबीटी एक्सपोजर भी इस समस्या को दूर करने में सहायक हो सकता है. हर कोई जो मनोचिकित्सा का लाभ उठा सकता है उसके पास इस उपचार को पाने का अवसर नहीं होता है. लेकिन हमने पाया कि रिलेटिवली सरल और एक बार के प्रशिक्षण के बाद डिप्रेशन औप  चिंता के लक्षणों को कम करने पर वास्तविक प्रभाव डालता है."

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क्रेग ने कहा कि पारंपरिक सीबीटी से परे, सामाजिक संबंध बनाने में दयालुता के अतिरिक्त लाभ हो सकते हैं. उन्होंने कहा, "डिप्रेशन और चिंता से पीड़ित लोगों को ठीक करने में मदद करने के लिए अन्य लोगों की मदद करना अन्य उपचारों से सरल है."

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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