
Most Deadly Infectious Disease: भारत में संक्रामक बीमारियों की लिस्ट में टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) आज भी सबसे ऊपर है. एक ताजा सरकारी रिपोर्ट ने यह साफ किया है कि टीबी HIV/AIDS और मलेरिया से भी ज्यादा जानलेवा साबित हो रही है. खास बात यह है कि टीबी का असर बुज़ुर्गों से ज्यादा युवा और कामकाजी उम्र के लोगों पर पड़ता है, जिससे देश की प्रोडक्टिविटी और अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित होती हैं. रिपोर्ट के अनुसार, 30 से 69 साल की उम्र के लोगों में टीबी से मौतों का प्रतिशत 3.2 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि मलेरिया और HIV/AIDS से यह आंकड़ा केवल 0.1 प्रतिशत है. इसके अलावा, गरीबी और टीबी के बीच गहरा संबंध पाया गया है, गरीब तबकों में टीबी का प्रकोप सबसे ज्यादा है. हालांकि टीबी का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए DOTS जैसी योजनाओं को जमीन तक पहुंचाना जरूरी है, ताकि इलाज सुलभ हो और लोगों की जिंदगी बेहतर बन सके.
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टीबी किसे सबसे ज्यादा प्रभावित करता है?
जहां कैंसर और दिल की बीमारियां आमतौर पर बुज़ुर्गों को प्रभावित करती हैं, वहीं टीबी युवा और कामकाजी उम्र के लोगों को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है, खासकर 30 से 69 साल की उम्र के लोगों को.
"Cause of Death in India (2021–2023)" नामक रिपोर्ट के अनुसार:
- भारत में कुल मौतों में से 2.5 प्रतिशत मौतें टीबी से होती हैं.
- 30–69 साल की उम्र में यह आंकड़ा 3.2 प्रतिशत तक पहुंच जाता है.
- वहीं, मलेरिया और HIV/AIDS से केवल 0.1 प्रतिशत मौतें होती हैं.
किन लोगों को टीवी का ज्यादा खतरा?
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक पुरानी स्टडी में पाया गया कि टीबी सबसे ज्यादा गरीब तबके में फैलती है, हालांकि यह समाज के हर वर्ग में मौजूद है. गरीबी से टीबी का खतरा बढ़ता है और टीबी से परिवारों की आर्थिक हालत और बिगड़ जाती है.
भारत को टीबी से लड़ने में हर साल 13,000 करोड़ से ज्यादा खर्च करना पड़ता है, इसमें इलाज, काम की छुट्टियां और अन्य नुकसान शामिल हैं.
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क्या संभव है टीवी का इलाज?
अच्छी बात यह है कि टीबी का इलाज संभव है. ICMR ने सलाह दी है कि DOTS (Directly Observed Treatment Short-course) नामक इलाज को लोगों तक आसानी से पहुंचाया जाए. हालांकि DOTS शुरू करने से शुरुआत में खर्च बढ़ सकता है क्योंकि ज्यादा मरीज सामने आएंगे, लेकिन यह देश को टीबी से होने वाले आर्थिक नुकसान को आधा कर सकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अगर DOTS मुफ्त में दिया जाए, तो परिवारों को अपनी संपत्ति बेचनी नहीं पड़ती, कर्ज लेने की जरूरत नहीं होती, खाने में कटौती नहीं करनी पड़ती और जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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